Tuesday, 20 March 2012

चन्द सफ़े ओशिमा डायरी से.....(1)

ओशिमा

17 मार्च 2012

द्वीप , महाद्वीप या फिर उपमहाद्वीप ! कहते हैं कि हम सब किसी ना किसी बड़े या छोटे टापू के ही बाशिंदें हैं क्योंकि धरती पर सत्तर फ़ीसदी पानी है और महज़ क़रीब तीस फ़ीसद है ज़मीन । लेकिन समंदर से दूर के मुझ जैसे दिल्ली वासी अक्सर ये बात भूले रहते हैं और टापुओं की ज़िंदगी उनके लिए एक स्वप्न जगत सा हो सकता है । मेरे लिए भी था । फ़िलहाल जापान के होंशु द्वीप का वासी हूँ । साल भर योकोहामा की खाड़ी के नज़दीक आशियाना रहा और अब तोक्यो की खाड़ी के क़रीब है बसेरा । लेकिन दुनिया के सबसे बड़े महानगर और दिन-रात जगमगाते रहने वाले तोक्यो में रहकर टापू की ज़िंदगी का कोई अहसास नहीं मिलता सिवा इसके कि विश्व-भाषा कहाने वाली अंग्रेज़ी की असल औकात यहाँ आकर पता चल जाती है और उसके विश्व भाषा होने का भरम चकनाचूर होता है । इच्छा थी कि किसी टापू को देखा जाए सो आज ओशिमा निकल आया हूँ ।

तोक्यो से क़रीब सौ किलोमीटर दूर ये एक अलग ही दुनिया है । माउंट मियाहारा का घर ओशिमा । मियाहारा एक सक्रिय ज्वालामुखी है जो आखिरी बार 1986 में फटा था , टापू खाली कराना पड़ा था । ये अब भी बराबर धधक रहा है, देखना चाहता हूँ ज्वालामुखी कैसा होता है । देखना चाहता हूँ कि लोग कैसे रहते हैं इसके कभी भी फट पड़ने के खौफ़ के बावजूद । इत्तेफ़ाक, महज़ इत्तेफ़ाक की बात है कि पिछले साल 12 मार्च को ओशिमा आना चाहा था लेकिन मेरे पहुँचने से पहले ग्यारह को ही त्सुनामि पहुँच गई और फिर वक़्त ऐसे उड़ा कि का ना तो खास मन ही हुआ और ना ही मौक़ा ही मिला यहाँ आने का । लेकिन आज सवेरे ताकेशिबा बंदरगाह से जैट बोट पकड़ी और ज़िंदगी में पहली दफ़ा ऐसे टापू पे कदम धरा जो देखने में भी टापू ही लग रहा था मतलब हरहराते प्रशांत महासागर के बीच उभरे पहाड़ों का टुकड़ा । इसी पंक्ति में छः और टापू हैं । इज़ू आइलैंड्स कहाने वाले ये टापू दरअसल समंदर में डूबी एक लंबी ज्वालामुखीय शृंखला है जो जहाँ-तहाँ समंदर से उभर आई है और जमे हुए ठोस लावे ने इसे पानी से ऊपर उठा दिया है ।

बारिश का पूर्वानुमान हफ़्ते भर पहले ही मिल जाता है सो पता था दिन खराब होगा लेकिन ये नहीं पता था कि पाम बीच नामक जिस अंग्रेज़ी नाम के रिज़ॉर्ट को चुन रहा हूँ वो टापू की बसावट से काफ़ी दूर है और गोताखोरों की आरामगाह भर है । सर्दी है साथ में बारिश भी । शुक्र है तोक्यो वासी गुरजिंदर सग्गू का जिन्होंने फ़ोन करके जैसे-तैसे रिज़ॉर्ट मैनेजर को फ़ोन पर मना लिया है मुझे शाकाहारी खाना देने के लिए । खाना वो मुझे खिला चुके हैं लेकिन उनके चेहरे पर ये मासूम सवाल मैं पढ़ सकता हूँ कि कोई आदमी शाकाहारी क्यों हो सकता है और हो तो ओशिमा ही क्यों आ टपका ?

समंदर कोई 300 मीटर पर है । लहरों की आवाज़ के अलावा आस-पास में बिल्कुल सन्नाटा है । दोपहर में गया था किनारे मग़र बारिश के अलावा तेज़ हवा ने वहाँ खड़ा रहने की इजाज़त नहीं दी । इंतज़ार कल का है । सुना है बारिश आज भर की है तो बात बस रात भर की है । देखें कल क्या दिखता है । इस रिज़ॉर्ट के कमरों में इंटरनेट नहीं है सो टाइप भर कर रहा हूँ छपाई पहुँचने पर हो पाएगी ।

8 comments:

  1. Replies
    1. जी हाँ धीरे-धीरे वो भी चेपे जाएँगे ।

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  2. Bahut khoob, without internet, just 300 mts from sea, prakrati ki god me!

    Akhilesh
    From Jogyakarta ....samandar ke aaspas ka indonesian tapu

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  3. Nice pics munish san. Waiting for more. Looks like a beautiful island.

    Viola

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  4. bilkul sahi munish ji sharaab hi to hai jise hum pure veg kah sakte hain..

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  5. @कोई आदमी शाकाहारी क्यों हो सकता है
    :) सुन्दर चित्र!

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