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फ़िल्म तो जो है सो है ही । हिन्दी में इससे सशक्त कोई राजनीतिक और सामाजिक टिप्पणी पिछले 20 साल में तो कम से आई नहीं । लेकिन, जैसे फ़िल्म में एक कहानी के ज़रिए कहानी के बाहर भी सब कुछ कह दिया गया है ये इंटरव्यू भी फ़िल्मी बातचीत के ज़रिए बहुत कुछ कह जाता है - हिन्दी सिनेमा का अर्थशास्त्र, क़स्बे, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की खूबियाँ और खामियाँ, मुंबई मेन-स्ट्रीम सिनेमा की मानसिकता , खिलाड़ियों की हालत यानि कुछ नहीं छोड़ा है । तिगमांशु जैसे आदमी को ये कहते सुनना वाक़ई एक अनुभव है कि वो आज भी एक आउटसाइडर हैं । ख़ैर,
बहुत कम होता है जब ऐसा ऑडियो इंटरव्यु सुनने को मिलता है । अगर पान सिंह तोमर आपने देख मारी तो इस गुफ़्तफ्तगू को क़तई मिस ना करें और नहीं देखी तब तो हरगिज़-हरगिज़ ना करें । क़सम उड़ान झल्ले की मज़ा आ जायगा बस क्लिकियावें और मौज पावें ----
सुन रहा हूँ, शुक्रिया!
ReplyDeletefilm dekhe hi kafi din go gaye, mauka milega to amal karunga, bina dekhe kya comments kiye jayen.
ReplyDeleteकहाँ हो पाता है देख पाना फ़िल्में लेकिन ये देखी मैंने मुफ़्त टीवी नामक वेबसाइट पे बिल्कुल मुफ्त में ।
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