- १ "पर्वताःदूरतःरम्या" --इससंस्कृत कहावत का अर्थ है कि पर्वत दूर से ही सुन्दर/रहने योग्य लगते हैं !
- २ पहाड़ों में प्रचलित 'रम' नामक पेय मूलतः समुद्री -टापुओं का माल है।
- ३भारत में हिमालय से मोहब्बत बँगाली करते हैं और दुनिया में स्केंडिनेवियाई.
- ४ पहाड़ में सड़कें नेपाली और बिहारी मजदूर बनाते हैं .
- ५सब होटलों का मल -मूत्र पवित्र नदियों में गिरता है.
- ६ ये अब कूड़े के ढेर बनते जा रहे हैं।
- ७ पानी पहाड़ों में दुर्लभ है और यात्री गंद मचाना ,प्रदूषण फैलाना धर्म मानते हैं .
- ८ वक्त धीरे चलता है वहां इसीलिए कहावत बनी ' पहाड़ जैसा दिन'.
- ९ पहाडी राज्यों में बहुत से लोग मराठी और राजस्थानी मूल के हैं.
- १० हिमाचल की बजाय खाना उत्तराखंड का बढ़िया होता है।
- ११ सड़क,सुविधाएं हिमाचल की बढ़िया होती हैं ।
- १२ चरस उत्तराखंड में जीवन शैली का का अंग है तो हिमाचल में अंतरराष्ट्रीय व्यापार का ।
- १३ स्वदेशी शराब बनाने ,पीने का अदब लद्दाख में है ।
- १४ पहाड़ में आदमी काम कम करता है , औरत ज़्यादा लेकिन डोगरा, कुमाओं, गढ़वाल, नागा ,लद्दाख स्काउट्स और गुरखा जैसी विश्व स्तरीय रेजीमेंट भी इन पहाड़ों की देन हैं .
- १५ नेपाल के बाद माओवाद उत्तराखंड को खाने की ताक में है ।
- १६ कश्मीर पर चर्चा खर्चा मांगती है !और...
- १७ जो समाज कश्मीरी पंडितों के निष्कासन पर मौन है वो अवश्यमेव उन्हीं की नियती को प्राप्त होगा ,कल नहीं तो परसों -नरसों .
- १८ बाई दा वे भारतीय पहाड़ों में सर्व- सुलभ सिगरेट ब्रांड कैप्सटन है .. ......आपका क्या ख्याल है ?
Wednesday, 27 October 2010
पहाड़ संबंधी कुछ फुटकर , आम-फहम बातें
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मुनीश जी पहाड़ दूर से ही नहीं नजदीक से भी बहुत सुन्दर लगते हैं|
ReplyDeleteपहाड़ों में वक्त धीरे नहीं चलता,चढाई बहुत धीरे धीरे चढ़ी जाती है|
बिल्हुल सही कह रहे हो। सौ प्रतिशत सहमत हूं।
ReplyDeleteहां, शराब और सिगरेट की जानकारी नहीं है।
प्रिय पाटली वासी ! मैंने तो बस कहावत का ज़िक्र किया जो तब बनी जब सड़कें न थीं . आज भी जब सड़क बह जाती हैं क्या पर्वत दूर से ही रम्य नहीं लगते ? देखो मैदान की तुलना में तो समय वहां धीरे ही बीतता लगता है . आप दिल्ली रहो कुछ दिन मैं तो वहां जाता ही हूँ.
ReplyDeleteनीरज भाई जिसके पैर में फटी बिवाई वो ही जाने पीर परायी , तुम भी घुमंतू हो सो मेरी बात समझ गए !
ReplyDeleteपहाडों के बारे में ये आम बातें जानना अच्छा लगा। कुछ ऐसे ही विचार अपने भी हैं।
ReplyDeleteपोस्ट अच्छी लगी जी
प्रणाम
yahi umeed thi mujhe apse :P
ReplyDeleteMunish bhai, acchi jaankari di aapne. dhanyawaad.
ReplyDeletePoint no. 2 aur 18 ke baare mai to mera gyan bhi 0 hai...per banki baate to bilkul sachhi sachhi kahi hai pane...
ReplyDeleteKya Bat hai, lekin ek bat hai ki pahad pe angur ki Tea peene aur bhi maja aata hai.
ReplyDeleteपहाड़ों के बारे में अच्छी जानकारी मिली, आभार।
ReplyDeletePoint no. 18 is also correct; it used to be my brand till I gave up smoking.
ReplyDeleteRegarding Kashmiri pandits, their problems are being ignored because they do not constitute a vote bank. Our politicians listen only to those who are either a nuisance or who constitute a vote bank.
masha allah... laakh takey ki baatein pahadon par munish bhai...jiyo...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपने बिलकुल सही कहा है...खाना उत्तराखंड का अच्छा होता है और सड़कें हिमाचल प्रदेश की अच्छी हैं...
ReplyDeleteबात तो सही है....लेकिन शाम ढलने से पहले तक चाय और कॉफी का मजा पहाड़ जैसा और कहाँ..
ReplyDeleteकुछ चीज़ें और भी हैं|
ReplyDelete1:युवक काम की तलाश में शहरों का रूख करते हैं , और घर पर रहते हैं माँ-बाप, पत्नी , बच्चे | पहाड़ों में बूढ़े, बच्चों और महिलाओं का प्रतिशत युवाओं से कहीं ज्यादा है | एक कहावत , पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के ही काम नहीं आती |
2:आज , पहाड़ी अपनी ही जमीन पर बने होटलों में बैरों का काम करता है | पहले कभी, पहाड़ियों को हमेशा फौज का लोलीपोप चूसने को दिया गया, गोया वे और कुछ नहीं कर सकते हों |
3:हम ११ चचेरे भाइयों में से २ कंप्यूटर प्रोग्रामर हैं | एक पंडिताई का पुश्तैनी राग अलाप रहा है | बाकी ८ या तो होटल में काम करते हैं , या सपना पाल रहे हैं | ये पहाड़ के हर घर की कहानी है |
पहाड़ों पर आपकी पोस्ट में जो कटु सत्य रह गया था उसे अपूर्ण ने पूरा कर दिया........
ReplyDeleteबाकि ये दुःख का विषय है की हम महानगर के लोग जहाँ भी जाते हैं - वहीं गन्दगी फैलाने जाते है....