हूश हरियाणवी बच्चे ,जिनके साथ मैं पला बढ़ा , अक्स़र किसी भी बड़े -छोटे को पकड़ लेते और कहते ''तू कह लस्सी '' या ''ताऊ बोल लस्सी '' और जब वो बोल देता ''लस्सी'' तो जवाब होता ''हत्तेरी नाक में रस्सी '' और फ़िर लस्सी और रस्सी की इस rhyme पर लगता एक पुरज़ोर ठहाका जिसमे दोनों ही पार्टियाँ बराबर की पार्टनर होतीं ।''हल्दी'' ...''तेरा ब्याह जल्दी '' का फार्मूला लड़कियों पे आज़माया जाता । बहर हाल , आज भी कभी लस्सी का गिलास देखता हूँ तो लड़कपने का वो मंज़र आंखों के सामने तैर जाता है और लस्सी की वो सोंधी महक और दिलकश ज़ायका भी याद आता है जो कुल्हड़ या कलई वाले पीतल के गिलास की लस्सी में होता था । यूं तो लस्सी पाँच सितारा होटल से लेकर छोटी बड़ी दुकानों में आज भी बिकती है मगर नातो वो वैसी दिखती है और न ही स्वाद वो रहा । हरियाणवी रेफेरेंस में बोलने से ये मतलब न लगाया जाए के लस्सी बनाने का कोई ख़ास फन रहा हो वहां । हरियाणा की USP है छाछ या मट्ठा । लस्सी नफासत मांगती है के कितनी देर उसे बिलोया जाए और मीठा किस मिक्दार में डलेगा और ये फन पुरानी दिल्ली , जयपुर , मथुरा , मेरठ और अमृतसर के पुश्तैनी हलवाइयों के यहाँ आज भी मिल जायेगा मगर ज़रा ढूँढना पड़ेगा , ढूँढने लायक है भी ! साथ में भांग का ठेका भी दिखाई दे तो समझो मंजिले मक़सूद पा ही ली आपने ! चीयर्स !! ''
Cheers, lets have one glass of it in this lovely morning...
ReplyDeleteaaj to peeni he paregi lassi... bahut mann karne laga, ye post read karne k baad... lunch time jaldi se ho jaye bas... :)yahan milegi tab ki to baat hai na... mujhe nhi lagta milegi... pass he mein mall hai ek wahan pata karte hain....aapne to jee lalcha diya...
ReplyDeleteWooo...ye mausam aur Lassi...kya baat hai...
ReplyDeleteDelhi mein Khari bawli se naya baans ki aur jaane wali gali ke nukkad par kabhi vaisi he lassi milti thi jiske liye aap aanhen bhar rahe hain. Aaj pata nahin wo lassi wala hai ki nahin, dundhna padega, GARMI KA WO BENAZIR TOHFA.
ReplyDeleteआज ये लाईन दिमाग आई थी।
ReplyDeleteफिर वही गर्मी के दिन आने वाले है और हम लाल मिर्च की चटनी, गाढी सी लस्सी, और रोटी खाने वाले हैं।
और हाँ जी हम तो पूरे साल लस्सी ही पीते है।