Sunday 8 April 2012

जापान में वसन्तः कुछ और छवियाँ- (साकुरा समय--2)

जापानी भाषा में हाना का अर्थ है फूल और उन्हें देखने के लिए जाने की रस्म है ओ हानामि । हालांकि शहर भर में ये फूल खिले हैं लेकिन फिर भी उनके साए में बैठने के लिए लोग इस कदर लालायित रहते हैं कि छुट्टी के दिन घंटों पहले जाकर जगह घेरी जाती है । फूलों के लिए ऐसा अनुराग कहीं और देखा-सुना नहीं इसलिए सोचा इन पलों को कैमरे में क़ैद किया जाए । ऐसी एक हानामि यानी पुष्प-दर्शन गोष्ठी में सम्मिलित होने का अवसर रहा जिसमें जापानी समाज के अतिरिक्त भारतीय, अमरीकी एवम् रोमानियाई समुदायों के भी सदस्य उपस्थित थे । भारत-प्रेमी मेज़बान मित्र ने अन्यान्य पेय पदार्थों के साथ ओल्ड मंक का भी इंतज़ाम किया था जो यहाँ मिल पानी दुर्लभ है । काफ़ी इसरार पर कुछ झिझकते हुए अन्य अतिथियों ने भी इसे चखा। लेकिन तत्पश्चात्, विश्व भर की उत्तम मदिराओं की उपलब्धता के बावजूद जिस प्रकार सभी ने मुक्त कंठ से देर तक भारतीय गन्ने से निर्मित ओल्ड मंक की सराहना की वो अनुभूति वर्णनातीत है , शब्द-सामर्थ्य से परे है । अनुभवी मद्य प्रेमियों ने एकमत से ओल्ड मंक के कृत्रिम रसायन रहित होने की बात कही । रह-रह कर याद आते रहे वो अशआर -- "मानो ना मानो तुम कुछ भी कहो बिरादर/ ब्रांड भतेरे हैं दारू के पर ओल़्ड मंक है सबका फ़ादर ।" केवल ओल्ड मंक के शैदाई उस भावना का अंदाज़ा कर सकते हैं अन्य नहीं । बहरहाल, फूलों को बैठकर निहारने की ये रस्म उस अंग्रेज़ कवि (शायद रॉबर्ट फ़्रॉस्ट ) को दिलासा देती लगी जिसने लिखा था--"What is life so full of care/ There's no time to stand and stare !"

3 comments:

  1. Janaab, desi lassi mein jo nasha uske aage Old Monk to kya New Monk bhi kurbaan;)

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  2. लस्सी का कोई तोड़ नहीं है रोहन जी इसमें कोई संदेह नहीं है ।

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  3. @ मानो ना मानो तुम कुछ भी कहो बिरादर
    ब्रांड भतेरे हैं दारू के पर ओल़्ड मंक है सबका फ़ादर।

    वाह मुनीश जी वाह! ऐसी कलमतोड़ शायरी ओल्ड मोंक पिए बगैर तो हो ही नहीं सकती :)

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