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लोग-बाग आते हैं जापान , लोग जाते हैं वापस हिन्दुस्तान । किं आश्चर्यम्? रोज़ जहाज़ उतरता है,उड़ता है लेकिन बहुत कम हैं वो ख़ुशक़िस्मत जो महान् भारतीय स्वतंत्रता सेनानी नेता जी सुभाष चंद्र बोस का स्मृति-लाभ और उनके स्मारक का दर्शन पाते हैं यहाँ आकर । तोक्यो के बीच इस बौद्ध मंदिर में सुरक्षित भस्मावशेष नेता जी के ही हैं या नहीं इस पर विवाद हो सकता है लेकिन यहाँ आकर हुआ अनुभव तो अनिर्वचनीय है , निर्विवाद है । ये हम ही नहीं कहते बल्कि भारत के कई माननीय राजनेताओं के पत्थर पर उकेरे गए शब्द कह रहे थे । भारत के पहले राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अलावा स्वयम् इंदिरा जी और अटल जी के भाव भरे शब्द वहाँ अब भी सुरक्षित हैं ।रेंको जी नाम के इस मंदिर में जाने का कार्यक्रम बना नए साल की रात जब तोक्यो में नव-निर्मित एक हिंदू मंदिर में भारतीय समुदाय के एक मित्र और हिन्दी सभा के सदस्य श्री मेहुल दवे ने ये प्रस्ताव रखा । मंदिर की बगल में रात के डेढ़ बजे आयुर्वेदिक चाय सुड़कते हुए सड़क पर ये प्रस्ताव ध्वनि मत से पारित हुआ । दल का नेतृत्व कर रहे थे खोजी रुचि के वैज्ञानिक सलाहकार श्री मेहुल जी जो कुछ पर्चियों पर वहाँ तक पहुँचने का नक्शा लिए हुए थे । साथ में स्मार्ट फ़ोन के नेविगेटर आदि उपादानों आदि से लैस दो और मित्र थे -- श्री राजेश जापानी जो एक अति वरिष्ठ सॉफ़्टवेयर विशेषज्ञ हैं और श्री संदीप शर्मा जो एक प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान में महा-प्रबंधक का दायित्व संभाले हैं और साथ में मैं एक निहायत आवारा तबीयत आपका ये ख़ाकसार । कहते हैं रविवार की उस दोपहर इसी तोक्यो महानगर में ज़बर्दस्त भूकंप के झटके आए और दुनिया भर में ये समाचार फ़्लैश हुआ जब कि हम चर्चा-परिचर्चा में कुछ यूँ मशगूल थे कि लोगों के फ़ोन आए तो पता लगा । बहरहाल हमारे अलावा दो और भारतीय बाशिंदे वहाँ मिले जिनमें से एक थे जनाब खेम सिंह और दूसरे श्री प्रेम कुमार कुकरेती । नीचे तस्वीर में वही दोनों हैं । ज़रा हट्टे-कट्टे और सफ़ेद कनटोपा लगाए खेम सिंह जी हैं और दूसरे कुकरेती जी हैं गुलाबी कमीज़ में । कुकरेती जी पाँच लाख लगाकर आए बावर्ची बनने पर आमदनी अठन्नी है । दोनों गढ़वाली हैं और गीता नाम के अपने भारतीय रेस्तराँ का शटर आखिरी बार गिराकर नेता जी का आशीर्वाद लेने हाज़िर हुए थे ।काफ़ी उदास थे , बातचीत भी रेकॉर्ड की लेकिन अभी मेहुल जी के कैमरे में है । कह रहे थे जी पाकिस्तानी, बांग्लादेशी , नेपाली, श्री लंकाई जिसे देखिए भारत का झंडा लगा कर भारतीय होटल-रेस्तराँ खोले बैठा है और हम असली भारतीय खाना बनाते हैं लेकिन घाटे में जाने के चलते बंद करना पड़ गया क्योंकि असली भारतीय माल-मसाला होता है महंगा तो खाना भी सस्ता कैसे बेच दें जबकि दूसरे वही माल सस्ते में पेल रहे हैं । उनकी बात की सच्चाई से इन्कार किया भी नहीं जा सकता । तो साहब ऐसे हुई शुरूआत अपने नए साल की । बहरहाल, अमर सेनानी नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जय ,उन मित्रों का धन्यवाद जिनके सानिध्य में ये यात्रा हो सकी --जय हिन्द , जय हिन्द की सेना ...जय हिन्द ।
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धन्य हैं आप! आपकी जापान यात्रा सार्थक हुई! जय हिन्द!
ReplyDeleteअनुराग भाई प्राकृतिक सुषमा के ये सभी चित्र स्मारक के मार्ग में स्थित एक उद्यान के हैं जो शॉर्ट कट भी है ।
ReplyDeleteमुनीश जी, आभार। मैं भी वहाँ जा चुका हूँ। बस स्मारक को अन्दर से नहीं देख सका था।
ReplyDeleteyes i remember your post . we were told that the temple opens only once in a year in the month of AUG.
ReplyDeleteमैंने कभी पढ़ा था कि रेनको-जी के पुजारी चाहते हैं कि हिंदुस्तान बोस बाबु की अस्थियाँ/राख ले ले तो उनकी आत्मा को पूर्ण संतृप्ति मिलेगी.
ReplyDeleteपर भारत में इस विषय पर बात करने पर भावनाओं को ठेस लग जाती है. इस वजह से इतने दशकों के बाद भी रेनको-जी प्रतीक्षा कर रहा है की बोस की मातृभूमि उन्हें अपने गोद में बुलाकर चैन की नींद सुला दे.
क्या भारत कभी भी इस अंतर्द्वंद से बहार निकल कर रेनको-जी को सम्मानित करेगा?
क्या सुभाष चन्द्र बोस को नसीब नहीं होगी दो गज ज़मीन मादरे वतन में ?
बदनसीब बहादुर शाह ज़फर का यह शेर याद आता है:
कितना है बदनसीब “ज़फ़र″ दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
How unfortunate is Zafar! For his burial
Not even two yards of land were to be had, in the land of his beloved.