Saturday 18 August 2012

तोक्यो में एक दोपहर नेता जी के साथ





जापान में नेता जी की पुण्य तिथि अठारह अगस्त मानी जाती है और उसमें 100-150 जापानी इकट्ठे होते हैं । पिछले 66 बरस से हर साल उनकी बरसी यहाँ बड़ी श्रद्धा से मना रहे हैं जापानी । खास बात ये है कि आयोजनस्थल साल में एक बार ही खोला जाता है आम जनता के लिए और 18 अगस्त वही तारीख है ।

इस बार इत्तेफ़ाक़ से भारतीय भी 20-30 नज़र आ रहे थे ।दरअसल यहाँ रह रहे युवा भारतीय आईटी इंजीनियरों  में अपनी जड़ों से दोबारा जुड़ने की एक ललक सी दिखाई देती है और उसी के चलते कुछ नौजवानों ने यहाँ आने का आह्वान किया था । दफ़्तर के काम से मैं भी मौजूद था ।जापानियों में उनके साथ काम कर चुके सिपाही और उनके परिजन होते हैं । ये एक विशुद्ध धार्मिक रस्म होती है जो रैंको जी मंदिर में बौद्ध रीति से निभाई जाती है और वहाँ उनकी अस्थियाँ रखीं हैं ऐसा जापानी पूरी श्रद्धा से मानते हैं । मैं इन पलों का गवाह रहा और उनके साथ काम कर चुके सेनानियों से भी बात करने का भरपूर अवसर मिला । उनमें से एक यामामोतो जी 90 बरस के हैं और हर साल सलाम करने पहुँचते हैं । कहने लगे वो अमिताभ बुद्ध की तस्वीर देखते हो वहाँ बस कुछ वैसा ही जलाल था उनमें । बूढ़े , परदेसी फ़ौजियों की पार्टी में किसी ने हम हिन्दुस्तानियों को पराये पन से नहीं बल्कि बेपनाह मोहब्बत से देखा वो भी महज़ इसलिए कि हम सुभाष के मुल्क से आए हैं । इनमें से किसी के नाज़ की वजह ये थी उससे सुभाष ने कहा था अब तुम आराम करो थक गए होगे , तो किसी की ये कि वो कई रात उनके कमरे की रखवाली की  ड्यूटी पर रहा । भारत में नेता जी की ग़ैर मौजूदगी सबसे बड़े राज़ की संज्ञा पाती है लेकिन यहाँ सब कुछ वैसे हुआ जैसे किसी दिवंगत आत्मा के लिए होता है । हाँ यामामोतो जी ने ये ज़रूर कहा कि वो भगवान् से एकाकार हो गए तभी तो उनको पूजा में रखते हैं हम यहाँ इस मंदिर में ।अस्थियाँ एक डब्बे में हैं वैसे ही जैसे किसी फ़ौजी की तब होती थीं जिस पर अंग्रेज़ी में बड़े बेढब से अक्षरों में उनका नाम लिखा है और इसे सुनहरे छत्र के नीचे रखा गया है । भारत में अभी उनका मामला विचाराधीन है लेकिन यहाँ ऐसे मनती देखी देखी उनकी पुण्यतिथि कि जैसे किसी परिवार के सदस्य की होती है यहाँ । लोगों ने आधे घण्टे पहले पहुँच कर उसी तरह श्रद्धांजली संदेशों के लिफ़ाफे दिए जैसे वो अपने घरों में देते हैं और उसके बाद भोज हुआ वो भी बिल्कुल वैसा ही । 

एक बूढ़ी जापानी महिला हिन्दी में गा रही थीं दुनिया रंग रंगीली रे बाबा और दिल्ली जाएँगे ...हम दिल्ली जाएँगे । कहती थीं उस फौज के हिन्दुस्तानी हाई क्लास फ़ैमली के लोग थे । हाई क्लास ये उन्हीं का शब्द है जिसे मैं जस का तस कहा । मोर्चे पर कैसे दिखते थे सुभाष और अकेले बैठे कैसे नज़र आते थे ये भी यादें ताज़ा हुईं साहब । लेकिन कुल मिलाकर इस आयोजन में दैवी आस्था का गहरा रंग था और नेता जी सशरीर हैं या नहीं ये तो दावा मैं नहीं करता लेकिन मोर्चे के जापानी साथियों के दिलों में अब भी लहू बन के दौड़ रहे हैं वो ये अपनी आँखों से देख लिया मैंने आज और वो हाथ मिलाना दूसरी जंगे अज़ीम के बूढ़े शेरों से उस तजुर्बे का तो कोई मुक़ाबला ही नहीं है जनाब कोई शक़ ?






15 comments:

  1. मुनीश बाबू, आपकी पिछली रेंकोजी यात्रा भी याद है लेकिन आज तो आपने गद्गद कर दिया। नेताजी को प्रणाम और आपका फिर से हार्दिक आभार!

