Saturday 5 November 2011

चायना टाउन (दूसरा डिस्पैच)

जैसा कि मैंने पहले भी ज़िक्र किया चायना टाउन नाम की बस्तियाँ दुनिया के कई मुल्कों में आबाद हैं और जापान के योकोहामा शहर का चायना टाउन इन तमाम बस्तियों में खासी अहमियत रखता है । इसके बसने की भी एक कहानी है । दरअस्ल सन् सोलह सौ तीन से अठारह सौ अड़सठ तक का ज़माना जापान की तवारीख़ में एदो पीरियड के नाम से मशहूर है । एदो दौर में यहाँ काफ़ी अमन-चैन रहा और सायंस से लेकर अदब और तमाम तरह की कलाएँ खूब पनपीं । इस दौर में जापान ने एक सोची-समझी नीति के तहत खुद को बाक़ी दुनिया से काटे रखा, मग़रिबी मुल्कों से हर तरह के रिश्ते को तो बिल्कुल ही खत्म कर डाला । यानि हॉलैंड जैसे इक्का-दुक्का मुल्कों के अलावा अपने दरवाज़े बिल्कुल बंद कर लिए ।
लेकिन फिर जुलाई 1853 में चार जहाज़ों का बेड़ा लेकर अमरीकी नेवी का कमाडोर पैरी, एदो की खाड़ी में किसी अज़ाब की तरह नमूदार हुआ और सब कुछ बदल गया । उसने धमकी दी कि या तो तिजारत करो या फिर हमला झेलो । 1854 में हुए एक अहदनामे के तहत अमरीका को यहाँ एंट्री हासिल हुई और फिर धीरे-धीरे बर्तानिया समेत और तमाम मग़रिबी ममालिक को भी । बहरहाल गोरे सौदागरों को सबसे पहले योकोहामा में रहने की जगह दी गई मग़र इस शर्त पर कि उनका रिहायशी इलाक़ा एक खाई या कंटीली तारों से घिरा होगा और वहाँ रहने के कुछ क़ायदे तय किए गए । कन्नाइ नाम के इस इलाक़े में रहने वाले गोरे सौदागरों को काम-काज के लिए आदमी चाहिए थे जो चीन से आए और इस तरह ये चायना टाउन बना । उसी दौर में मछुओं का गाँव योकोहामा बंदरगाह के तौर पे फ़लना-फ़ूलना शुरू हुआ और आज ये दुनिया का एक अहम बंदरगाह है और मेरा पसंदीदा शहर भी ।तो ये समझ लीजिए कि योकोहामा शहर की एक बस्ती है ये और अब यहाँ बसे तमाम चीनी, जापानी ज़ुबान बोलते हैं मग़र अपनी पुरानी रवायतें भी क़ायम रखे हैं । कुल मिलाकर चायना टाउन का अहसास कुछ ऐसा है जो भड़कीले लाल, सुनहरे रंगों से भरपूर है मग़र इसमें वो नफ़ासत नहीं जो जापानियों की फ़ितरत का एक अहम हिस्सा है ।यहाँ हाथ देखकर क़िस्मत भी बाँची जाती है और सैलानियों में ये खासा पॉपुलर है। जापानी भी खाने-पीने यहाँ खूब आते हैं ।
मेरे लिए ये देखना दिलचस्प रहा कि यहाँ की सबसे बड़ी दुकान किसी हिंदुस्तानी जड़ों वाले मुस्लमान की थी जहाँ कजरारे-कजरारे...समेत तमाम हिंदी गाने बज रहे थे , अगरबत्तियों का धुँआ माहौल को मदमस्त बनाए था और दुकान के माल-टाल का तो कहना ही क्या । सबसे ज़्यादा भीड़ भी यहीँ थी । आप भी देखें और मज़ा लें क़सम उड़ानझल्ले की................

12 comments:

  1. जी शुक्रिया डॉक्टर साहिबा ।

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  2. गजब कर दिया मुनीष भाई बोतल तो आज नजर ही नहीं आयी है या मुझे दिखाई ही नहीं दे रही है। सभी फ़ोटो अच्छे लगे खासकर वो हिन्दी के थैले वाला तो आगे की प्रतीक्षा है।

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  3. मनीष भाई फोटो मैं मजा आ गया
    लेकिन इस बार "मधु" नहीं दिखाई दी

    क्या बात है .................?

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  4. @Jat dev & Fakira- भाइयों इसे बेर झोल्ले पे हनुमान जी जो बैठाल राक्खे हैं , थम ध्यान तैं देक्खो फेर बोल्लो अक बोत्तल क्यूंकर
    धरणे की गलती करैं ?

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  5. ट्रिपल शुक्रिया मुनीश जी!
    चाइना टाउन की एक्स्ट्रा सैर का, भारतीय थैले दिखाने का और ... और तीसरा हनुमान जी का।
    जय हो!

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  6. @Smart Indian- शुक्रिया आपका जो आप हमसफ़र हुए इस आवारगी में ।

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  7. Well, nice to know that people of Indian origin are flourishing there also, as they are almost everywhere in the world.

    You sure have an eye for beautiful women; the first picture here and some pics in other posts are enough evidence of that. Good.

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  8. जी हाँ आपने सही कहा हामिद साब ।
    मैं आपसे सहमत हूँ ।

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  9. Allah kare zor-e-shabab aur zyada.

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  10. Behad sunder pictures hai ji...Hanumanji bi achhe lag re hai...

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  11. Behad sunder pictures hai ji...Hanumanji bi achhe lag re hai...
    Vineeta

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