Wednesday, 1 October 2008
मयखाने में मारुती
भर्तृहरि एक नामी राजा हुए हैं और अपने राज-काज से ज़ियादा वो याद किए जाते हैं उन बातों के लिए जो उन्होंने इंसानी फितरत , खुदा की नेमत और हुस्न की आग के बारे में कही हैं । उनके तमाम अशआर 'नीति शतक', 'वैराग्य शतक 'और 'श्रृंगार शतक' नाम के तीन दीवानों में कलमबंद मिलते हैं । कहते हैं 'वक़्त' या कहें 'काल' के बारे में उनका कहा आज के सबसे बड़े साइंस- दान जनाब स्टेफन हाकिंग्स से काफ़ी मेल खाता है। आप फरमाते हैं --"कालो न यातः वयमेव यातः '' याने वक़्त नहीं बीत रहा ,हम ही बीत रहे हैं '' । मशहूर शायर जनाब जां निसार अख़तर के बेटे और सूडो -सेकुलरिस्टों की ज़ीनत मोहतरमा शबाना के खाविंद जावेद अख़तर साहब ने इस सब्जेक्ट पे एक नज़्म कही है जो आपके दीवान 'तरकश' में सहेजी गई है । बहरहाल," वक़्त नहीं हम ही बीत रहे हैं" , मेरी मारुती कार भी बीत रही है । अपना पन्द्रहवां सालाना उर्स वो इसी सितम्बर में मना चुकी है । इन पन्द्रेह बरसों में मैं अपनी कार के मुकाबले कहीं ज़ियादा बीता हूँ मगर महकमा ट्रैफिक वालों का फरमाना है के आपसे हमें कोई शिकवा नहीं लेकिन १९९३ मॉडल की मारुती अगर आप अब भी चलाना चाहते हैं तो इसका 'फिटनेस' सर्टिफिकेट ले आइये । उनकी मंशा समझनी मुश्किल नहीं । बड़ी- बड़ी कार कम्पनियों ने उनके अफसरान को निहाल कर रखा है । वो चाहती हैं के पुरानी गाडियाँ हटें तो नई बिकें । मारुती वालों से ये कोई नहीं पूछ सकता के भाई ऐसी कार बनाते ही क्यूँ हो जो १५ साल बाद भी सही सलामत चलती रहे । मुझे अपनी कार से कोई शिकायत नहीं । हरियाणा के गावोँ की भुसंड-भदान सड़कें हों या केट विंसलेट की चम्पई जांघों सी रेशमी कालका-शिमला रोड , रेणुका झील से पोंटा साहब का लद्दाख की याद दिलाता कच्चा रस्ता हो या आज के दौर की तमाम इंडियन हीरोइनों के पापी पेट जैसी सपाट नजीबाबाद -lansedown रोड इस गाड़ी ने मुझे कभी धोखा नहीं दिया । हाँ हरियाणा टूरिस्म ने ज़ुरूर दिया । एक दफे दगशाई (हिमाचल) जाते हुए मोरनी हिल्स के रस्ते में लगे एक बोर्ड को देख मैं शोर्ट-कट के चक्कर में कालका की तरफ़ उतर गया जो नदी किनारे के गोल पत्थर की ढुलाई का रस्ता था और करीब १५ किलो मीटर का ये रस्ता हिमालयन कार रैली की प्रैक्टिस के लिए बेजोड़ हो सकता है । वहाँ से भी इस गाड़ी ने निकाला (निकालता तो खुदा है मगर मैं सेकुलर भी तो हूँ न) और ठीक पेट्रोल पम्प के सामने ही बंद हुई जहाँ इसकी वजेह महज़ बैटरी कनेक्शन का वायर हटना बताया गया । अब इस गाड़ी को बेचने का जी तो नहीं मगर रखना भी जी का जंजाल है चूंकि किसी दिन ये ज़ब्त भी हो सकती है अगर 'फिटनेस' न लिया तो !क्या करूँ समझ नहीं आता और ३ -३.५० लाख में आजकल कौनसी बढ़िया गाड़ी है ? गाड़ियों के बारे में ब्लॉग बन्धु अपने ख्याल यहाँ बाँट सकें तो इनायत होगी ।
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मुनिश जी अभी तक किराये की कार से सफ़र किया है हा जब पहिली बार स्कुटर चलायी थी तब अगला पहिया हवा मे यु उछला था कि गाडी हवाई जहाज की तरह टेकाआफ़ कर रही हो ।फ़िर गाडी सरपट दौडी हम गाडी के उपर घसीट रहे थे ,हमने जोर से ब्रेक मारी ,धडाम की आवाज की साथ गाडी रुकी ।पास आकर लोगो ने कहा जोर से ब्रेक मारने का नतीजा समझ आया ।हमने कहा हा समझ मे आया ना ब्रेक मारने से गाडी रुक जाती है और क्या?
ReplyDeletevery clever.
ReplyDeleteऐसी बेहतरीन पोस्ट पर कमेन्ट तो क्या करूं दोस्त, एक पूरी पोस्ट ही लगा दी है: http://kabaadkhaana.blogspot.com/2008/10/blog-post_1540.html.
ReplyDeleteमौज आई!
कोई सी भी खरीद लो भाई पर अपन को एक बार सवारी जरूर करा दीजो. तभी कह पाएंगे- 'गड्डी जांदी ए छलांगा मारदी..
ReplyDeleteबोफ़्फ़ाईन साब .
जय मारुति देवी!!
हमारे दर्द-ऐ-दिल को आपने इज़्ज़त बख्शी , शुक्रिया अशोक भाई. सिद्धेश्वर बाबू देखिये कब वो मुबारक घड़ी आती है और भाई दीपक पुरानी कहावत है के ''fools build houses and wise live in them'' आपके लिए कहना होगा ''fools buy cars and wise travel in them''.
ReplyDeleteबढ़िया है महाराज!!
ReplyDeleteपुरानी मारूति के प्रति आपका प्रेम पढ़कर ऑंखें भर आई, आज के ज़माने में प्रेम की ऐसी मिसाल मिलना मुश्किल ही नही नामुमकिन है
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