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    1. इसके लिए प्रेरित करने वाले आप हैं जनाब , आप गए और मंदिर बंद पाया सो मैंने इस दिन का इंतज़ार किया और देखिए मिल ही गए ।

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    2. अनुराग भाई ... आपका आभार ... आपके एफ़बी पर लिंक शेअर करने के कारण ही आज इस ब्लॉग तक आना हुआ !

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  2. मुनीश जी,

    बड़ा अच्छा लगा मयखाने का नया पन्ना पढ़कर. हो सके तो इसमें "इचिरो ओकुरा" का भी ज़िक्र करे.
    ये वही हे जिनकी अस्थियाँ रेंकोजी मंदीर में राखी हे और इन्ही की वजह से नेता जी अंग्रेजो की आँहों में धुल झोंखाने में कामियाब हुए.
    जस्टिस मुख़र्जी की रिपोर्ट सार्वजनकि की जानी चाहिए, क्योंकि नेता जी राष्ट्र-नायक थे, हे और हमेशा रहेंगे. इसमें कोई शक नहीं की हवाई दुर्घंता एक मन-गढ़ंत कहानी थी जिसने अपना काम बखूबी किया. नेता जी के इस जानदार पन्ने पे नेहरु की फोटो आँखों को अखर रही हे. माफ़ कीजिये लेकिन जो दिल में था सो लिख दिया.

    जो भी हो रेंकोजी मंदिर नेता जी के भक्तो के लिए किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं. मंदिर में स्थापित उनकी मूर्ती आज भी सकारत्मक उर्जा का संचार करती हे. और ये स्थान भारत-जापान मित्रता के लिए भी एक मिसाल हे.

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    1. मयख़ाने में सभी की स्वतंत्र राय को मान दिया जाता है रोहन जी और फिर आपतो देश के लिए भक्तिभाव रखते हैं सो माफ़ी जैसी कोई बात नहीं । यहाँ 66 साल से उन्हीं के सहकर्मी उनकी पुण्यतिथि बगैर नागा मना रहे हैं सो मान लेना चाहता हूँ कि यहीं हैं नेता जी की अस्थियाँ और उनकी अंतिम स्मृतियाँ ।

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  3. मुनीशजी,

    रेंकोजी मंदिर की हमारी इस यात्रा, सबसे यादगार रहेगी. यहाँ आना सभी के लिए सार्थक नहीं है, क्यूंकि यह मंदिर पूरे साल में नेताजी के शहीद दीन - १८-अगस्त - को ही खुलता है. भारतीयों के लिए यह स्थान श्रधेय हो सकता है, परन्तु जापानियों ने यहाँ पर नेताजी की तथा कथित अस्थियों को संभाल कर रखा है तथा हर साल मिलकर उन्हें श्रधांजलि देते है, यह देखकर में भावुक हो गया. आज जापान देख लिया वैसा मुझे लगा.


    जय हिंद

    मेहुल दवे

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    1. जी धन्यवाद मेहुल जी मुझे भी यही लगा कि जापान आज देख लिया ।

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    1. Yeah it's been a pretty long time . Pls join me on FB sir .

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  5. I am shocked to see that Japanese still remembers Netaji with great respect but here in India We don't do this... so sad...

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  6. नेताजी को शत शत नमन !

    वैसे अब यह साबित हो चुका है कि १८ अगस्त १९४५ को नेताजी का निधन किसी विमान दुर्घटना मे नहीं हुआ था ! यह बात और है कि सरकार यह नहीं मानती ... पर अगर आप श्री अनुज धर की लिखी पुस्तक ,"India's Biggest Cover-up" पढ़े तो आप भी यही मानने पर विवश होंगे कि ऐसा कुछ कभी घटा ही नहीं ... यह सब अंग्रेजों की आँखों मे धूल झोंकने के लिए किया गया था !

    श्री धर की पुस्तक काल्पनिक नहीं बल्कि तथ्यों पर आधारित है ... अगर आपका पढ़ना न हुआ हो तो एक बार जरूर पढ़े |

    सादर !

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  7. अब्राहम लिंकन के बारे में तो सभी जानते होंगे, लेकिन जो नहीं जानते उन्हें बता दें कि उन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया है। क्योंकि वह अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति भी रह चुके हैं।

    अब्राहम लिंकन 31 साल की उम्र में व्यापार में असफल हो गए, 32 साल की उम्र में वे राज्य विधायक का चुनाव हार गए, 33 साल की उम्र में उन्होंने फिर से व्यापार करने की कोशिश की लेकिन एक बार फिर असफल रहे। और 35 साल की उम्र में उनके मंगेतर का निधन हो गया। 36 साल की उम्र में उनका नर्वस ब्रेक-डाउन हो गया था। 43 साल की उम्र में उन्होंने कांग्रेस के लिए चुनाव लड़ा और हार गए। और 48 साल की उम्र में उन्होंने फिर से चुन के मैदान में प्रवेश किया लेकिन उन्हें फिर से हार का सामना करना पड़ा।

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