Sunday 15 January 2012

यादें उस एक दोपहर की और कुछ दीगर अहवाल

कहते हैं कि कौन किस ओर से लड़ा की बजाय जब ज़िक्र होता है कि कौन कैसे लड़ा तो आज भी बेजोड़ है जापान के कामिकाज़े पायलट्स की शौर्य गाथा जिसे तोक्यो स्थित यासुकुनि श्राइन के संग्रहालय में बड़े सम्मान से संजोया गया है । पिछले रविवार को अपने दो साथियों के साथ वहाँ तस्वीरें खींचते- खिंचाते मुझे बरबस याद आते रहे भारतीय वायुसेना के अपने फ़्लाइंग अफ़सर निर्मल जीत सेखों और फ़र्ज़ की राह पर मर-मिटने का उनकाअदम्य साहस । यासुकुनि श्राइन में घूमते-घुमाते जाने क्यों मुझे याद आती रहीं पालम में गुज़री दोपहरियाँ और वो कहानी जिसे हमारी पीढ़ी सुनते हुए बड़ी हुई कि कैसे इस जाँबाज़ योद्धा ने 14 दिसंबर 1971 को दुश्मन के छः सैबर जैट विमानों से अकेले ही टक्कर ली थी । एक अकेले का छः जहाज़ों से भिड़ जाना भी तो कामिकाज़े जैसा बलिदान ही था और इसीलिए वहाँ मुझे याद आए सेखों ।

बहरहाल, जापानवासी भारतीय सॉफ़्टवेयर विशेषज्ञ श्री रोहन अग्रवाल ने मुझे बताया था कि यासुकुनि श्राइन में भारत के न्यायविद् राधा बिनोद पाल का चित्र बड़े सम्मान से रखा गया है और वाक़ई मैंने ऐसा ही पाया बल्कि कहना चाहिए उससे भी बढ़ कर पाया । दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान के हक़ में बोलने वाले इस अकेले जज के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक फ़ैसले बारे में पढ़ा तो था लेकिन उनका इतना सम्मान यहाँ होते देख हम सभी का सर गर्व से ऊँचा हो गया । वॉर कमीशन में उनके ऐतिहासिक फ़ैसले को बयान करने वाले पर्चे भी वहाँ रखे गए थे और लोग उन्हें ध्यान से पढ़ते हुए उनके चित्र को बड़ी श्रद्धा से निहार रहे थे । एक जापानी सज्जन को जब पता चला कि हम बुद्ध और जस्टिस पाल के मुल्क से हैं तो उन्होंने झुक कर बड़े अदब से सलाम किया , हमारे चित्र भी खींचे और भारत की प्रशंसा में सुन्दर शब्द कहे । केवल भारतीय होने भर से इतना सम्मान पाने का वो अनुभव शब्दों में बयान करना कठिन है लेकिन हमने भी उनका शुक्रिया अदा किया , जस्टिस राधा बिनोद पाल को सैल्यूट किया और अपनी राह ली । कुल मिलाकर ये कहने में कोई अफ़सोस नहीं कि मैंने अपने साथियों राजेश जी और मेहुल जी के साथ जम कर तस्वीरें खींचीं ,मंदिर के छोटे से बाज़ार से चावलों का प्रसाद लिया और अपनी दोपहर को सार्थक किया ।

3 comments:

  1. Very touching and emotional post...

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  2. अब आया असल मज़ा आपके जापान प्रवास का। इस पोस्ट और चित्रों ने धन्य कर दिया। आभार!

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