Sunday, 17 October 2010
मयखाने में रायता
खाना चूंकि खाने की चीज़ है ,जीने के लिए खाना ज़रूरी है सो खाता हूँ और खाने के बारे में ज्ञान बघारने वालों से तो ख़ासा खार खाता हूँ . जनाब विनोद दुआ तो खैर फिर भी कभी -कभी मगर श्री वीर सांगवी को तो जब देखिये खाने ही के बारे में लिखता -बोलता पाता हूँ . इन हज़रत को कश्मीर समस्या और स्टीम्ड पीकिंग डक पकाने के बारे में एक ही सांस में बोलते भी देखा जा सकता है . मैं नहीं समझता कि और मुल्कों में ऐसी हस्तियाँ न होंगी मगर पांच सितारा होटलों , जहाज़ों और शताब्दी ,राजधानी टाइप गाड़ियों में खाने की बर्बादी के खौफनाक मंज़र जिन्होनें देखे हैं वो अमरीका के साबिक हुक्मरान जनाब जार्ज बुश के इस बदनाम ओब्ज़र्वेशन से ना-इत्तेफाकी नहीं रख सकते कि मिडिल- क्लास हिन्दोस्तानी खाते बहुत हैं . इस पर काफी खिंचाई हुई थी उनकी मगर कुछ गलती उनकी भी थी . कहना चाहिए था कि खाते कम हैं , बिखेरते और बघारते ज़्यादा हैं . जिसे देखिये टी. वी. पे खाना पकाने सिखाने चला आ रहा है . सो खाने और खाना प्रेमियों के मुताल्लिक ऐसे घृणित विचार रखने के नाते मुझे कोई हक़ नहीं बनता कि मैं खाने या उसके स्वाद के बारे में पीने के इस मंच पे अपने विचार बिखेरूं या कहिये रायता फैलाऊं! मगर बात है ही ऐसी के कहाँ जाऊं . हाल-फिलहाल मुक्तेश्वर से लौटना हुआ . रस्ते में जगह थी साहब सलड़ी. हल्द्वानी से भीम ताल की चढ़ाई के रस्ते में पड़ती है . होंगी कोई सात -आठ दुकानें जहाँ लोग अक्सर चाय-शाय के वास्ते रुक जाया करते हैं . एक दूकान कोने वाली जिसके बाहर गाड़ियाँ धोने के वास्ते एक हौज भी था, ब्रेड पकौड़े और रायता का अजब कम्बीनेशन बेचती देखी . भूख लगी थी ले लिया . रायता अन्दर जाते ही कविराज भूषण से लेकर अब तक पढी सभी वीर रस की कवितायें याद आने लगीं . कानों से धुआं और आँख से पानी . पता किया तो बताया कि साहब पीसी हुई राई का कमाल है , ताज़े कसे खीरे और मूली के लच्छे भी गज़ब ढाते थे मतलब गाढ़ी मदमाती दही में तरावट का वो मंज़र के क्या कहिये!एक रोड साइड की दूकान और ये शऊर ,दिल किया फोटो ले लें . मगर फिर आवाज़ आई कि क्या खाना -टाना ही रह गया लिखने को . वापसी के हफ्ते भर बाद जगह का नाम भूल गया मगर स्वाद नहीं तो कबाड़खाने वाले भाई अशोक पांडे से पूछ-ताछ की . उन्होंने बताया के मालूम पड़ता है सलड़ी का रायता चख लिया इसीलिये अब तक सन्नाटे में हो . मैंने सस्ता शेर पे उनके रायते संबंधी शेर और रायते के बारे में कबाड़खाने पे पोस्ट ज़रूर पढी थीं मगर समझ अब पाया हूँ .
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सिल्ड़ी को सलड़ी कर देवें मुनीश भाई!
ReplyDeletejee kar diya .
ReplyDeleteभूल गए! सब इंद्रियाँ शिथिल हो जाने पर सिर्फ जिव्हा सुख बचता है, पर हाय रे दुनिया के दर्द, बीमारियों के कारण ये सुख भी छिनता जा रहा है। वैसे बुजुर्गों का कहना है कि जवानी में खाया ही बुढ़ापे में काम आता है। तो गाओ, रायता ही रायता हो दामन में जिसके क्यों न वो खुशी से वो दीवाना हो जाये..........।
ReplyDeleteKabhi Almora jana ho to GARAMPANI ek jagah parti hai raste mai waha ke RAYTE ka taste bhi jarur leve...per jara sambhal ke...
ReplyDelete@Nanak--sahi kaha ji.
ReplyDelete@Vineeta ji --Jee aglee fursat mein vahin jaoonga !
ब्रेड पकौड़े और रायता का अजब कम्बीनेशन बेचती देखी . भूख लगी थी ले लिया . रायता अन्दर जाते ही कविराज भूषण से लेकर अब तक पढी सभी वीर रस की कवितायें याद आने लगीं .
ReplyDeleteha ha ha hmm Vinod Dua ko khabar de deejiye unke kanon se dhuan nikalta dekhna sukoon deh rahega kyunki us halaat mein bhi wo kahenge lazzatdaar..laajawab ...:)
I like this post...
ReplyDeleteअरे क्या याद दिला दिया आपने ..उस रायते के साथ भुने आलू के टुकड़े का भी कोम्बिनेशन मिलता है, ताली लाल मिर्च के साथ ..उफ़..
ReplyDeleteक्या रायता फैला दिया आपने अब बिना खाए नींद नहीं आएगी.
शीर्षक को पुष्ट किए देता हूँ.
ReplyDeleteसम्भवत: 2000 पूर्व उत्तरांचल dry था.
कहीं-कहीं परमिट वाली सरकारी दूकानें ही थीं.
परमिट से बेचने वाले मयखानों के आसपास खीरे का रायता और एक मांसाहारी व्यंजन के अड्डे अनिवार्य रूप से मिलते थे.