Saturday, 16 October 2010
मुख़्तसर में मुक्तेश्वर (अंतिम भाग )
गेस्ट हाउस की छत पे हमें पहाड़ी चिड़िया 'गोंतियाली'(बार्न स्वेलो ) का घोंसला दिखा । देखते ही पहचान इसलिए गए चूंकि नैनीताल -वासिनी विनीता यशस्वी के ब्लौग पे इस चिड़िया की बाबत हम पढ़ चुके थे । भाई शरद तिवारी के 'फ्रेंड्स एस्टेट' में मटरगश्ती की जहाँ उन्होंने स्टीविया , लेमन ग्रास और एक और खुशबूदार जड़ी-बूटी के पौधे के बारे में हमें जानकारी दी जिसका के इस्तेमाल कुछ चीज़ों में काफी कारगर बतलाया जाता है । बहरहाल , ताज़े, कच्चे भुट्टों का स्वाद भी गज़ब का था और मूलियों का तो कहना ही क्या । कचिया ,मुलायम भुट्टों की मिठास, झरने में धुली शुभ्र -वर्णा मूलियों का तीखापन , सिगरेट का मद्धिम धुआं और उसपे पहाड़ी वन-औषधियों की दिलकश खुशबू माहौल को मायावी बनाये दे रही थी ।
मुक्तेश्वर का असल आकर्षण है पर्वतराज हिमालय की हिम-मंडित श्रृंखला का १८० डिग्री का दीदार । सवेरे -सवेरे ये चोटियाँ बिल्कुल साफ़ नज़र आती हैं और फिर दिन चढ़ने के साथ -साथ बादलों में छिपती जाती हैं । ये तस्वीर हमने दोपहर डेढ़ बजे ली थी । इस नज़ारे के लिए आपको पी डब्लू डी गेस्ट हाउस के लान में खड़ा होना पड़ता है 'बिना आज्ञा प्रवेश वर्जित' की तख्ती को नज़रंदाज़ करते हुए । इसी गेस्ट हाउस के पीछे कुमाऊँ मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस से भी हिमालय के दीदार किये जा सकते हैं या चाहे तो 'चौथी जाली' की चट्टानों पे खड़े होके देखिये ।यहाँ आप 'रॉक - क्लाइम्बिंग और 'रिवर- क्रॉसिंग ' के अभ्यास में भी हाथ आज़मा सकते हैं। ' चौथी जाली' जगह का असल नाम है और स्थानीय लोग तथा 'आउटलुक ट्रेवलर' दोनों इसी नाम का प्रयोग करते हैं मग़र कुछ हरामी होटल वालों ने उसे 'चोली - जाली' लिख मारा है वहां ,आप कन्फ्यूज़ न हों । यूं तो मुक्तेश्वर में हर जगह आप हिमालय की गोद में ही होते हैं मग़र बात है १८० डिग्री के नज़ारे की । वैसे एक बार सोना पानी में हुई ऐतिहासिक ब्लौगर मीट में भी ऐसा ही सुन्दर हिम दर्शन मिला था । जानवरों की दवा-दारू और नस्ल पे रिसर्च के वास्ते यहाँ आई वी आर आई नाम से एक मशहूर संस्थान भी है जिसका कैम्पस ला-जवाब है , बेमिसाल है । लिंगार्ड हाउस ,जहाँ हम रुके , इसी की प्रोपर्टी है । हो सके तो ज़रूर देखना चाहिए चूंकि बांज के पेड़ों का अद्भुत जंगल भी इसी परिसर में आता है और सख्त निगरानी की वजह से ये पेड़ यहाँ सुरक्षित बने हुए हैं । इसके अलावा मुक्तेश्वर का हर मोड़ मस्त है , हर मंज़र ज़बरदस्त है । यदि दिल्ली से जाना हो तो मुक्तेश्वर जाने के लिए नैनीताल से भी जा सकते हैं और हल्द्वानी से भी . बरसात को छोड़ कर सभी ऋतुएँ अनुकूल हैं सफ़र के लिए । तो फिर देर किस बात की निकल चलिए मुक्तेश्वर की ओर.... और हाँ भोले बाबा पे मेरी तरफ से भांग-बूटी चढ़ाना मत भूलिए बाकी जो है सो है !
मयखाना
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शुक्रिया इस मनोरम छटा का दर्शन कराने के लिए !
ReplyDeleteपहाड़ों के आकर्षक नज़ारे देखकर आनंद आ गया ।
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति ।
I visited Mukteshwar quite a few years back; your post has rekindled memories.
ReplyDeleteRegarding snow peaks, I once saw them from Kasar Devi(on the outskirts of Almora)on a full moon night sometime in December years back. It was absolutely mesmerizing, a scene which remains etched in my memory. Although I visit the area quite often, I could never see a repeat of that scene; there is either some haze or clouds that prevent a clear view. But I have not given up yet.
@Manish--Khush-aamdeed !
ReplyDelete@Dr. Daral--Do visit the place in nxt. fursat Dr.saa'b.
@Prof. Hamid--If God willing,I'd love to join u for a drink sometime somewhere in Kumaon.
दो बार नैनीताल ,कौसानी तक जा कर भी मुक्तेश्वर क्यों नहीं गयी ...अफ़सोस हो रहा है
ReplyDelete@Munish, you're welcome.
ReplyDeleteइस साल दो महीने जबरदस्त बारिश से मुक्तेश्वर जाने का रास्ता खत्म सा ही हो गया है। अभी जरा ठहरकर जाना चाहिये।
ReplyDeleteमुनीश जी, आप कब गये थे? रास्ता कैसा था?
@नीरज --अरे अभी हफ्ता भी न हुआ होगा . मस्त रास्ता है मगर काशीपुर-हल्द्वानी से जाओ , बाजपुर से नहीं . रामपुर भी ठीक रास्ता है .
ReplyDeleteachhi post...achhi pictures...
ReplyDeletemunish Barn Swallow ka hindi naam ABABEEL HAI...kumaun ki paharo mai ise "Gontiyali" kahte hai...
@Vineeta-- If this is ababeel then it is not a rare bird .
ReplyDeleteno...its not rare bird...its very common in Pahar...
ReplyDeletelovely post!!
ReplyDelete@ i don't believe u , am not flattered !
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