Sunday 25 May 2008

मयखाने में मंटो

खुशबू सी रही है इधर ज़ाफरान की
खिड़की कोई खुली है फ़िर उनके मकान की
हर शहर, गाँव , क़स्बे और इंसानी जिस्म की एक ख़ास 'बू' होती है जो उस जगह या इंसान से हमारे रिश्तों की इक्वेशन तय करती है ---DISCOVERY चैनल के इस हैरतंगेज़ खुलासे से बहुत पहले मंटो ने इस सच्चाई को अपने अफ़साने 'बू' के ज़रिये बयान कर दिया थाउसे अश्लील ठहराकर उसकी काफ़ी मज़म्मत की गई मगर आज इसके लिए उनकी तारीफें होती हैंबहरहाल , मंटो का अफसाना 'बू' हाल-फिलहाल इरफान और मेरे joint-venture 'आर्ट ऑफ़ रीडिंग ' पे जारी किया गया है जिसे आप यहाँ भी समात फरमा सकते हैं तो ज़रा क्लिकियायें ----

10 comments:

  1. मंटो को जमकर पढ़ा है। यहां भी सुना और बहुत पसंद किया। क्‍या आप लोग हतक को लेकर कुछ कर सकते हैं, अगर हां तो ज़रूर करें, ये कहानी हर वक्‍़त मेरे दिमाग में रहती है, जाने क्‍यों। एकाध बार इसका मंचन देखा लेकिन तसल्‍ली नहीं हुई।

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  2. Shayda ji thanx for ur visit . I think the story is not stage-worthy .Itz a subject befitting for a film perhaps.Even then it wud need extremely mature handling !

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  3. अच्छा लगता है जब आज लोग मंटो को इस तरह याद करते है......बाँटने के लिए शुक्रिया......

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  4. मुझे इब्ने इंशा ज्यादा पसंद आए - [क्या करूं] - उर्दू की आख़री किताब तीस साल पहले घर में कबाड़ से निकाल कर पढी थी [ हिंद पाकिट बुक ?] - बहुत मज़ा आया
    p.s. - can you e-mail yr contact no. to my e-mail ? rgds

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  5. जंगल में मोर नाचा किसी ने न देखा...अरे भई आपने ये तो बताया होता कि जंगल में मोर किस झाडी के किस ओर नाच रहा है.
    पता है www.artofreading.blogspot.com

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  6. भाई, कहानी तो मंटो की बहुत पढ़ी है मगर इस आवाज का तो क्या कहना. गजब की आवाज और गजब का अंदाज. बधाई.

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  7. avaz allah ke fazal se nacheez ki hai aur chamkaaya Irfan ne hai.

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  8. मंटो को पढ़ने का जो लुत्फ़ रहा है हमेशा से, उसे इस सुनने ने चैलेंज कर दिया। बहरहाल… पढ़ना तो अच्छा लगता ही रहा है और सुनना भी उतना ही अच्छा लगा।
    शुभम।

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