धरती जो अपनी हो कर भी अपनी कहाँ है?
पानियों में बह रहे हैं कई किनारे टूटे हुए .....
तारे ज़मीं पर : निशात की फूल भरी घास पर लोटते हुए मयखान्वी
टूलिप के खेत
चश्म-ऐ-शाही में दो चश्मे धारी
Two Tramps
शंकराचार्या - हिल
आकाशवाणी नहीं........ रेडियो कश्मीर
चिनार
कभी यहीं स्वर्ग था .......
चरागाह
- शीर्षक आप दें........
खूब मजा ले रहे हैं गुरु.
ReplyDeleteरास्तों में मिल गए हैं सभी सहारे छूटे हुए !!![ :-)] -
ReplyDeleteचलिये चित्र को माला तो मिली. लेकिन दिख नही रही?
ReplyDeleteवाह! बड़ी सुहानी सैर है, कहाँ की है भाई. बेहतरीन चित्र.
ReplyDeleteYE KASHMEER HAI SAMIR JI !
ReplyDeleteYE KASHMEER HAI SAMIR JI !
ReplyDeleteवाह! आपकी मार्फत कश्मीर दर्शन हुए. अन्यथा तो कब मौका लगे, कौन जाने. बहुत आभार.
ReplyDelete"Ready to jump "आपने शीर्षक पुछा इसलिये मैने दे दिया !!
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