Wednesday, 13 October 2010
मुख़्तसर में मुक्तेश्वर( भाग-१)
मुक्तेश्वर के सफ़र में मेरे हमसफ़र रहे शरद तिवारी जिन्हें ग़ज़लों के कद्रदान एफ. एम . गोल्ड चैनल से प्रसारित होने वाले 'अंदाज़े बयां' और दीगर प्रोग्रामों में चाव से सुनते हैं । लखनऊ में पले-बढे शरद का पहाड़ों से नाता पुराना है, पुश्तैनी है । वहां की समस्याओं से सरोकार रखते हुए 'फ्रेंड्स' नामक अपनी संस्था के ज़रिये अपना योगदान करते रहते हैं और अब वहीँ बस जाने का इरादा रखते हैं । प्योर उर्दू के शानदार तल्फ्फुज़ के धनी शरद भाई ग़ालिब और मीर के अलावा वाल्मीकि और तुलसीदास के कम्पेरिज़न पे भी क्लास ले सकते हैं । बहरहाल, मैंने एक रात उस कुटिया में काटी जो उन्होंने अपने कंस्ट्रक्शन वगैरह की निगरानी के लिए ले रखी है । अंग्रेज़ी पत्रकारिता के जाने -माने नाम और मौजूदा सीनियर एडिटर --'तहलका'-- जनाब रमन किरपाल किसी स्टोरी के सिलसिले में आये हुए थे ,साथ में थे भाई नगेन्द्र मिश्रा जो स्वेच्छा से पुलिस की नौकरी छोड़ कर 'फ्रेंड्स' संस्था के ज़रिये अब रमन और शरद के साथ पर्वतीय समाज की सेवा में लगे हुए हैं ।दोनों हमारे साथ कुटिया में ही टिके रहे । अगले दिन शरद और मैं लिंगार्ड हाउस में शिफ्ट हो गए जो अंग्रेजों के ज़माने का एक ला-जवाब रेस्ट हाउस है । प्राचीन शिव मंदिर के अलावा मुक्तेश्वर का कोई ख़ास क्लेम टू फेम नहीं है । हाँ एक और पुराना गेस्ट हाउस ज़रूर है जहाँ मशहूर शिकारी जिम कार्बेट अक्सर रुकना पसंद करते थे मग़र वो तबकी बात है जब शेर बघेरे हुआ करते होंगे , हमें तो फ़कत ३-४ गीदड़ नज़र आये लेकिन कहते हैं गीदड़ अगर है पास तो शेर भी वहीँ - कहीं होगा .........ख़ैर ,हमें धूम्र-धूसरित दिल्ली के नज़दीक एक और लवली पहाड़ी ठीया मिल गया है . आपके शहर-ऐ-बीमार के भी आस -पास कोई होगा , अब ढूंढ भी लो मेरी जान !
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wow!!!
ReplyDeletekya khub jagah gaye aap ghumne ki liye...pics dekh ki achha laga...
नवाज़िश के लिए शुक्रिया विनीता जी !
ReplyDeleteसही है भाई घूमे रहो - वैसे बोतलों में रम नहीं दिखती क्या हुआ ? :-) और पांडे जी "डबल" "डबल" बिलैक हुए सुना ?
ReplyDeleteसही पकड़ा मनीष भाई ! पी तो रम और बीयर ही गयी , ये यार लोगों का माल-टाल है जो अभी तक पड़ा होगा कुटिया के कोने में अध्- पिया ! पांडे जी को जिस दिन आपकी भेजी बोतल मिली ,इत्तेफाक से उसी शाम उनके एक मित्र ने भी वही सर्व की :)
ReplyDeletebadi mast jagah hai munish bhai.
ReplyDeleteजी हाँ धर्मेन्द्र भाई ये बहुत प्यारी जगह है घूमने के लिए और घर बनाने के लिए भी !
ReplyDeleteBhai wah...isey kahte hain peeth mein chhura bhonkana...theek hai bachhoo ghoomo maze mein...hamaari yaad kabhi na karna :(
ReplyDeleteदरअस्ल शरद को तो काम से जाना था मैं तो बस लद लिया साथ में . बहरहाल , बहारें फिर भी आयेंगी :)
ReplyDeleteI envy you .... why can't I indulge in such outings ...
ReplyDeleteJust great !! LAGEY RAHO !!
This blog is a ploy to instigate U to have outings whenever possible Meet bhai :)
ReplyDeleteThnx fo' encouraging words .
Nice photographs esp. Lingard House and the tempting leftovers in the last one.
ReplyDeleteHope u read nxt. part as well Prof.Thax .
ReplyDeleteमुक्तेश्वर कभी जाना नहीं हुआ । दिल्ली से रूट के बारे में भी बताइये ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत फोटोज हैं । बेहतरीन ।
Doc' saab pls. take hapur>gajraula>kashipur>haldwani >bheemtaal route for reaching there.
ReplyDeletebahut khoobsurat pics hain....
ReplyDeleteThnx Shefali.
ReplyDeletekatti... hamen nahi le gaye na...
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