गर्मियां आ चुकी हैं और हर साल की तरह हिमालय को निरखने की खाहिश ज़ोर मार रही है । इस बार मोटर साइकिल से कोई ऐसा डेस्टिनेशन कवर करने का इरादा रखता हूँ जो दिल्ली से ४०० किलोमीटर के अन्दर -अन्दर हो । यात्रा में स्पीड का कोई रिकॉर्ड बनाने की मंशा नहीं है , ख़रामा-ख़रामा ६०-७० की चाल से हवाखोरी का मंसूबा है । यहाँ सफर के बाद की दास्ताँ तो कई बार आप-हम सुनते -सुनाते हैं और कई दफा अपने किसी बिज़नेस ट्रिप के दौरान ली गई तस्वीरों को चेप कर ख़ुद को इब्न-बतूता के जोड़ का सैलानी भी साबित करते रहते हैं मगर महज़ यात्रा के लिए यात्रा का मज़ा अलग होता है । अगर आप में से कोई मुझसे इत्तेफाक रखते हों तो प्लीज़ यहाँ कमेन्ट -बॉक्स में अपना इरादा ज़ाहिर करें । डेस्टिनेशन का चुनाव आम राय से ही होना है और फ़िर खर्चे -पानी को वर्क-आउट किया जा सकता है । हिमाचल में सबसे बड़ी कुदरती झील रेणुका है जो करीब सवा तीनसौ किलोमीटर है दिल्ली से , इसके अलावा शिमले से आगे नारकंडा भी सही है और उत्तराखंड में रानीखेत तक कई अच्छे स्पॉट्स हैं । अगर ये ट्रिप होता है तो ज़ाहिर है अपनी तरेह का ये पहला ट्रिप होगा चूंकि हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में ब्लोग्गेर्स- मीट भले होती हों ऐसी यात्रा अभी होनी बाक़ी है जिसे कुछ ब्लॉगर ,ब्लॉग के ही ज़रिये शेड्यूल करें और इसमें गुप-चुप इ-मेल या फ़ोन का कोई इस्तेमाल न हो । गाड़ी से यात्रा होती रहती है ,बाइक का मज़ा और है ,फ़िर भी गाडी वालों को भी कोई इनकार नहीं है । यात्रा के लिए जून का आख़री हफ्ता तै समझा जाए अभी तो ,बाक़ी जैसी पंचों की राय। कहिये क्या कहते हैं ?
आईडिया शानदार है।मन ललचा रहा है हिमालय को निहारने के लिये और सफ़र मोटर सायकिल का!वाह गुज़रा ज़माना भी याद दिला दिया आपने यामाहा की तस्वीर दिखा कर्।मेरी पहली और पसंदीदा मोटर सायकिल थी यमाहा आर एक्स 100।देखते हैं ईश्वर की क्या मर्ज़ी है।वैसे आपके खुले न्यौते का धन्यवाद्।
ReplyDeleteअनिल भाई मक़सद ये भी है के ब्लॉग के ज़रिये महज़ लफ्फाजी से बढ़कर कुछ हो ! आप मन बनायें , मैं आपको इसी कमेन्ट -बॉक्स में मिलूँगा । मैं कोई ट्रिप organiser नहीं मगर चाहता हूँ की इस प्रकार की एक यात्रा अवश्य हो जिसमें ब्लॉग की भूमिका रहे । With blog as a common thread lets do it!
ReplyDeleteTHE MORE THE MERRIER . THIS INVITATION IS OPEN TO ALL !!
ReplyDeleteहम भी है टीम में :)
ReplyDeleteदुनिया के तमाम बड़े काम इसी एक वाक्य ने अंजाम दिए हैं विनय जो तुमने अभी कहा । फ़िर ये तो महज़ हवाखोरी का मामला है यार । हम ज़रूर चलेंगे विनय ...तुम अपने तसव्वुर में कौनसी जगह माकूल पाते इस ट्रिप की खातिर ये तो कहो दोस्त। आख़री फ़ैसला वोट से होगा !
ReplyDeleteवाह !!! अच्छा कार्यक्रम है आपलोगों का ... शुभकामनाएं।
ReplyDeleteडिट्टो। चला जा सकता है।
ReplyDeleteअनिल भाई आपके जज़्बे को सलाम करता हूँ । टाइम तो ज़ाहिर है इलेक्शन के बाद का ठीक है पर कुछेक डेस्टिनेशन आप भी सजेस्ट करो । ४ से ५ दिन का टाइम लगेगा भाई जी । हौसला अफ़जाई का शुक्रिया संगीता जी।
ReplyDeleteOh ! Too tempting boss !! But then ... all the best for now ...
ReplyDeleteMeet bhai im also sporting a beard like u these days, come join us!
