Tuesday, 16 March 2010

मयखाने में राशिफल

रोज़ की तो नहीं कहता ,बाक़ी इतवार के अखबार को खोलते ही मैं सबसे पहले राशिफल बांचता हूँ । हालांकि कुछ ही देर में उसको भूल भी जाता हूँ मगर जाने क्यों ? मुझे याद है कई साल पहले इंडियन एक्सप्रेस में पीटर वीडल राशि- फल लिखते थे जो कई बार सच हुआ करता था , फ़िर माँ प्रेम उषा को पायोनीयर में देखा । ताश के पत्तों से भविष्य बताने वाला उनका कालम अपने शायराना अंदाज़ के लिए भी पढने लायक होता था । बेजान दारूवाला जब हैं ही दारूवाला तो उन्हें दोष नहीं देता । दो -तीन दफे तो कुछ हफ्तों के वक्फे पे मैंने ज्यूं की त्यूं वो सेम राशियां पढीं जो पहले भी छप चुकी थीं । इधर हिंदुस्तान टाईम्स ने कई बार अंक-ज्योतिष और जन्म -तिथि दोनों तरीके से राशिफल साथ -साथ छापा जो ज़ाहिर है किसी आदमी के लिए अलग -अलग ही होता है ,ऐसे में किसे सच मन जाए, किसे झूठ ? ज्योतिष जो भी है उसके कुछ ऐसे उसूल ज़ुरूर हैं जो बदलते नहीं । किसी पेशेवर ज्योतिषी के पास तो गया नहीं बाक़ी एक साधू ने मुझे हीरा पहनने की सलाह दी थी । फ़िर एक दफे एक तिब्बती लामा ने भी मुझे यही कहा । इस बात को क्रॉस-चेक करने के मकसद से मैंने एक बुज़ुर्गवार से पूछा तो कुण्डली देख कर उन्होंने भी यही फ़रमाया । याने कुछ तो है । मगर इतना तय है के आज न तो वो राशि -फल बताने वाले रहे और न ही वैसे अखबार !

हाँ ये दीगर है के हीरा पहनने लायक पैसे जिस रोज़ आ जाएंगेमैं शायद 'कोन्येक' ,' शेम्पेन' और -कैलिफोर्निया -वाइन का फर्क एक बार फ़िर महसूस करना चाहूँगा । देखें राशि -फल में वो दिन कब आता है

3 comments:

  1. एक विद्वान पण्डित ने कहा था कि यह मेरा अंतिम जन्म है यानी इसके बाद मोक्ष । अब यह बात तो मरने के बाद ही पता चलेगा । तब तक इंतजार करते है ।

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  2. पंक्तियों का सार अत्यंत मनोहर है

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  3. पंडित जी से कहो कि हीरा उधार दे दें..फिर तो दिन ठीक हो ही जाने हैं, तो चुका देंगे. :)

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