Tuesday, 8 September 2009
पुलिसिया लंगूर
आज अखबार में पढ़ रहा था कि हिमाचल प्रदेश बंदरों के आतंक से जूझ रहा है । बात कोई नई नहीं है। अपनी कुछ यात्राओं के दौरान मैंने वहां बंदरों को खाना न देने संबन्धी निर्देश सड़कों पर लगे देखे हैं । यहाँ तक कि सरकार ने उन्हें और जंगली सूअरों को मारने की इजाज़त भी किसानों को दे रखी है और बंदरों को मरवाया भी गया है । अपने इस पाप के प्रायश्चित के लिए सरकार ने शिमला की जाखू हिल पर एक वानर अभ्यारण्य 'मंकी किंगडम' भी बनवा डाला है हालाँकि वहां तो बन्दर हमेशा ही चैन से रहते आए हैं । दरअसल क्या हिमाचल क्या राजस्थान सब जगह इंसान उनके प्राकृतिक आवास को हड़प करता गया है और फ़िर दंगे-फसाद का दोषी भी उन्हें ही ठहराता है । राजधानी दिल्ली भी कोई अपवाद नहीं है । यहाँ तक कि मध्य दिल्ली का वो इलाका जहाँ नाचीज़ का दफ्तर है वो भी इनके उधम से अछूता नहीं है । मगर इस संकट पर काबू पाने का एक इलाज यहाँ बरसों से आज़माया जा रहा है और वो भी कामयाबी,अस्थायी सही, के साथ ! राजू नाम का एक लंगूर यहाँ अपने मालिक के साथ एक दफ्तर सेदूसरे दफ्तर घूमता रहता है जिसे देख कर बन्दर वहां से निकल लेते हैं । कोई ढीठ बन्दर हत्थे चढ़ जाए तो राजू उसे थप्पड़ रसीद करके चलता करता है ! इस लंगूर के मालिक को बाकायदा हर महीने तनख्वाह भी मिलती है . अजय और विजय बेदी इस पर ' पोलिसिंग लंगूर' नामक वृतचित्र बना कर वाह -वाही भी लूट चुके हैं और कई इंटर नेशनल अवार्डों के साथ बी बी से भी सम्मानित हो चुके हैं ! बहरहाल, आइये देखें बेदी ब्रदर्स की फ़िल्म का ये टुकड़ा---
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पोलिसिंग लंगूर- बेहतरीन!!!
ReplyDeleteमुनीश भाई सही कहा आपने।इंसान बंदरो का ठिकाना खा गया है।हम लोग पहले मौधापारा मे रहा करते थे।घर के पीछे दादाबाड़ी थी जिसके खुले इलाको मे खुब पेड़ लगे हुये थे।उन पर बंदरो के झुंद रहा करते थे।धीरे धीरे पेड़ कटते चले गये और शहर के बीच से बंदरोका नामो मिशान मिट गया।
ReplyDeleteWe should respect our ancestors.
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने.
ReplyDeleteरामराम.
पुलिस का लंगूर या पुलिसिया लंगूर:)
ReplyDeleteयह बंदरों का आपस का मामला है
ReplyDeleteचलो भला बन्दर के डर से ही सही सफ़ाई की बात तो कर रहे है :)
ReplyDeleteIn my mohalla in Almora, this problem has assumed menacing proportions. The monkeys come often in groups of 20-25, and we have no option but to scurry for cover. They are brought from the plains and since there is hardly any food in the trees close by, they snatch whatever they can and also destroy the plants. The authorities have never given serious thought to this problem and the danger to the children and old people continues unchecked. Sometimes, the situation reminds me of the film 'Planet of the Apes'.
ReplyDeleteYe Raju bhai ko zara Nainital ka bhi pata bata dijiyega...mai bhi in Lagoor Bandro se bahut dukhi hu...
ReplyDeleteYe Raju bhai ko zara Nainital ka bhi pata bata dijiyega...mai bhi in Lagoor Bandro se bahut dukhi hu...
ReplyDeleteI thank u all dear monkey-troubled and monkey lover friends for sharing my concern.
ReplyDeleteIts very true that monkey menace is the cause of our action. When I was in dhenkanal, Orissa, I happened to see monkey group. I got scared because I had a image of Delhi's monkey-group in my mind that to what extent, they can mess up the stuff!
ReplyDeleteOur campus(IIMC) is covered by hills and it is situated in a valley so monkey used to pass by our campus every morning and evening and you would not believe that they did not hurt anyone as human had not destroyed the forests over there.
I observed that both the community(Human and Monkey)believed in a law--- live and let live!
aapke blog me aakar behtareen videos dekhne ko milte hain...thanks for sharing
ReplyDeleteसुन्दर!
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