Wednesday, 21 March 2012

चंद सफ़े ओशिमा डायरी से - (2)

18 मार्च, 2012
कल दिन भर करने को कुछ नहीं था सो इंतज़ार था सुबह का लेकिन नींद खुली सवेरे आठ बजे नाश्ते की गुहार के साथ । इस होटल में रूम सर्विस नाम की कोई चीज़ मालूम नहीं देती । कल शाम भी यही हुआ ठीक शाम सात बजे डिनर का फ़ोन घनघनाने लगा था । डिनर हो या नाश्ता वो आपको हॉल में ही मिलेगा और वो भी तय समय पर । चलिए वो तो ठीक है लेकिन सवेरे की बैड टी भी नहीं । मैंने बताया ना कि ये जगह गोताखोरों के ठहरने की है और मैं जाने कैसे पहुँच गया हूँ यहाँ । खैर एकदम, कैम्पनुमा अनुशासन है जो शायद गोताखोरों के लिहाज़ से ठीक ही है क्योंकि गहरे समंदर में उतरने वालों को होना पड़ता है एकदम चुस्त-दुरुस्त लेकिन मैं तो महज़ छुट्टी काटने के इरादे से आया हूँ सो अखरता है लेकिन मैनेजर साहब भले आदमी हैं । भरी बारिश में मेरे लिए सिगरेट की दुकान तक छः किलोमीटर गाड़ी चला आए हैं सो मैं भी कोई शिक़ायत नहीं करता । सही नौ बजे टैक्सी लग जाती है । ड्राइवर सा़ब कोई बुज़ुर्ग जापानी हैं , तजुर्बेकार मालूम देते हैं अंग्रेज़ी नहीं बोलते मगर समझते तो हैं और ये मुझे कई गज़ब जगहों पर ले जाने वाले हैं । रास्ते में कई जगह सुरंगें भी हैं । बहरहाल, ये वाली बंदरगाह के रास्ते में पड़ी--

ये जज़ीरा घर है माउंट मियाहारा कहलाने वाले एक ज़िंदा ज्वालामुखी का और यहाँ एक म्यूज़ियम में माउंट मियाहारा का पूरा इतिहास बयान है कि किस सन् में ये किस-किस बिन्दु से फटा । सन् छियासी में फटा तो क्या नज़ारा था, किसी का जला हुआ सूटकेस धरा है तो किसी बच्चे ने याददाश्त से हाथ से बना कर वो नज़ारा काग़ज़ पर उतारा है, अखबारों की कतरनें हैं, विस्फोट के वक्त निकल कर उड़ने वाले वो टुकड़े हैं जो गिर कर बम की तरह फटते हैं, जनता को समझाने के लिए बनाए गए रेखाचित्र हैं । एक वर्ल्ड मैप लगा है जिस के नीचे लगा बटन दबाने पर दुनिया भर के ज्वालामुखियों के स्थान पर लाल बत्ती जलती है । जापान में ऊपर से नीचे तक लाल बत्तियाँ जगमगा उठती हैं , भारत में बस एक जगह अंडमान निकोबार द्वीप समूह में एक टापू पर । सोचता हूँ ईश्वर ने हमें कितनी अच्छी ज़मीन दी लेकिन हमने उसे कैसे रखा और यहाँ देखिए इतनी आपदा के बावजूद देश को कैसे प्यार से किसी बाग़ीचे की तरह सहेज के रखा है । खैर, पिक्चर अभी बाक़ी है --

इसके बाद मैं रुख करता हूँ माउंट मियाहारा का जो बराबर धधक रहा है फिर से फट पड़ने के इंतज़ार में लेकिन रास्ते में जगह-जगह शरण स्थल बने हैं ताकि ऐसी सूरत में आप सहायता आने तक वहीं इंतज़ार करें । बहरहाल, थकान काफ़ी हो गई है सो बाक़ी का हाल कल ही लिख पाना मुमकिन होगा क्योंकि सवेरे आठ बजे नींद ना खुली तो नाश्ता भी शायद ठंडा ही नसीब हो ।

6 comments:

  1. Nice photographs and description as well.Yes, we are a little negligent of our heritage, esp. our literary heritage.

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  2. खूबसूरत चित्रावली सहित सार्थक प्रस्तुति।

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  3. सीतेश श्रीवास्तव23 March 2012 at 23:51

    मुनीश जी

    आप Lonely Planet पुस्तक के यात्रा संवाददाता के लिए उत्तम अभ्यर्थी हैं.

    - सीतेश

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    1. सीतेश जी मैं एप्लाई कर दूँगा जैसे ही फ़ुर्सत हुई । शुक्रिया, खुशआमदीद ।

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  4. ओह, प्रकृति की प्रचुर शक्ति की झलक देखने को मिली।

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