Tuesday, 30 March 2010

अलविदा मारुति--८००.

अप्रैल शुरू होते ही दिल्ली में मारुति-८०० की बिक्री बंद हो जायेगीपुरानी ८०० चलेंगी लेकिन नई ८०० की बिक्री अब यहाँ प्रतिबंधित हैफिलहाल, एस्टिलो चलाता हूँ मग़र एक लम्बे समय मैंने मारुति-८०० की मजेदार सवारी की मौज ली है और कभी एक पोस्ट इस ऐतिहासिक गाड़ी को समर्पित की थीआज श्रद्धांजली स्वरुप वो पोस्ट फिर छापता हूँ भर्तृहरि एक नामी राजा हुए हैं और अपने राज-काज से ज़ियादा वो याद किए जाते हैं उन बातों के लिए जो उन्होंने इंसानी फितरत , खुदा की नेमत और हुस्न की आग के बारे में कही हैं उनके तमाम अशआर 'नीति शतक', 'वैराग्य शतक 'और 'श्रृंगार शतक' नाम के तीन दीवानों में कलमबंद मिलते हैं कहते हैं 'वक़्त' या कहें 'काल' के बारे में उनका कहा आज के सबसे बड़े साइंस- दान जनाब स्टेफन हाकिंग्स से काफ़ी मेल खाता है आप फरमाते हैं --"कालो यातः वयमेव यातः '' याने वक़्त नहीं बीत रहा ,हम ही बीत रहे हैं '' मशहूर शायर जनाब जां निसार अख़तर के बेटे और सूडो -सेकुलरिस्टों की ज़ीनत मोहतरमा शबाना के खाविंद जावेद अख़तर साहब ने इस सब्जेक्ट पे एक नज़्म कही है जो आपके दीवान 'तरकश' में सहेजी गई है बहरहाल," वक़्त नहीं हम ही बीत रहे हैं" , मेरी मारुती कार भी बीत रही है अपना पन्द्रहवां सालाना उर्स वो इसी सितम्बर में मना चुकी है इन पन्द्रेह बरसों में मैं अपनी कार के मुकाबले कहीं ज़ियादा बीता हूँ मगर महकमा ट्रैफिक वालों का फरमाना है के आपसे हमें कोई शिकवा नहीं लेकिन १९९३ मॉडल की मारुती अगर आप अब भी चलाना चाहते हैं तो इसका 'फिटनेस' सर्टिफिकेट ले आइये उनकी मंशा समझनी मुश्किल नहीं बड़ी- बड़ी कार कम्पनियों ने उनके अफसरान को निहाल कर रखा है वो चाहती हैं के पुरानी गाडियाँ हटें तो नई बिकें मारुती वालों से ये कोई नहीं पूछ सकता के भाई ऐसी कार बनाते ही क्यूँ हो जो १५ साल बाद भी सही सलामत चलती रहे मुझे अपनी कार से कोई शिकायत नहीं हरियाणा के गावोँ की भुसंड-भदान सड़कें हों या केट विंसलेट की चम्पई जांघों सी रेशमी कालका-शिमला रोड , रेणुका झील से पोंटा साहब का लद्दाख की याद दिलाता कच्चा रस्ता हो या आज के दौर की तमाम इंडियन हीरोइनों के पापी पेट जैसी सपाट नजीबाबाद -lansedown रोड इस गाड़ी ने मुझे कभी धोखा नहीं दिया हाँ हरियाणा टूरिस्म ने ज़ुरूर दिया एक दफे दगशाई (हिमाचल) जाते हुए मोरनी हिल्स के रस्ते में लगे एक बोर्ड को देख मैं शोर्ट-कट के चक्कर में कालका की तरफ़ उतर गया जो नदी किनारे के गोल पत्थर की ढुलाई का रस्ता था और करीब १५ किलो मीटर का ये रस्ता हिमालयन कार रैली की प्रैक्टिस के लिए बेजोड़ हो सकता है वहाँ से भी इस गाड़ी ने निकाला (निकालता तो खुदा है मगर मैं सेकुलर भी तो हूँ ) और ठीक पेट्रोल पम्प के सामने ही बंद हुई जहाँ इसकी वजेह महज़ बैटरी कनेक्शन का वायर हटना बताया गया अब इस गाड़ी को बेचने का जी तो नहीं मगर रखना भी जी का जंजाल है चूंकि किसी दिन ये ज़ब्त भी हो सकती है अगर 'फिटनेस' लिया तो !क्या करूँ समझ नहीं आता और -.५० लाख में आजकल कौनसी बढ़िया गाड़ी है ? गाड़ियों के बारे में ब्लॉग बन्धु अपने ख्याल यहाँ बाँट सकें तो इनायत होगी

3 comments:

  1. आज भी इसे खरीदने लायक पैसे नहीं हैं मेरे पास

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  2. Is saal ho jayenge ! mera ashirvaad hai magar bhoolna nahin jo maine kaha !

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  3. हमने भी आज ही सुना है। मारुति 1000 पहली गाडी थी मुझे स्कूल टाईम में पसंद आई थी और आज भी पसंद है। खैर ...

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