Monday 12 December 2011

पतझर की साँझ और मटियाले ओवरकोट वाला आदमी

तोक्यो का योयोगी पार्क आज शाम ,
मैं
और....
कैमरा वही पुराना टी 005 तोशिबा जो यहाँ
मोबाइल कनेक्शन के साथ मुफ़्त मिलता है ।
ये एक तन्हा आदमी का आत्मविज्ञापन है जिसे डर है कि उसके दोस्त उसे कहीं भूल ना जाएँ ।

8 comments:

  1. मटियाले कोट वाला
    एक आदमी
    और पतझर की साँझ
    मन्द होती रोशनी में
    बाँट रहा आँच

    बिछ रही है धरती पर
    पत्तियों की चादर
    खुद पर ही रीझ रही
    प्रकृति निरन्तर

    कैमरे की काया में
    कैद हुए पल
    सबको लुभाते रहें
    रोजाना - प्रतिपल

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  2. चित्र खूब जँच रहे हैं, और ओवरकोट की तो बात ही क्या है| बस किसी मशहूर निर्माता-निर्देशक की नज़र पड़नी बाकी है| "ये कहाँ आ गए हम" जैसे किसी गीत की शूटिंग लग रही है|

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  3. आप दोनों मित्रों का आभार ।

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  4. Bhai maza aa gaya.Sapnon ke se drishya hain.

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  5. I always find autumn very romantic; and we won't forget you.

    Nice pics.

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  6. @शरद- आपका आना के जैसे पतझड़ में बहार ।

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  7. @ Professor Sahib- जी शुक्रिया, करम दिल बहलता है मेरा आपके आ जाने से, मै से , मीना से - साकी से और ऩा पैमाने से :)

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