Wednesday 17 June 2009

मयखाने में मंसूर

मेरे बाल सखा भाई नानक संगीत और साहित्य के प्रेमी हैं मैं भले ही इन इलीट-पर्सूट्स के चक्कर में ज़्यादा नहीं रहता मगर कभी रहा तो हूँ सो पुरानी हुड़क कभी -कभार उठ आने से इंकार भी नहीं करता बहरहाल , नानक सूफी साहित्य भी खूब पढ़ते हैं और देश के अति- प्रतिष्टित कार्यालय की ज़िम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए संगीत के लिए भी समय निकाल लेते हैं उनकी भेजी ये पोस्ट लगाकर मयखाने के पाप धुल जाने की उम्मीद मैं करता हूँ !

क़रीब चार सौ साल पहले बनारस में मंसूर नामक महात्मा हुए जिन्होने ईश्वर और जीव के शाश्वत संबंध पर गहरी रोशनी डाली और अनहलक-अनहलक (अहं ब्रह्मास्मि-अहं ब्रह्मास्मि) कहते हुए मौत को गले लगा लिया. उन्होने अपनी रचनाओं में ढोंग और पोंगेपन (धर्म चाहे कोई भी हो) पर बेखौफ़ चोट की. मयखाना में पेश है उनकी एक रचना:

अगर है शौक मिलने का, तो हरदम लौ लगाता जा।

जलाकर खुदनुमाई को, भसम तन पर लगाता जा।

पकड़कर इश्क़ की झाड़ू सफाकर हिजरए दिल को।

दूईकी धूल को लेकर मुसल्लह पर उड़ाता जा।

मुसल्लह फाड़, तसबीह तोड़, किताबें डाल पानी में।

पकड़ तू दस्त फिरश्तों का, गुलाम उनका कहाता जा

मर भूखों, रख रोजे, जा मस्जिद कर सिजदा।

वज़ूका तोड़ दे कूज़ा, शराबे शौक़ पीता जा।

हमेशा खा, हमेशा पी, न गफलत से रहो इक दम।

नशे में सैर कर, अपनी खुदी को तू जलाता जा.

न हो मुल्ला, न हो ब्रह्मन, दूईकी छोड़कर पूजा.

हुक्म है शाह कलन्दर का, अनलहक तू कहाता जा.

कहे मंसूर मस्ताना, मैने हक़ दिल में पहचाना.

वही मस्तों का मयखाना, उसी के बीच आता जा.

11 comments:

  1. मुनीश जी शुक्रिया आपका इस रचना को हम तक पहुंचाने का. इनसे पहले साबका नहीं पडा था इसलिए इनके तेवर से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाया. हर तरह के ढोंग और पोंगा पंथी के विरोध का आपने ज़िक्र कर ही दिया है, मैं इनकी भाषा की सहजता से भी प्रभावित हूँ. कुछ ऐसी ही सहजता वली दकनी की फुटकर तौर से पढ़ी रचनाओं में भी दिखी थी.तेवर इनके ज़्यादा कड़क लगे.

    ReplyDelete
  2. खुबसूरत अभिव्यक्ति जिसमे नयापन लिये हुये है एहसास और कटाक्ष ........ बहुत बढिया

    ReplyDelete
  3. Bahut khub...

    mujhe to inke baare mai aaj hi pata chala...

    behtreen post...

    ReplyDelete
  4. बहुत बढिया पोस्ट प्रस्तुत की है।आभार।

    ReplyDelete
  5. आभार मुनीश जी!

    ReplyDelete
  6. Dear sanjay,om,vini,paramjit,anil and albela ji ,
    ap sab saaheban ka shukriya ki apne mere dost ki post ko tavajjo dee aur samjha!

    ReplyDelete
  7. भाई मुनीश, मैं आपका शुक्रगुजार हूँ क्योंकि आपने ही मुझमे साहित्य की समझ पैदा की और उसके जरिये रोटी कमाने की जुगत भी आपने ही बताई, रही संगीत कि बात तो उसमें भी अप्रत्यक्ष योगदान आपका है !

    ReplyDelete
  8. MANSOOR ko blog ki duniya me lane le liye nanak ji aur munish ji ko koti koti sadhuwad ....

    ReplyDelete
  9. आओ हम पहन ले आईने
    सारे देखेंगे अपना ही चेहरा ॥

    सबको सारे हसीन लगेंगे यहाँ

    ReplyDelete
  10. मंसूर बनारस नही पर्शिया से थे

    ReplyDelete