Wednesday, 10 March 2010
लो जी फ़ौजी आ गया मौज में पहन के वर्दी खाकी .....
जंग होती है तो सैनिकों में से कुछ को शहादत मिलती है तो कुछ को मेडल भी ! कुछ एक अनुभव लेके सलामत लौटते हैं तो कुछ अपने हाथ -पाँव देकर । लड़ाई ख़त्म हो जाती है , मग़र एक अपाहिज फौजी के लिए तो एक नया मोर्चा खुल जाता है । जैसे-जैसे दिन बीतते हैं ना-शुक्रा समाज उसके बलिदानों को भूलता जाता है या किसी दिन अचानक उसकी कुर्बानी को महज़ सिक्कों में तौलने की कोशिश कर बैठता है मग़र ऐसे में वो क्या कहता है आइये सुनें ईमान-धरम (१९७७) से ये रफ़ी और मुकेश की एक दुर्लभ जुगलबंदी .......उत्पल दत्त के लिए तो शब्द कम पड़ जायेंगे देखें....
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सही कहा...
ReplyDeleteआभार इस गीत के लिए.
आभार इस गीत के लिए!
ReplyDeleteसुनने के लिये कान पर मशीन लगा ली है, लोड हो रहा है. अभी सुनता हूं
ReplyDelete"आज भी तेरी चाल पे हम कुर्बान वतन के शेरा!"
ReplyDelete"तूने अपना फ़र्ज निभाया, अपना फ़र्ज है बाकी!"
ओ जट्टा आयी बिसाखी!
फिल्म मैने देखी तो नही है, लेकिन इसमे कुछ खास लग रहा है, देखनी पडेगी.
Very True...
ReplyDeleteSabhi fauji bhaiyon ko salaam!
ReplyDeleteAap deen-raat ko jaagteo aur hum aap hee logo ke karan ghar mei aaram se sote hai.
जयहिन्द साब जी ।
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