चचा कैते भये के अय ज़ाहिद महजिद में पीन दे या के वो जगै बता झाँ पै खुदा ना हो । उनकी एप्लीकेशन रिजेक्ट हो गई तो मैंने सोचा क्यों ना मयख़ाने में भजन-कीर्तन का आयोजन रक्खा जाय क्योंकि एक तो महजिद- मंदर पहले ही पवित्र हैं , ज़रूरत तो इस कमबख़्त मयख़ाने को है और मज़े की बात यहाँ किसी पट्ठे की परमीशन भी चाहिए नहीं । स्वामी जॉर्ज हैरिसन की 1969 में संगीतबद्ध इस पवित्र रचना के श्रवण से शांति प्राप्ति के चान्स बनते हैं -- गोविन्दाम् आदि पुरुषाम् त्वमाहाम् भजामि..
:)
ReplyDeleteचचा की जय जय!
ReplyDeleteगोविंदाम आदिपुरुषाम त्वमाहाम् भजामि
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