Tuesday, 22 July 2008

कभी-कभी....यूँ ही !

ग्यारहवें जाने बारहवें दर्जे में NCERT कि हिन्दी- रीडर में पढ़ी जनाब मरहूम सुदामा पांडे धूमिल की एक कविता याद आती है कभी-कभी:
एक आदमी रोटी बेलता है ,
एक आदमी रोटी खाता है , एक तीसरा आदमी भी है जो रोटी से खेलता है , ये तीसरा आदमी कौन है ?
मेरे देश की संसद मौन है !

8 comments:

  1. आपको आज संसद के मौन होने की याद बडे मौक़े से आई. जिस हिक़ारत से आप इस संसद को देख रहे हैं...यह उसके मौन होने पर आपका मुखर विरोध है.

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  2. बहुत बेहतरीन प्रस्तुति , धूमिल की झंकझोर देने वाली अच्छी रचना याद दिलाई.

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  3. आज संसद ने आपको कभी-कभी याद दिला दिया लगता है !! चलिये ठीक है यहा जबकी आधा भारत सो रहा है कोईजाग तो रहा है भले कभी कभी ही सही

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  4. अब तक तो मौन था, अब बेहयाई से बोलने भी लगा है....

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  5. न हिकारत न शरारत , खामोश सा तकता हूँ मैं बस एक इमारत.

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  6. फ़ोटू बढ़िया है. लग रहा है जैसे प्रलय के ठीक पहले मनु सृष्टि का अन्तिम अवलोकन कर रहे हैं ... लेकिन वस्ताद, यहां न तो ऊपर हिम है न नीचे जल ... न कोई भो...वाला तरल है न सघन...

    आइये इस प्रलय वेला में भांगड़ा पाया जाए और कुछ तरल गरल को कुक्कुटासव के साथ उदरस्थ करने के उपरान्त स्काउट ताली बजाते हुए अपनी अपनी जोग्यतानुसार कहा अथवा गाया जाए (कहने का अभिप्राय है कि यदि गाना न आता हो गाया जाए और कहना न आता हो तो बस कहा जाए) -

    ये देस है वीर जवानों का
    अलबेलों का मस्तानों का

    इस देस का यारो ... होए!
    इस देस का यारो ... हुर्र !!

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  7. wah janab khy khub kahi. aaj sansad moon bhi aur lachar bhi sansad mai note ki bhuchar na logo ka viswas chin liya hai

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  8. Bahut zuroori hai scout taali,
    varna jeene na degi duniya saali.

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