Monday, 28 June 2010

एक छोटी सी डरावनी फ़िल्म

मक़सद आपको डराना नहीं बल्कि इस अचरज में आपको साझीदार करना है कि कैमरा सुलभ होने के चलते कैसे-कैसे प्रयोग लोग आज कर रहे हैं इस फिल्म का टाइटल है 'भिक्षा' और इसमें एक ही अभिनेता डाक्टरी पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर और पढ़ने वाले प्रशिक्षु डॉक्टर की दोहरी भूमिका में नज़र आता है फिल्म की अवधि महज़ मिनट ५८ सेकण्ड है और अभिनेता ख़ुद को 'lone banyan tree ' यानि 'एकाकी बरगद' कहता हैमैं नहीं जानता क्यों मग़र ये फिल्मकार कहता है कि उसे ये कहानी 'गोदान' में दिए दान की याद कराती है(साभार-यू ट्यूब)

5 comments:

  1. बेहतरीन,
    हम तो सच में डर गये, अब देर रात लैब में अकेले काम करते डर लगा तो जिम्मेदार आप और मोहन...

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  2. मोहन सर की जय...हम तो पलट कर देख रहे हैं..न जाने कोई पूछ रहा है बेटा, मुनीष की फिल्म देख ली..

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  3. "हकीकत में अचरज भरी फिल्म थी..."

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  4. हा हा हा ! सफ़ेद रंग की हड्डियाँ देखकर तो हम भी डर गए भाई ।
    वैसे अच्छी फिल्म है बनाई।
    बधाई।

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  5. जोरदार! कहते हुए खबरदार! सुन्दर।

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