हिन्दुस्तानी हिसाब से देखें तो महज़ 2507 फ़ुट की पहाड़ी है लेकिन हिल ना कहला कर माउंट का दर्जा रखती है । दो वजहें हैं- एक, इस टापू पर सबसे ऊँची पहाड़ी यही है सो पहाड़ हुआ और दो, इसमें विनाश की ताक़त है सो सम्मान दिया जाता है इसलिए पहाड़ी नहीं पहाड़ है । रास्ते में जगह-जगह शरण स्थल बने हैं ताकि फट पड़ने की सूरत में आप वहाँ जान बचा लें । ऊपर पहुँच कर बाक़ायदा क्रेटर तक जाया जा सकता है । धुँआ कई जगह से उठता नज़र आता है । सवेरे समुद्र तट पर जलने की जो गन्ध आ रही थी उसका राज़ अब समझ में आता है । यूँ तो सारे टापू की मिट्टी लावे की राख है सो काली है और समुद्र तट की चट्टानें तक जमा हुआ लावा ही हैं लेकिन माउंट मिहारा के आस-पास मीलों तक बिखरे गाढ़े, जमे हुए काले लावे का एक अलग ही मंज़र है ।
क्रेटर तक जाने से रोकने के लिए बाड़ लगी है क्योंकि इसके धधकते लावे में कूदकर एक ज़माने में आत्महत्याएँ भी बहुत हुई हैं । 1936 में 600 से ज़्यादा लोगों ने इसमें कूद कर जानें दीं । ऐसा कोई इरादा नहीं रखता लेकिन फिर भी बाड़ पार करके क्रेटर में झाँकता हूँ । भभक महसूस की जा सकती है । पाँव तले लावा के जमे हुए पत्थरों की रोड़ी है और हवा बेहद तेज़ है इसलिए जल्दी ही पीछे हटता हूँ । याद आता है कि 1985 में आई मशहूर फ़िल्म गोडज़िला में विशालकाय दैत्य को इसी क्रेटर में क़ैद कर दिया गया था क्योंकि उसे मारना मुमकिन ना था । मैं कोई अकेला नहीं हूँ और भी पर्यटक हैं जो क़ुदरत के इस अजूबे को देखने चले आए हैं । क्रेटर से कोई 500 गज पर एक मंदिर है । बताते हैं सन् 86 के भीषण विस्फोटों के दौरान भी इस छोटे से मंदिर का कुछ नहीं बिगड़ा जबकि ठीक यहीं से मीलों-मील आग बरसती रही । ये एक ऐसा चमत्कार है जो बताता है कि हमसे ऊपर कोई है जो इस खेल को जैसे चाहे चलाता है । बहरहाल उस ताक़त को मैं शिव का तांडवकारी स्वरूप जानकर वहाँ शीश नवाता हूँ और लौट आता हूँ । ड्राइवर साब इंतज़ार कर रहे हैं कि अब मुझे और भी हैरतअंगेज़ नज़ारों की तरफ़ ले जाएँ ।
rochak
ReplyDeleteसोनल जी धन्यवाद आपकी सराहना के लिए । मयख़ाने में आपका आना ख़ुशआमदीद ।
Deleteaapke is kaam ko salute sir
Deleteसागर भाई शुक्रिया ये तो काम से जान छुड़ाने का बहाना था उसपे आपकी तारीफ़ मिली जाती है और क्या चाहिए ।
Deleteजी क़ुदरत के रंग निराले अनुराग भाई ।
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