Sunday, 27 June 2010
कुत्ते को घी हज़म नहीं होता उर्फ़ ब्लौगवाणी की मौत
जब एक दफ़े पहले ब्लौगवाणी ने पंख समेटे थे तब भी मैंने कहा था कि ये ब्लौगवाणी वाले मेरे रिश्तेदार नहीं मग़र इनका यूं जाना अच्छी बात नहीं ! संस्थापक भाई मैथिली के सुपुत्र सिरिल से आज फ़ोन पे हुई बातचीत के आधार पे ये निश्चित तौर पे कहा जा सकता है कि वाकई फिलहाल ब्लौगवाणी रि-वाइवल की उम्मीद से न सिर्फ परे है बल्कि ये मर चुकी है । सिरिल का कहना था कि स्वान्तः सुखाय एवम मातृभाषा के सेवार्थ आरम्भ किया गया ये उपक्रम उनके लिए जी का जंजाल हो चुका था ! शिकायतियों की तादाद हद से गुज़र रही थी और देखने को और भी बहुत से काम थे उनके पास ! हालांकि अग्ग्रेगैटर और भी हैं मग़र ब्लौग्वाणी की कमी हमेशा रहेगी और इसका यूं बंद होना 'धर्मयुग' , 'पराग ', 'दिनमान' और 'सारिका' के बंद होने जैसा ही है ।एक्स- संचालकों को हार्दिक शुभकामनाएं ! हिन्दी के लड़ाकू चिट्ठाकारों को निस्संदेह राहत मिली होगी और ब्लौगवाणी द्वारा उपलब्ध कराये साहित्यिक मंच का उपयोग राजनीति ,समिति और चुनावों के लिए करने वालों को नसीहत ---' कुत्ते को घी हज़म नहीं होता ' ये कहावत बिल्कुल सही है दोस्तो !
पसंद-नापसंद के शाश्वत विलाप के अलावा चीन के साम्राज्यवादी मंसूबों को फलीभूत करने में जी-जान से जुटे लोगों द्वारा इस मंच का दुरूपयोग और 'जूनियर ब्लौग टंटा समिति' के चुनाव ब्लौगवाणी को खा जाने वाले ख़ास तत्त्व रहे ।
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बेहद अफ़सोस हुआ.अभी तक तो उम्मीद लगाये बैठे थे.....
ReplyDeleteब्लोगवाणी के संचालक संवेदनशील लोग प्रतीत होते हैं. नाहक छोटी छोटी बातें दिल पर ले लेते हैं. घी की इस अपच के शिकार क्या वाकई कान धरने लायक हैं क्या !
ReplyDeletenahin hota shayad....
ReplyDeleteक्या कहें मगर हमें तो अब भी उम्मीद है. हाँ, उनके व्यापारिक दायित्व तो निश्चित ही प्राथमिक हैं फिर ब्लॉगवाणी का नम्बर आता है.
ReplyDeleteशिकायतों तो क्या है-सबको खुश रख पाना कब भला संभव हुआ है.
ये तो मुश्किल है। ब्लॉगवानी का बंद होना सही में एक दुखद अध्याय है। पर हिंदी ब्लॉग की शुरुआत है। आगे कोई न कोई आएगा।
ReplyDeleteबहुत मीठा मीठा हो चुका चलो कुछ कड़वा ही सही
ReplyDeleteमेरी भी सोच कुछ ऐसी ही है -मगर मुफ्तखोरी भी कोई ठीक बात नहीं ...नापसंद वाले मुद्दे पर आजिज होकर मेरे मुंह से भी एक दिन बेसाख्ता फूट पड़ा था कि लगता है ब्लागवाणी अब धृतराष्ट्र हो गयी है ...और दुर्भाग्यपूर्ण संयोग या जो कुछ भी हो ब्लोगवाणी अगले दिन बंद हो गयी .....पिछले बार ब्लोगवाणी के जाने पर बहुत बेचैनी थी मगर इस बार नहीं है ..कारण हम ऐसी सेवाओं का मुफ्त उपभोग करते हैं और उसी की लानत मलामत करते हैं -मुझे इंतज़ार है ऐसे अग्रीगेटर का जो निशुल्क न हो और अपने उपभोक्ताओं का ध्यान रखे ...चिट्ठाजगत से अपील है कि वह यह बोझ अब निशुल्क न संभाले -यह सुविधा अब सशुल्क करे .ताकि ब्लॉग संकलक उपभोक्ताओं की एक जिम्मेदार कौम उभर सके ....
ReplyDeleteहम मुफ्तखोरी की प्रवृत्ति भी त्यागें ......
ReplyDeleteअब तक ब्लोगवाणी के फिर से जीवंत होने का इन्तजार था ..
