Monday, 12 March 2012

जुगलबन्दी राजेश जोशी(बीबीसी) और तिगमांशु धूलिया की

फ़िल्म तो जो है सो है ही । हिन्दी में इससे सशक्त कोई राजनीतिक और सामाजिक टिप्पणी पिछले 20 साल में तो कम से आई नहीं । लेकिन, जैसे फ़िल्म में एक कहानी के ज़रिए कहानी के बाहर भी सब कुछ कह दिया गया है ये इंटरव्यू भी फ़िल्मी बातचीत के ज़रिए बहुत कुछ कह जाता है - हिन्दी सिनेमा का अर्थशास्त्र, क़स्बे, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की खूबियाँ और खामियाँ, मुंबई मेन-स्ट्रीम सिनेमा की मानसिकता , खिलाड़ियों की हालत यानि कुछ नहीं छोड़ा है । तिगमांशु जैसे आदमी को ये कहते सुनना वाक़ई एक अनुभव है कि वो आज भी एक आउटसाइडर हैं । ख़ैर,बहुत कम होता है जब ऐसा ऑडियो इंटरव्यु सुनने को मिलता है । अगर पान सिंह तोमर आपने देख मारी तो इस गुफ़्तफ्तगू को क़तई मिस ना करें और नहीं देखी तब तो हरगिज़-हरगिज़ ना करें । क़सम उड़ान झल्ले की मज़ा आ जायगा बस क्लिकियावें और मौज पावें ----

3 comments:

  1. सुन रहा हूँ, शुक्रिया!

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  2. film dekhe hi kafi din go gaye, mauka milega to amal karunga, bina dekhe kya comments kiye jayen.

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    1. कहाँ हो पाता है देख पाना फ़िल्में लेकिन ये देखी मैंने मुफ़्त टीवी नामक वेबसाइट पे बिल्कुल मुफ्त में ।

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