ReplyDeleteकिसी भी ऐसी जगह-
ReplyDelete१-जहां मोबाइल का नेटवर्क न हो।
२-अंग्रेजी लिखे लेबल वाली दारू न मिले।
३-कम से कम एक रात खुले आसमान के नीचे, स्लीपिंग बैग में पड़े-पड़े बीते।
जगह का नाम कबाड़ियों के खिमलू आशोक पांडे से जाना जा सकता है।
ये ठीक है । न तेरी न मेरी । सो अशोक भाई से ही पूछा जाए । आपका सुझाव सुंदर किंवा अप्रतिम है , श्लाघनीय है ।
ReplyDeleteसातताल (उत्तराखंड) के बारे में क्या ख्याल है! 7-8 घंटे में पहुच जायेंगे. बहुत कुछ है करने को इस पथरीले पहाड़ पर... शाम को यार लोग ताल में मछलियों के साथ तैरेंगे... कुछ पट गईं तो ज़मीन पर भी ले आएँगे :) और यहाँ तम्बू तानने (कैम्पिंग) भी सुविधा उपलब्ध है...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसात- ताल बढ़िया बताया जाता है , पता नहीं पानी साफ़ होगा या नहीं ?
ReplyDeleteAnil Yadav ka itihas - bhugol maloom kar leejiyega. Atmhanta ghumakkad. Ghumakkadi par na ho to bhi aise destination shahar mein hi create kar lene wala.
ReplyDeleteMaaf karna jalan ho rahi hai par laffaji se jyada kuchh nahi bas ka...
`sair kar duniya ki gafil...`
मज़ेदार योजना है आपकी ! कभी कभी हम कुछ सहेलियाँ दिल्ली की परिक्रमा करती हैं इसी तरह ! यात्रा की शुभकामनायें!
ReplyDeleteअमा ज़िद्दी भाई तुम भी चले चलो यार ,अभी काफ़ी बखत है तय्यारी का । ....और तुम्हारी ये शुभकामनाएं रागिनी पीछा करेंगी हमारा खुशबू बनकर.....
ReplyDeleteaj hee engine oil dalwaya hai. lets go.
ReplyDeleteतुम्हारे बाइकिंग के तजुर्बे का क्या कहना यार।
ReplyDeletebut lets wait for a common wish!
अपन को तो किसी तरह साइकल चलाना आ जाता है. सबसे पूछता हूँ, मोटर साइकल पर पिलियन राइडर की गुंजाइश हो तो हेलमेट खरीद लूं?
ReplyDeleteविजय भाई एक गाडी -ग्रुप भी साथ रहे तो कोई परेशानी नहीं , आप उसमें बैठें । हेलमेट और Hamlet दोनों छोडें बस हाँ कहें । मैं अशोक भाई के सुझाव का इंतज़ार यहाँ कर रहा हूँ चूंकि वो पहाडों का अनुभव काफ़ी रखते हैं ।
ReplyDeleteरामगढ एक बढ़िया जगह है दोस्तों जहाँ महादेवी वर्मा का स्मारक है . कहते हैं गुरुदेव रबीन्द्र नाथ ठाकुर को ये जगह काफ़ी पसंद थी और वो चाहते थे की शान्तिनिकेतन वहीं बने मगर कुछ वजहों से ऐसा न हो सका . बहरहाल कुमाऊँ में मौजूद इस स्पॉट पर किसी को कोई आपत्ति हो तो कहे । भाई अशोक पांडे का सुझाव बेशक आख़री निर्णय तक मायने रखता है ।
ReplyDeleteदेरी से आने की माफ़ी दें भाई मुनीश!
ReplyDeleteसात ताल की सबसे बड़ी झील को पार कर लेने के बाद थोड़ा चढ़ने के बाद एक खुला मैदान आता है. किसी ज़माने में वह भी झील हुआ करती थी. वहां जा कर क्रिकेट खेलने के मेरे कुछ यादगार अनुभव हैं. मेरे मित्रों गौरी राणा और शिवा राणा ने उस के ऊपर एक कैम्प साइट बनाई है.
झील ही मैन्डेटरी न हो तो भीमताल से नौकुचियाताल की तरफ़ जाने वाली सड़क से बांईं तरफ़ एक रास्ता जंगलियागांव नाम की जगह को जाता है. उस इलाके में तमाम बेहतरीन स्पॉट्स हैं जहां तम्बू गाड़े जा सकते हैं.
रामगढ़ का भी आइडिया बहुत बुरा नहीं है. वहां से नीचे तल्ला रामगढ़ तक जाने पर कई ऐसी ही जगहें तलाशी जा सकती हैं.
हां नैनीताल से करीब २० किलोमीटर की कच्ची पक्की सड़क पार कर लेने के बाद आप किलबरी, पंगूट, विनायक इत्यादि में से किसी भी एक जगह के बारे में भी सोच सकते हैं.
चूंकि मैं ख़ुद मोटरसाइकिल वगैरह नहीं चलाता सो मैं तो फ़कत गाइड का काम कर सकता हूं.
