Sunday, 21 September 2008

नाज़िया अल्वी जिंदाबाद !

मज़हबी बंदिशों के चलते उनका बुत तो खैर नहीं लगाया जा सकता मगर हर अख़बार के दफ्तर में उनकी तस्वीर तो लगनी ही चाहिए ताके सहाफी बिरादरी के कुछ मोअज्ज़िज़ मेम्बरान उनसे कुछ तो सीखें हिंदुस्तान टाईम्स के पढने वालों को आपके ता-आरुफ़ की दरकार होगी चूँकि कानूनी मसलों की एक बेहतरीन रिपोर्टर के तौर पे आपने एक ख़ास मकाम हासिल किया है और आपका नाम पढ़ने वालों में हमेशा एक क्रेडिबिलिटी या कहें के भरोसे को पैदा करता है मगर कल जो अपने किया उसकी कोई और मिसाल तो मिलना मुश्किल हैकल इसलिए कह रहा हूँ के छपा आज है ....जी हाँ आज के' बेयोंड न्यूज़ ' कॉलम में नाज़िया अल्वी ने जो बात कही है उसे जानते सब हैं मगर कहने से बचते हैं चूँकि इस सच को कुबूलने के लिए कुमाओं के शेर इंसपेक्टर जैसे ही कलेजे की दरकार होती है जो के बाज़ार में तो साहब बिकता है नहींआप बताती हैं के जैसे ही इस एनकाउंटर की ख़बर न्यूज़ रूम में आई तो इंसानी हुकूक के एक अलमबरदार की verdict थी के एनकाउंटर फेक है , नकली है तो लाल ख़यालात के एक और पहरुए का ख्याल था के इंसपेक्टर ने पैर में ख़ुद गोली मार ली होगी चूँकि अवार्ड वगैरह लेने के लिए ये ऐसे ही करते हैं , वो तो शाम को जब इंसपेक्टर मर गया तब कहीं जाके उन की ज़ुबां बंद हुईहालांकि दबी ज़ुबान से अब भी वो यही कह रहे हैं और चूंकी ज़ुबां किसी की पकड़ी नहीं जा सकती तो 'शेर- -कुमाओं अमर रहें' के नारे के साथ ही ये नारा तो बुलंद किया ही जा सकता है के 'नाज़िया अल्वी ज़िंदाबाद'.

7 comments:

  1. मयखाने में ऐसी होशमंदों सी बात? वाह जी वाह.

    ReplyDelete
  2. 'नाज़िया अल्वी ज़िंदाबाद'
    जो सच कहे वो जिंदाबाद !! आपने लाखटके की बात कही है ।

    ReplyDelete
  3. पढ़ पहले लिया था मुनीश भाई, कमेन्ट करने बैठा ही था तो एक क़रीबी ग़मी हो गई. भीषण चौत्यकर्मोपरान्त अब प्राप्त हुई दुर्लभ फ़ुरसत में आप से कहता हूं कि यह एक महत्वपूर्ण पोस्ट है जिसे यार लोग जाने क्यों नज़र अन्दाज़ कर गए (कमेन्ट्स की तादाद देख कर कहता हूं).

    रहा सवाल मोअज़्ज़िज़ सहाफ़ी बिरादरी की सेन्सिटिविटी और समझ का तो उनके लिए तो क़लम अब फ़क़त इजारबन्द डालने का उपकरण बन कर रह गई है. कुछ हैं जिन पर सारे वतन को नाज़ होना चाहिये. नाज़िया अल्वी भी एक हैं. यह नाम आज पहली बार हिन्दी ब्लॉग पर आया है. उम्मीद है अब आगे भी उन के लिखे से सब को रूबरू कराते रहेंगे.

    उम्दा बात! अच्छी बात! बने रहें!!!

    ReplyDelete
  4. मुझे उम्मीद है आपको शिकेब जलाली की वो नज़म याद होगी जिसका रेफ़रेन्स मैंने पिचले कमेन्ट में किया है.

    ReplyDelete
  5. नज़्म तो bilkul yaad hai अशोक भाई , बाकी रही बात कमेंट्स की तो आप आए बहार आई ! आपके होने का मतलब मैं यहाँ तमाम 'कबाड़खाने' का होना लगाता हूँ । जनाब गोस्ट - बस्टर की पहली आमद है सो खुशामदीद। दीपक भाई याने मुझ डूबते को तिनके का सहारा ।

    ReplyDelete
  6. Begairton! Jao, Agar ab bhi chain naih hai to jaakar dekho kahin kriyakarma putle ka to nahi hua tha!
    Satyawaad ki Jai! Nazia Ji jai! Munish Ji ki Jai

    ReplyDelete
  7. अजी जनाब आप डुब ही नही सकते तुस्सी अपनी जान हो !!

    ReplyDelete