Wednesday, 2 April 2008

मयखाने में चह-चाहते परिंदे !

पुराने ज़मानों में मुसाफिर काफिलों में चलते-चलते थके हारे जब रैन-बसेरों या सरायों में पहुँचते थे तो उनका जी बहलाने के लिए परिंदे रखे जाते थे ,खासकर बुलबुल या canary वगैरह , जो गाते थे तो मुसाफिर का जी बहलता था । ''मय से मीना से न साकी से न पय्माने से ......दिल बहलता है मेरा आपके आ जाने से ...'' किस्म के छिछोरे नग्मों का वो दौर न था ! अब तो मेनका जी परिंदे पालने वालों से नाराज़ हो जाती हैं और बाज़ दफे NGO वाले कोर्ट कचेहरी की धमकियां देने लगते हैं । बहरहाल अगर आपने बी.ऐ में ODE TO nightingale नहीं भी पढी तो भी परिंदों की दिलकश आवाज़ों का मज़ा लेने से आपको कौन रोक सकता है ? तो साहेबान तमाम गीत -फ़ीत आप दिन भर सुनते होंगे आओ आज सुनते हैं कुछ चह-चाहटें , परिंदों के कुछ दिलकश बोल ! (क्लिक करो यहाँ ) घर में बच्चे-कच्चे हैं क्या ? अरे तो उन्हें भी सुनाओ और बताओ मयखान्वी अंकिल के बारे में।

6 comments:

  1. बच्चे सो गए गुरु - कल दिन में पक्का - ब्लॉऑऑऑग बिल्कुल रंगीन है - लेबल बड़ा दलेर है [ :-)] चिड़ीमार

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  2. भाई आप भले चिडीमार निकले.

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  3. अभी बच्चा स्कूल गया है , आ जाए तो सुनवाती हूँ उसे ।

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  4. और हाँ "कच्चा" नही है जी हमारे पास ।

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  5. ब्लोगिंग के चार्ल्स डार्विन जी ,बिल्कूल नया प्रयोग है ,चिडियो कि आवाज बिल्कूल साफ़ है अब हम सोच मे है कि रीकार्डिन्ग दो पैग पीने के पहले की है या दो पैग पीने के बाद की"

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  6. than u all friends for appreciating my endeavour .

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