Friday, 16 December 2011

पतझर आजकल - तोक्यो (एक)

13 comments:

  1. these photos are from one of my wishlist...awesome pics!!!

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  2. आपने तो इसे पतझड़ कहा मगर मैं तो कहूँगा :
    गुलशन में आग लग रही थी रंगे गुल से मीर
    बुलबुल पुकारी देख के साहेब परे - परे

    भले से रंगे गुल न सही रंगे पत्ती ही हो .

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  3. @शरद-- क्या खूब कहा शरद भाई । एक दिन इसी बाग़ के गुलों की तस्वीर लगाता हूँ ।
    @abcd- Itz after a long time that you are here in comment box. Your comments are always very insightful . wish i could know your name too.

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  4. Mainein kya kaha,Meer-Taqi-Meer ne kaha.
    Vaise Tasveer-e-Gul ka intezaar rahega.

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  5. कुछ परिंदों के घर हुआ करते थे यहाँ
    देखता हूँ अब तो वीरान सा लगता है

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  6. सही कहते हो फ़कीरा भाई लेकिन असल में अब भी काफ़ी परिंदों का बसेरा है यहाँ ।

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  7. Really beautiful; the colours and the patterns, esp. the maple leaves, which I like so much.

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  8. हामिद साहेब,

    कश्मीर के दहकते चनारों के बारे में सुना था लेकिन गया वहाँ अप्रैल में सो दिखे नहीं । अब तोक्यो में समझ आया है मतलब ।

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  9. वाह, क्या रंग है पतझर का! आभार!

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