ReplyDeleteशिकवे- शिकायतों से घबरा कर छोड़ जाना ठीक हो तो जाने कितने ब्लॉग अब तक बंद हो जाने चाहिए थे ...मगर प्रतिकूल हालात में भी टिके रहना हौसले का काम है ...
हो सकता है उनकी प्राथमिकतायें कुछ और हों ...मगर ब्लौगवाणी का इस तरह बंद होना बहुत दुखद है ..
शिकायतें तो हमेशा रहेंगी ...उनसे बात करो कि फिर से विचार करें ..उनका योगदान हिंदी ब्लॉग्गिंग में अतुल्य है !!
ReplyDelete... कुछ --- को घी के मुफ़्त के लड्डू हजम हो रहे थे इसलिये ब्लागवाणी के अनियमित व अव्यवहारिक सिस्टम को समर्थन कर रहे थे...
ReplyDelete... यदि ब्लागवाणी अपने पसंद/नापसंद के अनियमित व अव्यवहारिक सिस्टम में सुधार नहीं कर पा रहा था तो उसका बंद हो जाना ब्लागजगत के लिये हितकर ही है ... !!!
... संभवत: कुछ --- तो अभी भी मुफ़्त के लड्डू खाने की फ़िराक में समर्थन में खडे हैं ...
ReplyDelete... हां एक कहावत और सुनी हुई है कि ... "भिखारियों को भीख में मिली हुई "खोटी चवन्नी" भी असली लगती है" ...!!!
The contact section of blogvani was disabled when it stopped its services , the mail to blogvani team was bouncing back so i knew it has closed and i stand with them in thier desicion to close blogvani
ReplyDeleteregds
पर यह अच्छा नहीं हुआ !!
ReplyDeleteब्लागवाणी बंद करके सिरिल जी ने ठीक ही किया. नापसंद के खिलाफ आज बोलने वाले उन दिनों की याद करें जब चिट्ठाकारों ने ही नापसंद वाला आप्शन शुरू करवाया था. किसी भी पोस्ट को नापसंद करने का निर्णय लेखन के स्टैण्डर्ड को लेकर होना चाहिए था लेकिन गुटबाजी करनेवालों लोगों ने उसे व्यक्तिगत दुश्मनी साधने का हथियार बना लिया. उसके बाद कोई ब्लागवाणी को धृतराष्ट्र कह रहा था तो कोई यह कहते हुए चार लाइन की पोस्ट टिका देता था कि गालियों वाली टिप्पणियां ब्लागवाणी क्यों नहीं हटाता. क्या चाहते हैं ये चिट्ठाकार? कि वे जगह-जगह गन्दगी करते फिरें और ब्लागवाणी उसे साफ़ करता रहे?
ReplyDeleteआपस में एक-दूसरे से लड़ेंगे, एक-दूसरे की पोस्ट को नापसंद करेंगे और दोष देंगे ब्लागवाणी को. बेशर्मी की हद है भाई.
"दुख हुआ ब्लोग वाणी के बन्द होने से..."
ReplyDeleteवर्तमान परिस्थितियों में ब्लागवाणी का एकदम सही निर्णय… आपने मिसाल भी चकाचक दी है… :)
ReplyDeleteसही कहा
ReplyDeleteऔर ब्लागवाणी का बन्द होना अफसोसजनक है।
प्रणाम
मरी कुतिया को कोई लात नहीं मारता.
ReplyDelete---Dale Carnegie
यानि आप अगर प्रासंगिक हैं और महत्त्व रखते हैं तो आपकी आलोचना होगी ही, नहीं हैं तो कोई कोई गाली देने लायक भी नहीं समझेगा.
सिस्टम का दुरूपयोग करो.. और सिस्टम को गाली दो....
ReplyDeleteतुम हो तो गाली देगें और चले जाओगे तो याद करेंगे.. क्या प्यार है...
बंद करे न करे उनका फैसला है... मुझे लगता है.. संवाद तो हो ही सकता है....
@श्रीयुत मिश्र जी को मालूम हो कि नापसंद नापसंद खेल पर जब लोगों ने यह कहना आरम्भ किया कि इसमें सिस्टम का क्या दोष तो मैंने ही ब्लोग्वानी के लिए यह कहा कि वह धृतराष्ट्र हो गयी है ..मैंने गिरिजेश जी और अन्य से भी कह कह कर खुद के ब्लॉग पोस्ट पर भी प्रतिक्रया स्वरुप नापसंद के चटके लगवाये और दूसरों पर लगाये भी -किसी भी सिस्टम के दुरुपयोग के समय उसकी काट होनी चाहिए ...सब कुछ भस्मासुरों पर क्यों छोड़ा जाय -ब्लागवाणी की जनोपयोगी मुहिम निश्चित रूप से असंदिग्ध थी ..पर हर अच्छी चीज एक न एक दिन चली ही जाती है -हमें इतनी अपेक्षा क्यों करनी चाहिए ....और मुफ्त का माल उड़ाने की प्रवृत्ति से भी बाज आना चाहिए ..अब वक्त आ गया है जब सशुल्क संकलक हमारे बीच आयें -तब शायद हम उनकी कीमत समझ पायेगें और अपने व्यवहार को भी नियंत्रित करेगें !
