तोक्यो में इन दिनों साकुरा यानि चैरी-पुष्पों की बहार पूरे शबाब पे है । बमुश्किल दस दिन जीने वाले इस फूल को लेकर जापानियों की दीवानगी ला-जवाब कर जाती है । सदियों से इन्हीं दिनों ये फूल खिलता है , खिल के बस बिखर जाती हैं इसकी कोमल पंखुरियाँ । जापान में कोई ऐसी जगह नहीं जहाँ ये ना हो । एक खास रवायत के तहत इसे बाक़ायदा निहारा जाता है । जत्थे के जत्थे लोग अपने अज़ीज़ों के साथ इन पेड़ों के नीचे बैठने के लिए पार्कों, नदी किनारे , यहाँ तक कि सड़कों के किनारे निकले चले आते हैं । वहीं दरी बिछाकर खाते हैं और पीने का तो क्या कहिए । हानामि कहाती है ये रस्म ।जब रहा ना गया और एक बुज़ुर्गवार से कह बैठा कि हुज़ूर ऐसी भी क्या खूबी है इस फूल में जो सदियों से ये रस्म चली आती है । उन्होंने जो कहा उसका लब्बो-लुबाव ये रहा कि हम सब इसी साकुरा की पंखुरियाँ हैं जो खिलता है तो ऐसे कि चर्चा होता है और फिर देखते ही देखते चल देता है सदा के लिए मगर छोड़ जाता है ना भूलने वाली यादें ।ये फूल नहीं जापान का जीवन दर्शन है और इससे जापानी इतिहास के अनगिनत खुशगवार और ग़मज़दा लम्हे जुड़े हैं । जीवन की क्षणभंगुरता और सौंदर्य का ऐसा उपमान ना तो पहले देखा था और न ही सुना । उसके बाद काफ़ी कुछ पढ़ा और जाना । कुल मिलाकर बात ये निकली कि साकुरा और जापान दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं । साकुरा को जाने बग़ैर जापान को जानने की कोशिश ऐसी है जैसे होली-दीवाली को जाने बग़ैर भारत को जानने की जिज्ञासा । बहुत कुछ है इस पर लिखने को मग़र अभी तो आप भी बस निहारिये इसे .....
All the pictures of flowers are too good...and u too looking quite cool...
ReplyDeleteThanx a lot for your appreciation .
DeletePhoto to bahut acche hai lekin background thoda irritate kara raha hai.
ReplyDeleteKaaran - nahi pata ;)
रोहन जी महान् कला वही है जो आपको कुछ परेशान करे, इरिटेट करे ;)
ReplyDeleteअच्छा लगा कि आपने ध्यान से देखा तो सही । दरअसल बादल का बैकग्राउंड इन फूलों को उभरने नहीं दे रहा है ।
यथा दर्शन तथा चित्रम - अद्वितीयम्!
ReplyDeleteब्यूटी लाइज़ इन द आइज़ ऑफ़् बिहोल्डरम् :)
DeleteVery nice Munish san. Inspiring me to write too.
ReplyDeleteYou too are glowing under the blossoms.
Viola
Thanks a lot Viola san . wait fot more ...
Deleteफिर कुछ इस अंदाज़ में बहार आई
ReplyDeleteके हुए मेह्रो माह तमाशाई
देखो ऐ सकिनान-ए-खित्ता-ए-ख़ाक
इसको कहते हैं आलम आराई
के ज़मीं हो गई है सरतासर
रूकश-ए-सतहे चर्खे मीनाई
क्या मौक़े की बात कही है शरद जी , बढ़िया ।
Deleteबेहतरीन अभिव्यक्ति और छाया चित्र
ReplyDeleteशुक्रिया ख़ुशआम-दीद डॉक्टर साब । आते रहेंगे ऐसी उम्मीद करता हूँ ।
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