the tavern,居酒屋,میخانه ...वो जाता था कि हम निकले
मटियाले कोट वाला एक आदमीऔर पतझर की साँझमन्द होती रोशनी मेंबाँट रहा आँचबिछ रही है धरती परपत्तियों की चादरखुद पर ही रीझ रहीप्रकृति निरन्तरकैमरे की काया में कैद हुए पलसबको लुभाते रहेंरोजाना - प्रतिपल
चित्र खूब जँच रहे हैं, और ओवरकोट की तो बात ही क्या है| बस किसी मशहूर निर्माता-निर्देशक की नज़र पड़नी बाकी है| "ये कहाँ आ गए हम" जैसे किसी गीत की शूटिंग लग रही है|
आप दोनों मित्रों का आभार ।
Bhai maza aa gaya.Sapnon ke se drishya hain.
I always find autumn very romantic; and we won't forget you. Nice pics.
@शरद- आपका आना के जैसे पतझड़ में बहार ।
@ Professor Sahib- जी शुक्रिया, करम दिल बहलता है मेरा आपके आ जाने से, मै से , मीना से - साकी से और ऩा पैमाने से :)
Shukriya!Meri Khushqismati!
मटियाले कोट वाला
ReplyDeleteएक आदमी
और पतझर की साँझ
मन्द होती रोशनी में
बाँट रहा आँच
बिछ रही है धरती पर
पत्तियों की चादर
खुद पर ही रीझ रही
प्रकृति निरन्तर
कैमरे की काया में
कैद हुए पल
सबको लुभाते रहें
रोजाना - प्रतिपल
चित्र खूब जँच रहे हैं, और ओवरकोट की तो बात ही क्या है| बस किसी मशहूर निर्माता-निर्देशक की नज़र पड़नी बाकी है| "ये कहाँ आ गए हम" जैसे किसी गीत की शूटिंग लग रही है|
ReplyDeleteआप दोनों मित्रों का आभार ।
ReplyDeleteBhai maza aa gaya.Sapnon ke se drishya hain.
ReplyDeleteI always find autumn very romantic; and we won't forget you.
ReplyDeleteNice pics.
@शरद- आपका आना के जैसे पतझड़ में बहार ।
ReplyDelete@ Professor Sahib- जी शुक्रिया, करम दिल बहलता है मेरा आपके आ जाने से, मै से , मीना से - साकी से और ऩा पैमाने से :)
ReplyDeleteShukriya!Meri Khushqismati!
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