. चकराता से लौट आया हूँ ,अपना दिल वहीँ किसी सड़क के पेचो-ख़म में धड़कता छोड़ कर . एक-आध दिन में वो भी लौट आएगा इसी शहर-ऐ-बीमार में ,सभ्यता के अचार में ! मगर तब तक उन पलों को एक बार फिर जी लेना चाहता हूँ इन तस्वीरों के सहारे जो मैंने वहां खेंची थीं . बर्फ़बारी वाले हिल स्टेशंस में चकराता यकीनन दिल्ली के सबसे करीब है मगर सरकारी सिविल प्रशासन और फौज के बीच तनातनी के चलते ये आज भी दिल्ली के गंद फैलाने वाले हरामी टूरिस्टों से दूर है . नेट पर इसके बारे में दी गयी जानकारी भ्रामक है और आधी अधूरी भी . इसीलिए वहाँ जाने वाले सैलानी इसकी वो अदा देखने से महरूम रह जाते हैं जो इसे बनाती है हम जैसे आवारों की पनाहगाह . उत्तर प्रदेश एक राज्य होने के साथ ही एक समस्या भी है (मेरा है ना! )और छुट्टी मनाने जाते हुए समस्या जितनी दूर रहे उतना बेहतर इसलिए वाया यू.पी. की बजाय वहां वाया हरयाणा-हिमाचल जाना मैंने मुफीद समझा और राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर एक पकड़ जा पहुंचा पीपली . बाएँ हाथ कुरुक्षेत्र का प्रवेश द्वार है और दायें सड़क यमुना नगर को निकल जाती है . मेरी ज़ियादातर पर्वतीय यात्राओं का बेस यही रहता है चूंकि यहाँ से हिमाचल और उत्तराखंड (अच्छे भले उत्तराँचल का मटियामेट नाम ) दोनों में घुसा जा सकता है और वो भी बिना भीड़-भाड़ तथा उत्तर-प्रदेश के ! बहरहाल , अपने दो मित्रों हिमांशु और मधुसूदन गौड़ के साथ उनकी गड्डी में कलेसर,पांवटा साहिब और डाक पत्थर होते हुए मैं कालसी पहुंचा जो चकराता का प्रवेश द्वार है . अभी कुछ समय पहले तक ये वन-वे रूट हुआ करता था और आने -जाने वाली गाड़ियों का वक़्त बँटा हुआ था मगर अब इस पर कभी भी जाया जा सकता है . रास्ता संकरा है सो रात को इसे न इस्तेमाल करें . वैसे आने-जाने के लिए सबसे बढ़िया रास्ता वो है जिस से हम नीचे उतरे और उसका ज़िक्र मैं अगली पोस्ट में करूंगा . बहरहाल चढाई शुरू होने से पहले हमने कालसी में अशोक का शिला लेख देखा और काली मंदिर के पास पहाडी नदी का लुत्फ़ लिया . अब तस्वीरों के ज़रिये जितना लिया जाए उतना आप भी लें . ( शेष अगली पोस्ट में )
अच्छी जगह की जानकारी दी है आपने ....वीकएंड अच्छा गुजारा जा सकता है ..अगली पोस्ट और चित्रों का इन्तजार रहेगा शुक्रिया
ReplyDeleteविस्तार से ताकि आपकी परेशानी दूसरों से दूर रहे, अगली पोस्ट का इंतज़ार है।
ReplyDeletebahut sundar chtra utara hai. badhayi.
ReplyDeleteBehtareen Chitra Chakrata ke bare mein jaanna dilchasp rahega.
ReplyDeleteChakrata ke baare mai jaan ke achha laga...
ReplyDeleteTasveern bahut achhi hai...
बहुत बढ़िया विवरण दिया..दिल लौट आया, तब और लिखियेगा!! :)
ReplyDeleteबढ़िया है साब! मगन कर देने वाली तस्वीरें! और वर्णन भी!
ReplyDeleteमुनीश जी,
ReplyDeleteजाता तो मैं भी लेकिन शनिवार को छुट्टी नहीं मिली..
इधर उत्तराखंड में एक और दिक्कत है. कई रूट ऐसे हैं जिन पर रात के समय यातायात बंद रहता है. अपनी गाडी हो तो ये दिक्कत थोडी कम हो जाती है, लेकिन मुझ जैसे पर-गाडिये के लिए तो ये बहुत बड़ी दिक्कत है.
खैर, रास्ता तो आपने दिखा ही दिया, जाऊँगा मैं भी कभी चकराता.
Following the eleventh order of emperor Ashok, I congratulate you for your services pressed in to promotion of travel-dharma.
ReplyDeleteअद्भुत!चक्कर खा गये चकराता की तस्वीरें देख कर्।मज़ा आ गया मुनीश भाई।
ReplyDeleteThanks a lot dear folks! pls .come again.
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