Monday 19 October 2009

दिल्ली-यमुनोत्री मोटर साइकिल अभियान (अन्तिम भाग)

यमुना को कृष्ण -प्रिया कहा गया है मान्यताओं के अनुसार ये सूर्य की पुत्री और यम तथा शनि की बहिन हैं जैसे सरस्वती लुप्त हो गयी वैसे ही एक दिन यमुना और फ़िर गंगा लुप्त हो जायेगी ऐसा लिखा बताते हैं देखा जाए तो ये बस एक नदी है जो उत्तराखंड से निकल कर उत्तर-प्रदेश के इलाहाबाद में गंगा में मिल जाती है और कल तक तो ये एक राज्य से निकल उसी की एक बड़ी नदी में विलीन हो जाती थी ! फ़िर हज़ारों साल से भारत भर के लोग इसके उदगम पर क्यों आते हैं ? शायद ये सवाल परेशान करे उनको जो मानते हैं की भारत कभी एक राष्ट्र नहीं था बस छोटे-छोटे देशों का भू-भाग था दक्षिण भारत में भी स्नान करते हुए लोग एक मंत्र के ज़रिये इस नदी को याद करते हैं जैसे यहाँ उत्तर में कृष्णा ,कावेरी और नर्मदा को करते हैं इस समय यहाँ गुजरात और बंगाल से आए हुए यात्री ही अधिक थे और दुकानदार हमें भी बंगाल से आया समझ रहे थे और सब्ज़ी में 'झोल' देने के लिए पूछ रहे थे यमुनोत्री में एक गर्म जल का शानदार कुंड भी है इस प्राकृतिक कुंड में नहा कर सारी थकान उतर जाती है और हड्डियाँ ऐसा आराम पाती हैं की क्या कहिये ये मेरी यमुनोत्री की दूसरी यात्रा थी इस से पहले कोई छः वर्ष हुए तब यहाँ आना हुआ था तब की तुलना में चढाई का 5 किलो मीटर का रास्ता बहुत साफ़-सुथरा और पक्का दिखा , खड़ी चढाई मगर अब इसे ट्रेक्किंग जैसा नाम नहीं दिया जा सकता जगह-जगह बेंच लग गए हैं , पीने का पानी भी है कुछ वर्ष पहले ये १४ किलो मीटर की कठिन चढाई थी अब तो कुछ भी नहीं मगर फ़िर भी अच्छी मशक्कत तो है ही सरकार ने साफ़ -सफाई का इन्तज़ाम किया है मगर प्लास्टिक पर कोई बस नहीं लोग भी समझने को तैयार नहीं सो किया क्या जाए सिवा इसके की इस मुद्दे पे एक अलग पोस्ट छापी जाए मगर फिलहाल बात संत राम भरोसे दास की नाम के ही अनुरूप राम का भरोसा लिए एक सच्चे संत आज यमुनोत्री के पट बंद हो गए , पण्डे -पुजारी सब विदा , मन्दिर -दुकानें सब खाली अब वहां कोई हैं तो बस यही संत स्थानीय ग्रामीणों का कहना है की सन् ६७ से ये यहीं बिराजते हैं चाहे कितनी बर्फ पड़े या तूफ़ान आयें उन्हें इस तरह रहते देख अब भक्त जनों ने गुफा को मन्दिर का रूप दे दिया है , कुछ कमरे बनवा दिए हैं तो किसी को बुलाते हैं , कुछ चढाने को कहते हैं और ही रत्ती भर अपेक्षा रखते हैं बस हरि भजन करते हैं बड़ी मुशकिल से फोटो खेंचने दी साल पहले इस ८४ वर्ष के साधक को मैंने झुर्रियों भरे ,साँवले से चेहरे के साथ देखा था जबकि अब रंग और त्वचा का रूप बिल्कुल बदला हुआ था जड़ी -बूटी का अच्छा ज्ञान रखते हैं और आग्रह करने पर दे भी देते हैं कभी जाना हो तो दर्शन कर लें , चैनल वाले बाबा तो देखते ही रहते हैं हम एक रात ऊपर रहे और फ़िर जानकी - चट्टी से बाइक उठा कर घर की राह ली जो ब्लौगर इस यात्रा-वृत्त को पढ़े-पढाएगा उसका कल्याण होगा ऐसा मेरा कुछ-कुछ मानना है , तो गाओ शांती ........... !

8 comments:

  1. बहुत लाजवाब और सुंदर पोस्ट.

    रामराम.

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  2. ॐ शांति ॐ।सुन्दर सचित्र यात्रा वृतांत पढ कर भला नही होगा तो कब होगा।मुनीश भाई बहुत जलन होती है आपसे।

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  3. बैठे-बिठाये संत के दर्शन हो गए और क्या चाहिए? यात्रा आप कर रहे हैं, लोक परलोक का मजा हम लूट रहे हैं. आपके मंगलकारी मकसद को मिलियन मर्हबा.

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  4. behtreen yatra...

    picture no. 1, 4 ,5 to WoW hai...banki ke pictures bhi achhi hai...pictures dekh kar hi lag raha hai ki apki ye yatra bahut achhi rahi hogi...

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  5. बहुत सुन्दर चित्र ....खासतौर से चश्मा, कैमरा और आपकी ध्यानमग्न वाली फोटो ...

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  6. मुनीश जी,
    इन संत को देखकर तो लगता नहीं कि इनमे इतनी खूबी हैं. जायेंगे तो हम भी उनके दर्शन जरूर करेंगे.

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  7. क्या भाई,
    इस पोस्ट का अचानक ही रूप रोगन बदल दिया.

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  8. First I would like to thank u........ Munish ji......for increasing my morale...........

    First tym I m been to ur blog............. really........I liked all the sansmarans.....

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