हां अनिल भाई की बताई सिफ़ारिशों के हिसाब से तो मुनस्यारी से अच्छा कोई ऑप्शन है ही नहीं. वहां पाई जाने वाली च्यक्ती नामक गुणकारी आयुर्वेदिक दारू को विजय माल्या की नज़र न लगे! ज़्यादेतर मोबिलायल भी वहां काम नहीं करते. और सामने का नज़्ज़ारा ... उफ़ उफ़ ...! आठ किलोमीटर की क्रोज़ फ़्लाइट पर पंचचूली की महान चोटियां ... दूरी-समय वगैरह इन्टरनेट पर चैक कर लेवें.
फ़िलहाल इतने ही विकल्प देता हूं.
देखिये!
शुभ हो!
विद्वतजनों के बीच बिना पूछे नाक घुसेड़ने के लिए अग्रिम माफ़ी चाहता हूँ. उत्तराखंड की थोडी बहुत ख़ाक बन्दे ने भी छानी है इसलिए गुस्ताखी कर रहा हूँ.
ReplyDeleteअशोक बाबू की पसंद मुनस्यारी जगह अच्छी तो है लेकिन वहां पहुंचते-पहुंचते भाईलोग अधमरे हो जायेंगे. चख्ती का जायका भी बिगड़ जायेगा. बाकी जगहें घिसीपिटी हैं. मेरा भी एक मशवरा है- आप लोग चाहें तो टोंस घाटी की तरफ जा सकते हैं. दिल्ली से देहरादून और फिर वहां से विकासनगर होते हुए टोंस के किनारे जहाँ तक जाना चाहें. दुस्साहसियों के लिए रास्ता 'हर की दून' तक पहुचता है. इस बेहद सुन्दर घाटी में जगह-जगह पीडब्लूडी के डाक बंगले हैं, जो सस्ती दर पर घुमक्कडों को उपलब्ध रहते हैं. चौकीदार प्रेम से खाना खिलायेगा और आपके साथ दो घूँट गले में डाल बाल-बच्चों को दुआएं भी देगा. इस रास्ते के आसपास हनोल भी पड़ता है जहाँ का पुराना काठ का मंदिर सचमुच देखने लायक है. कुमाऊँ के बनिस्बत ये इलाका नजदीक भी है.
अशोक भाई कसम से थोड़ी और देर लगाते तो मैं इस ब्लॉग का अन्तिम -संस्कार कर चुका होता । मैं इसीलिए बीच-बीच में ब्लॉग पर लिखने से ख़ुद को दूर करता हूँ कि मैं असामान्य रूप से भावुक हो जाता हूँ यहाँ आकर । ब्लॉग पर मैं झूठ भी नहीं बोल पाता हूँ और इसी से कहता हूँ ....बोल बोर्ची बाबे की जय -जय कार ! आपकी सुझाई हर जगह मैं जाना चाहूँगा , हालांकि गौमुख ,यमुनोत्री, बद्रीनाथ और गंगोलीहाट तक चक्कर आपके स्टेट में काट चुका हूँ और भाई आशुतोष का बताया इलाका भी देखा है मगर ये चक्कर दूसरा है ..यानी ब्लोग्गर्स बाइक ब्रिगेड का जिसमे एकाध गाड़ी भी रहे ,दो भी रहें तो बढ़िया ..the more the merrier ! बहरहाल अब मैं ये सारे ऑप्शंस ब्लॉग बंधुओं के हवाले करता हूँ फ़िर जो राय पंचों की !
ReplyDeletepaa jee aapake saath hame bhi lataka liyo !!
ReplyDeleteSure Deepu letz go ! pls. come to comment box of next post now. Subject is same.
ReplyDeleteकभी थोडा लम्बा निकल सको तो हिमाचल में एक जगह है जो जालसू पास के नजदीक है। याडा । है न सुन्दर नाम। जगह भी सुन्दर है। याडा से कुछ याद आया या नहीं। अरे जैसा शब्द है कामरेड, ठीक वैसे ही अर्थ देता है याडा। वही मित्र और साथी भाव है इस शब्द में भी।
ReplyDeleteयदि बैजनाथ से चलो तो जालसू पास को पार कर याडा पहुंच सकते हो। और भारमोर से चलो तो होली से चल्कर भी याडा पहुंच सकते हो। याडा के बारे में जो कुछ लिखा है कभी अपने ब्लाग पर डालूंगा, पर अभी नहीं।
यात्रा शुभ हो।
मुनीश जी,
ReplyDeleteइन मामलों में पीछे रहने वाले तो हम भी नहीं हैं। लेकिन क्या बतायें, गाडी चलाना बसकी बात नहीं है, चली-चलायी चाहिये। फिर तो कहीं भी ले चलो।
दिन और दिनांक बता देना, या केवल दिनांक भी बता दोगे तो भी चलेगा।
खर्चे के मामले में कंजूस तो नहीं हूं, लेकिन लापरवाह हूं। दूसरी शर्त यह भी है कि सभी लोग मिलकर जो भी खर्चा करें, वो सभी में बराबर बंटना चाहिये।
अभी इतना ही। बाकी फिर।
ओहो, ये तो पिछले साल की पोस्ट है।
ReplyDelete