Saturday, 28 April 2012

मयख़ाने में मुजस्समे






  • जापानी लोक कथाओँ में तेंगू नामक एक मिथकीय जीव का ज़िक्र आता है ।बच्चे भी इसका नाम सुनते हुए बड़े होते हैं । लंबी नाक वाले इस तेंगू में इन्सान और परिन्दों दोनों की खूबियाँ हैं और प्राचीन शिंतो मान्यताओं के मुताबिक ये बुरी आत्माओँ का दुश्मन है । इसके हाथ में एक पंखा भी रहता है जिसकी हवा से वो बुराइयों को उड़ाता रहता है । बाज़ दफ़े इसकी शरारत के क़िस्से भी सुनने को मिलते हैं और इससे दूर ही रहना बेहतर बतलाया गया है लेकिन तलवार के धनी सामुराइयों के मुताबिक जंगलों में अकेले हथियार साधने की कोशिश में लगे बहादुरों का ये मददगार है और लगन देखकर दाव-पेंच सिखाने भी चला आता है । तोक्यो में माउंट तकाओ पे मंदिर में इसकी कई मूर्तियाँ हैं और साथ में उन भीमकाय प्राणियों की भी जो इस परबत को 
    आज तलक बदज़ात रूहों से महफ़ूज़ रखे हैं ।आधुनिकता की चकाचौंध से परे जंगलों की गोद में खड़ा माउंट तकाओ  आज भी अमनो-अमान का मरकज़ है जहाँ ठंडी ताज़ा हवा के झोंके जब सरगोशियाँ करते हैं तो तबीयत धुल कर निखर- निखर जाती है ।







14 comments:

  1. Munish Bhai, nice post this kind of statues I have seen a lot in China as well, I am not sure its same but they are almost similar.

    ReplyDelete
  2. यानि जाना था जापान पहुँच गए चीन समझ गए ना....यही समझे कि कोई फ़र्क इस मामले में नहीं है लेकिन वैसे ज़मीन आसमान का फ़र्क है दोनों में ऐसा कहते हैं । शुक्रिया आप आए बहार आई ।

    ReplyDelete
  3. तकाओ की खुबसूरत चढ़ाइयों से तेंगु को हम तक लाने का आभार. यात्रा वृत्तान्त चित्रों की जुबानी कही जाती है तो बहुत कुछ कह जाती है.
    आपकी उर्दू शब्दावली पर उम्दा पकड़ का राज़ क्या है?

    ReplyDelete
    Replies
    1. सीतेश जी उर्दू अलफ़ाज़ के इस्तेमाल से ज़रा ज़ायका बदलता है बस्स । सारा दिन शुद्ध हिन्दी और आंग्ल भाषा के इस्तेमाल से कुछ राहत की ख़ातिर बस और कुछ नहीं ।

      Delete
  4. आभार मुनीश जी! आप तो अपने पाठकों को यूं ही जापान की खूबसूरती से रूबरू कराते रहिये. चित्रों के साथ एकाध लाइन का कैप्शन आपके बहुमूल्य आलेखों को अमूल्य कर देगा.

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी अनुराग भाई । ये तमाम चित्र माउंट तकाओ पे बने मंदिर प्रांगण के हैं ।

      Delete
  5. Thanks for the information about this Japanese myth and the photographs. Aap har baar jo tasveeron mein koi khubsurat mohtarma ki tasveer zaroor shaamil karte hain us se sahitya premiyon ke dil ko bada sukoon milta hai. Khuda aap ke is jazbe ko qayam rakhe.

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी साहित्य का ही इलैक्ट्रॉनिक-एफ़िमरल एक्सेंटशन है ब्लॉग भी सो साहित्य-प्रेमियों का ख्याल रखना लाज़मी है गोकि मैं उनमें से एक हूँ ।आपके आने से वजह बनती है कि ये धींगा-मस्ती अभी जारी रहे ।

      Delete
  6. मुनीशजी,
    आप के साथ टकाऊ पर्वत का सफ़र यादगार रहा. जापान में भारत के समान हर जगह पर कोई ने कोई जापानी शिन्तो या बौध मंदिर होता है. अंतर इतना की वे साफ़-सुधरे और निसर्ग की सुन्दरता के बीच होते है.

    मेहुल दवे

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी हाँ वाक़ई । लेकिन पिक्चर अभी बाक़ी है मेहुल जी ।

      Delete
  7. जैसे स्वप्निल दुनिया हो कोई,
    जैसे नींद की झपकी ले कर जागे हो
    फिर दुबारा सोने ने के लिए,
    या फिर ये कह सकते हैं,
    नींद की ही दुनिया में नींद से जागे हों,

    सुंदर पोस्ट के लिए साधुवाद

    ReplyDelete
  8. जी हाँ बिल्कुल यही अहसास वहाँ हो रहा था जो आपने अनुभव किया । इससे साबित यही हुआ कि आपकी प्रज्ञा शक्ति जागृत है दीपक जी वरना ठीक वही अहसास आपकी पकड़ में ना आता । तस्वीरें तो उस अनुभव का .25 प्रतिशत ही कह सकती हैं पर आपने पकड़ लिया ।

    ReplyDelete
  9. वाह ! खुबसूरत और जीवंत तस्वीरें ! आभार मुनीश जी !

    ReplyDelete
    Replies
    1. संतोष जी आपके आने से मयख़ाने में और जान आएगी सो हमेशा आया करें ऐसी गुज़ारिश है ।

      Delete