ReplyDeleteइसे स-शुल्क सुविधा बनाने की बाबत जब मैंने कहा तो उत्तर यही मिला कि जब लोग फ्री-सर्विस को लेकर भी आधारहीन शिकायतों का पिटारा खोले रहते हैं तो पैसे देकर तो जाने क्या कर बैठें ? और कराओ चुनावी टंटे !
ReplyDeleteकाजल जी की बात ठीक है ....इतनी अधिक संवेदनशीलता इतने साल बाद ठीक नहीं है .खास तौर से जब ....आप यहां इतना वक़्त गुजार चुके हो .... कुछ .रोने पीटने वाले लोगो को नज़र अंदाज करना ही भीतर है......क्यूंकि उनकी प्रवति रचनात्मक नहीं है ....ना कभी होगी ... ये ता उम्र रोते पीटते रहेगे ... आप चाहे उन्हें कितना ही बेहतर क्यूं न दे दो...... इससे बेहतर ऑप्शन तो ये था ...जिन्हें ब्लोग्वानी पसंद नहीं वे इसे छोड़ दे ....काहे को इससे चिपके बैठे है
ReplyDeleteना तो हजम होता है, ना ही होगा।
ReplyDeleteब्लागवाणी को बन्द कराने के पीछे एक साजिश है इसे बन्द कराने के लिये दो लाख रु.का ठेका दिया गया था कुछ ब्लागरों ने मिलकर अभियान चलाकर इसे बन्द कराया है इसमे कौन कौन ब्लागर का हाथ है शीघ्र मालुम चल जायेगा।
ReplyDeleteब्लोगवाणी का एक स्थान , एक महत्व तब भी था जब ये चल रही थी और अब भी है जब ये बंद हो गई है (स्थाई या अस्थाई , पता नहीं ) क्योंकि निर्विवाद रूप से हिंदी ब्लोग पोस्टों पर सबसे ज्यादा पाठक भेजने का काम इसी ने बखूबी किया था । और ये कमी तो खलेगी ही ।
ReplyDeleteBlogvani ko punah arambh kiya jaye. Abhi to yahi maang karunga.
ReplyDeleteBhai Cyril ki mehnat aur lagan ka qayal hun. Ummmed hai wo isey phir shuru kar hi denge.Haalanki badla hua roop mukjhe hazam nahin hua.
ReplyDeleteब्लॉगवानी का बंद होना सही में एक दुखद अध्याय है।
ReplyDeleteशुक्रिया मैथिली जी एंड सिरिल
ReplyDeleteये कहानी कोई नई नहीं है मुनीश। एक ज़माने में काफी समय तक अच्छा काम करने वाले नारद को भी ऐसे ही कुछ कारणों से समाधि लेनी पड़ी थी।
ReplyDeleteइस तरह के एग्रग्रेटरों के बंद होने से सबसे ज्यादा नुकसान नए ब्लॉगरों का होता है। पर अप्रत्यक्ष रूप से ये भी देखने को मिल रहा था एग्रग्रेटर की ये चौपालें धींगा मुश्ती का अखाड़ा बन गई थीं। क्या नए क्या पुराने सबने अपने वर्चस्व की लड़ाई के लिए ब्लॉगवाणी को हल्दीघाटी का मैदान बनाया हुआ था। ये स्थिति भी हिंदी ब्लागिंग के लिए कोई अच्छा प्रभाव नहीं छोड़ रही थी।
इतने सारे मसलों में किसी का भी पक्ष लेने में गाली मालिक को ही मिलती है। आखिर क्यूँ कोई बिना किसी आर्थिक लाभ के अपना इतना समय इन सब बातों में झोंकेगा। वैसे भी एक सीमा से ज्यादा ब्लॉगों की संख्या हो जाने के बाद कोई एग्रग्रेटर बिना विषय वर्गीकरण के शायद ही प्रभावी हो पाता है।
मेरे ख्याल से अब एग्रग्रेटरों का विकास विषय विशेष के हिसाब से होना चाहिए। ब्लागरों को अपने कांटेंट पर ध्यान देना चाहिए ताकि अधिक से अधिक पाठक गुगल सर्च, इ मेल सब्सक्रिप्शन, फीड सब्सक्रिप्शन आदि से आ सकें ताकि एग्रग्रेटर पर उनकी निर्भरता कम हो।
प्रसिद्धि का घी हजम नही कर पाई और मर गई ब्लागवाणी , एक एंगल यह भी है सोचने का ।
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