जापानी लोक कथाओँ में तेंगू नामक एक मिथकीय जीव का ज़िक्र आता है ।बच्चे भी इसका नाम सुनते हुए बड़े होते हैं । लंबी नाक वाले इस तेंगू में इन्सान और परिन्दों दोनों की खूबियाँ हैं और प्राचीन शिंतो मान्यताओं के मुताबिक ये बुरी आत्माओँ का दुश्मन है । इसके हाथ में एक पंखा भी रहता है जिसकी हवा से वो बुराइयों को उड़ाता रहता है । बाज़ दफ़े इसकी शरारत के क़िस्से भी सुनने को मिलते हैं और इससे दूर ही रहना बेहतर बतलाया गया है लेकिन तलवार के धनी सामुराइयों के मुताबिक जंगलों में अकेले हथियार साधने की कोशिश में लगे बहादुरों का ये मददगार है और लगन देखकर दाव-पेंच सिखाने भी चला आता है । तोक्यो में माउंट तकाओ पे मंदिर में इसकी कई मूर्तियाँ हैं और साथ में उन भीमकाय प्राणियों की भी जो इस परबत को आज तलक बदज़ात रूहों से महफ़ूज़ रखे हैं ।आधुनिकता की चकाचौंध से परे जंगलों की गोद में खड़ा माउंट तकाओ आज भी अमनो-अमान का मरकज़ है जहाँ ठंडी ताज़ा हवा के झोंके जब सरगोशियाँ करते हैं तो तबीयत धुल कर निखर- निखर जाती है ।
Saturday, 28 April 2012
मयख़ाने में मुजस्समे
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Munish Bhai, nice post this kind of statues I have seen a lot in China as well, I am not sure its same but they are almost similar.
ReplyDeleteयानि जाना था जापान पहुँच गए चीन समझ गए ना....यही समझे कि कोई फ़र्क इस मामले में नहीं है लेकिन वैसे ज़मीन आसमान का फ़र्क है दोनों में ऐसा कहते हैं । शुक्रिया आप आए बहार आई ।
ReplyDeleteतकाओ की खुबसूरत चढ़ाइयों से तेंगु को हम तक लाने का आभार. यात्रा वृत्तान्त चित्रों की जुबानी कही जाती है तो बहुत कुछ कह जाती है.
ReplyDeleteआपकी उर्दू शब्दावली पर उम्दा पकड़ का राज़ क्या है?
सीतेश जी उर्दू अलफ़ाज़ के इस्तेमाल से ज़रा ज़ायका बदलता है बस्स । सारा दिन शुद्ध हिन्दी और आंग्ल भाषा के इस्तेमाल से कुछ राहत की ख़ातिर बस और कुछ नहीं ।
Deleteआभार मुनीश जी! आप तो अपने पाठकों को यूं ही जापान की खूबसूरती से रूबरू कराते रहिये. चित्रों के साथ एकाध लाइन का कैप्शन आपके बहुमूल्य आलेखों को अमूल्य कर देगा.
ReplyDeleteजी अनुराग भाई । ये तमाम चित्र माउंट तकाओ पे बने मंदिर प्रांगण के हैं ।
DeleteThanks for the information about this Japanese myth and the photographs. Aap har baar jo tasveeron mein koi khubsurat mohtarma ki tasveer zaroor shaamil karte hain us se sahitya premiyon ke dil ko bada sukoon milta hai. Khuda aap ke is jazbe ko qayam rakhe.
ReplyDeleteजी साहित्य का ही इलैक्ट्रॉनिक-एफ़िमरल एक्सेंटशन है ब्लॉग भी सो साहित्य-प्रेमियों का ख्याल रखना लाज़मी है गोकि मैं उनमें से एक हूँ ।आपके आने से वजह बनती है कि ये धींगा-मस्ती अभी जारी रहे ।
Deleteमुनीशजी,
ReplyDeleteआप के साथ टकाऊ पर्वत का सफ़र यादगार रहा. जापान में भारत के समान हर जगह पर कोई ने कोई जापानी शिन्तो या बौध मंदिर होता है. अंतर इतना की वे साफ़-सुधरे और निसर्ग की सुन्दरता के बीच होते है.
मेहुल दवे
जी हाँ वाक़ई । लेकिन पिक्चर अभी बाक़ी है मेहुल जी ।
Deleteजैसे स्वप्निल दुनिया हो कोई,
ReplyDeleteजैसे नींद की झपकी ले कर जागे हो
फिर दुबारा सोने ने के लिए,
या फिर ये कह सकते हैं,
नींद की ही दुनिया में नींद से जागे हों,
सुंदर पोस्ट के लिए साधुवाद
जी हाँ बिल्कुल यही अहसास वहाँ हो रहा था जो आपने अनुभव किया । इससे साबित यही हुआ कि आपकी प्रज्ञा शक्ति जागृत है दीपक जी वरना ठीक वही अहसास आपकी पकड़ में ना आता । तस्वीरें तो उस अनुभव का .25 प्रतिशत ही कह सकती हैं पर आपने पकड़ लिया ।
ReplyDeleteवाह ! खुबसूरत और जीवंत तस्वीरें ! आभार मुनीश जी !
ReplyDeleteसंतोष जी आपके आने से मयख़ाने में और जान आएगी सो हमेशा आया करें ऐसी गुज़ारिश है ।
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