खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफरान की
खिड़की कोई खुली है फ़िर उनके मकान की
हर शहर, गाँव , क़स्बे और इंसानी जिस्म की एक ख़ास 'बू' होती है जो उस जगह या इंसान से हमारे रिश्तों की इक्वेशन तय करती है ---DISCOVERY चैनल के इस हैरतंगेज़ खुलासे से बहुत पहले मंटो ने इस सच्चाई को अपने अफ़साने 'बू' के ज़रिये बयान कर दिया था । उसे अश्लील ठहराकर उसकी काफ़ी मज़म्मत की गई मगर आज इसके लिए उनकी तारीफें होती हैं । बहरहाल , मंटो का अफसाना 'बू' हाल-फिलहाल इरफान और मेरे joint-venture 'आर्ट ऑफ़ रीडिंग ' पे जारी किया गया है जिसे आप यहाँ भी समात फरमा सकते हैं तो ज़रा क्लिकियायें ----
मंटो को जमकर पढ़ा है। यहां भी सुना और बहुत पसंद किया। क्या आप लोग हतक को लेकर कुछ कर सकते हैं, अगर हां तो ज़रूर करें, ये कहानी हर वक़्त मेरे दिमाग में रहती है, जाने क्यों। एकाध बार इसका मंचन देखा लेकिन तसल्ली नहीं हुई।
ReplyDeleteShayda ji thanx for ur visit . I think the story is not stage-worthy .Itz a subject befitting for a film perhaps.Even then it wud need extremely mature handling !
ReplyDeleteअच्छा लगता है जब आज लोग मंटो को इस तरह याद करते है......बाँटने के लिए शुक्रिया......
ReplyDeleteThanx Doc saab!
ReplyDeleteमुझे इब्ने इंशा ज्यादा पसंद आए - [क्या करूं] - उर्दू की आख़री किताब तीस साल पहले घर में कबाड़ से निकाल कर पढी थी [ हिंद पाकिट बुक ?] - बहुत मज़ा आया
ReplyDeletep.s. - can you e-mail yr contact no. to my e-mail ? rgds
aji aap aaye bahaar aayi!
ReplyDeleteजंगल में मोर नाचा किसी ने न देखा...अरे भई आपने ये तो बताया होता कि जंगल में मोर किस झाडी के किस ओर नाच रहा है.
ReplyDeleteपता है www.artofreading.blogspot.com
भाई, कहानी तो मंटो की बहुत पढ़ी है मगर इस आवाज का तो क्या कहना. गजब की आवाज और गजब का अंदाज. बधाई.
ReplyDeleteavaz allah ke fazal se nacheez ki hai aur chamkaaya Irfan ne hai.
ReplyDeleteमंटो को पढ़ने का जो लुत्फ़ रहा है हमेशा से, उसे इस सुनने ने चैलेंज कर दिया। बहरहाल… पढ़ना तो अच्छा लगता ही रहा है और सुनना भी उतना ही अच्छा लगा।
ReplyDeleteशुभम।