ज़लज़ले अक्सर आते हैं यहाँ । अभी सुबह भी पूरी इमारत थर्राई । लेकिन शनिवार सुबह नींद तोड़ने वाला वो ज़लज़ला ज़मीनी नहीं आसमानी था । एक के बाद एक फ़ाइटर प्लेन्स की जाने कितनी स्क्वॉड्रन्स । कान - फ़ा़डू शोर और काँपती हुई खिड़कियाँ , दरवाज़े ।जब शोर थमा तो मैंने कुछ चुनींदा गालियाँ हवा में उछालीं मग़र अब नींद कहाँ ... । सुबह के छः बजे थे मैंने इस हौलनाक शोर के बावजूद रज़ाई ताने सोते दोस्त को उठाया । पता लगा कुछ नहीं पास में अमरीकी एयर बेस है- आत्सुगी जहाँ कोई रुटीन एक्सरसाइज़ चल रही है और माची-दा इलाक़े के लोगों को इसकी आदत है ।हालांकि कुछ ने ध्वनि-प्रदूषण के ख़िलाफ़ कोर्ट में भी मुक़्द्दमा दायर कर रखा है ।बहरहाल, बाहर बारिश हो रही थी सिगरेट जलाई और टी.वी. ऑन् किया । ओबामा साहब फ़र्मा रहे थे कि अब गल्फ़ और अफ़गानिस्तान के बाद हमें एशिया-पैसिफ़िक पर ध्यान देना है जहाँ सबसे ज़्यादा अमरीकी निर्यात होता है और अमरीका में नौकरियाँ बनी रहती हैं वगैरह । इलाक़े में चीन के बढ़ते दबदबे से ज़ाहिर है वो कुछ ख़फ़ा मालूम देते थे । सिगरेट बुझने तक इस एयर-एक्सरसाइज़ की वजहें समझ आ चुकी थीं ।दिल ने कहा सब अपनी ड्यूटी कर रहे हैं लेकिन इस तरह की एक्सरसाइज़ वीकेंड के अलावा भी तो रखवाई जा सकती थी ओबामा साहब । दिन गुज़रा प्रॉपर्टी डीलरों के चक्कर में चूंकि मौजूदा घर एक अकेले आदमी के संभाले नहीं संभलता । सिर्फ़ सोने के लिए चार कमरे ज़्यादति और फ़िज़ूलखर्ची नहीं तो क्या है । सोचा था एक छोटा सा कमरा वहीं दोस्त के घर के पास ले लूँगा लेकिन ओबामा साहब के हवाई रंगरूटों ने इरादा बदलने को मजबूर किया है । बहरहाल...शाम को तोक्यो यूनिवर्सिटी ऑफ् फॉरेन स्टडीज़ का चक्कर लगा जहाँ हिन्दी पढ़ने वाले छात्र हर साल की तरह हिंदी ड्रामा पेश करने वाले थे । नाटक के अलावा हिंदी फ़िल्मों के गीतों पर भी वो जम कर नाचे और वाक़ई समाँ बाँध दिया । तोक्यो में पिछले दस साल से हिंदी पढ़ा रहे प्रोफ़ेसर ऋतुपर्ण के दफ़्तर में जमा रहा । भारत और जापान के रिश्तों के कई सुनहरी सफ़े खुले और उनसे ये मुलाक़ात यादगार रही ।तोक्यो में भारतीय स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस की समाधि दिखाने का वायदा उन्होंने किया है तो साबित हुआ कि कई बार दिन की इब्तिदा खराब हो तो ज़रूरी नहीं कि इंतेहाँ भी खराब ही हो । आपका क्या ख्याल है --
antrraashtriy post .akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteनीन्द खराब करने वाले जहाज़ मुझे भी पसन्द नहीं। लेकिन राष्ट्र-सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है। नाटक साके और कम्पनी ने मूड बना ही दिया होगा बाद में। स्वतंत्रता सेनानी रास बिहारी बोस की समाधि के बारे में जानने की उत्सुकता है।
ReplyDeleteश्रीमान आप जापान मैं करते क्या हैं ???
ReplyDeletepadh to li hai samajhne men time lagega yahni shukrvar ki rat :)
ReplyDelete@Akela- जी मैंने सिर्फ़ हाले दिल बयां किया ।
ReplyDelete@Fakira- जी मैं आराम करता हूँ ।
@Sunil-जी बात इक रात की फ़िल्म याद है आपको ?
हर जगह के अपने रंग और जीवन के ढंग होते है......
ReplyDeleteख्याल नेक है... गर हम भी जापान में होते तो :)
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