यमुनोत्री मार्ग का असल मज़ा बड़कोट और जानकी -चट्टी के बीच है । जानकी -चट्टी से चढाई शुरू होती है सो उसका अलग अनुभव है मगर प्राकृतिक -सुषमा का जो आनंद इस मार्ग में है उसका वर्णन क्या किया जाए बस चित्र देख कर ही आप समझ जायेंगे ! करीब ४० किलोमीटर का ये फासला बड़े मज़े से रुकते -रुकाते पूरा किया । उस दिन दो अक्टूबर का दिन था और इस सुदूर अंचल में महात्मा गांधी की जय बोलते बच्चे बड़े प्यारे लग रहे थे सो उनका एक छोटा सा विडियो भी हमने उतार लिया । आने वाली सर्दी की तय्यारी में आलू इकठ्ठे करते और सब्ज़ी सुखा कर रखते ग्रामीण यूँ ही हाथ उठा कर जय राम जी की बोल देते तो दिल भर आता कि हम आख़िर इनके क्या लगते हैं ! प्रकृति के सान्निध्य ने इनके हृदय शुष्क नहीं होने दिए हैं . पुण्य-सलिला यमुना के उदगम के निकट वर्ती ग्रामीणों को मैं नमस्कार करता हूँ ,वंदन करता हूँ देवभूमि उत्तराखंड का और मनाता हूँ के इसे किसी की नज़र न लग जाए ।
मैदानी क्षेत्र का रहने वाला हूँ परन्तु पहाडों से अटूट प्रेम है. जीवन का एक बड़ा हिस्सा उत्तराखंड में जिया है इसलिए इससे जन्मभूमि सा ही लगाव है फिर यह तो देवभूमि भी है. सुन्दर चित्र और जीवंत वर्णन पढ़कर मन फिर बेचैन होने लगा है ठीक उसी तरह जैसे बालक माता के आंचल की छाँव के लिए ललकता है. अत्यंत सुन्दर.......
"जोशी क्लीनिक" के नीचे वाली तस्वीर में उँगलियों के बीच फँसी सिगरेट कुछ अच्छी नहीं लग रही. कृपया हो सके तो त्याग दें.
मुनीश जी, रामराम पहले तो ये बताओ की ऊपर से बारहवां चित्र कौन सी जगह का है? सही में आज तो पोस्ट पढ़कर बेचैनी सी बढ़ गयी है. बड़कोट में मेरा एक दोस्त रहता है, वो इस दिवाली पर मुझे आमंत्रित कर रहा है, लेकिन दीवाली जैसा बड़ा त्यौहार तो घर पर ही मनाना पड़ेगा. है ना?
aalu ka dher tou lubha raha hai. sabhi tasweeren mast hain. maza aa raha hai.
ReplyDeleteआलू की खेती है क्या?
ReplyDeleteबढ़िया चित्र, विडियो और विवरण भाई.
बोतल में सिर्फ पानी है कि वोदका भी..पहाड़ी जगह है भाई..सतर्कता बेहतर देन टू फील सॉरी आफ्टर कैचिंग कोल्ड. हा हा :)
ReplyDeleteBadhiya aur mast pictures...
ReplyDeletealoo dekh ke to specialy kuchh zyada hi maza aa gaya...
Bachhe sahi mai bahut pyare lag rahe hai...
ReplyDeleteनयनाभिराम चित्र...आनंद आ गया देख कर...सच इन यात्राओं का जवाब नहीं...
ReplyDeleteनीरज
मैदानी क्षेत्र का रहने वाला हूँ परन्तु पहाडों से अटूट प्रेम है. जीवन का एक बड़ा हिस्सा उत्तराखंड में जिया है इसलिए इससे जन्मभूमि सा ही लगाव है फिर यह तो देवभूमि भी है. सुन्दर चित्र और जीवंत वर्णन पढ़कर मन फिर बेचैन होने लगा है ठीक उसी तरह जैसे बालक माता के आंचल की छाँव के लिए ललकता है. अत्यंत सुन्दर.......
ReplyDelete"जोशी क्लीनिक" के नीचे वाली तस्वीर में उँगलियों के बीच फँसी सिगरेट कुछ अच्छी नहीं लग रही. कृपया हो सके तो त्याग दें.
beautiful pictures
ReplyDeleteplease post the Pic.s of YAMUNOTRI also if you have them --
NATURE at its BEST indeed !!
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ReplyDelete@ Nishachar-- Welcome suggestion. I'll convey it to Sandeep-- the man in that foto.
ReplyDeleteमुनीश जी, रामराम
ReplyDeleteपहले तो ये बताओ की ऊपर से बारहवां चित्र कौन सी जगह का है?
सही में आज तो पोस्ट पढ़कर बेचैनी सी बढ़ गयी है. बड़कोट में मेरा एक दोस्त रहता है, वो इस दिवाली पर मुझे आमंत्रित कर रहा है, लेकिन दीवाली जैसा बड़ा त्यौहार तो घर पर ही मनाना पड़ेगा. है ना?
और भाई,
ReplyDeleteक्या फुल मजा दिला रहे हो!!!!
चार पोस्ट हो गयी और अभी तक बड़कोट तक ही पहुंचे हो.