कोटद्वार से लैंसडाउन जाते वक्त एक जगह कण्वाश्रम भी है। कण्व ऋषि की कहानी तो मुझे नहीं पता लेकिन सुना है यहीं पर इंद्रदेव ने विश्वमित्र की तपस्या तोड़ने के लिये मेनका को भेजा था। मेनका की ही पुत्री थी शकुंतला जिसके पुत्र भारत के नाम पर इस देश का नाम भारत वर्ष हुआ। वैसे जब लैंसडाउन पहुंच जायें तो खिरसू ज़रूर जाना चाहिये। वहां के टूरिस्ट रेस्ट हाउस का भी नवीकरण हो चुका है। शानदार जगह है।
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
कोटद्वार से लैंसडाउन जाते वक्त एक जगह कण्वाश्रम भी है। कण्व ऋषि की कहानी तो मुझे नहीं पता लेकिन सुना है यहीं पर इंद्रदेव ने विश्वमित्र की तपस्या तोड़ने के लिये मेनका को भेजा था। मेनका की ही पुत्री थी शकुंतला जिसके पुत्र भारत के नाम पर इस देश का नाम भारत वर्ष हुआ। वैसे जब लैंसडाउन पहुंच जायें तो खिरसू ज़रूर जाना चाहिये। वहां के टूरिस्ट रेस्ट हाउस का भी नवीकरण हो चुका है। शानदार जगह है।
ReplyDeleteहिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!
ReplyDeleteलेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.
अनेक शुभकामनाएँ.
जय ताड़केश्वर
ReplyDeleteवाकई मस्त है ये तो ...
ताडकेश्वर, यमकेश्वर, कण्वाश्रम, मुण्डेश्वर कई मन्दिर ऐसे हैं, जो इसी इलाके में स्थित हैं। सब के सब एक से बढकर एक शान्तिप्रिय और मनोरम हैं।
ReplyDeleteसुन्दर! Yellow साहब/साहिबा की बात से पूरा इत्तेफ़ाक़. खिर्सू की बात भी निराली है.
ReplyDeleteउत्तम! उत्तमोत्तम!
@all --- क्यों मैंने सही कहा था ना ? है ना , बोलो... बोलो ....है ना..........
ReplyDeleteBilkul... apne bilkul sahi kaha tha...
ReplyDeleteBahut acchi jagah hai...
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