जिन साहेबान को ये तलाश है के तहज़ीब नाम की चिड़िया लखनऊ से फुर्र हो के गयी कहाँ उनको ये इत्तिला पहुंचे के तोक्यो में चैरी के दरख्तों पे वो बाज़ दफ़े अब भी कूका करती है . अभी महीना नहीं हुआ आए , तीन मर्तबा लिफ्ट मिस हुई दफ्तर में पहले आप , पहले आप के चक्कर में. चार मर्तबा रास्ता भूला तो एक दफ़ा तो रस्ता- चलते एक जापानी हज़रत ने पूरे 25 मिनट खर्च डाले अपने जेबी ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम से देख के पूरे कावासाकी इलाके में हमारी मंज़िले मक़सूद का नक़्शा खेंच डालने में, फिर दूसरी मर्तबा एक साइकिल नशीं ख़ातून बाइज़्ज़त पुलिस थाने ले गईं और घर पहुंचवा कर ही सांस ली ,फिर एक साइकिल सवार अंजान बच्चा 31 दिसंबर की रात (जो के सबसे मुक़द्दस मौक़ों में अहम है यहाँ) मील भर पैदल चला हमें घर छोड़ आने को और चौथी मर्तबा तो एक बुज़ुर्गवार इतने ग़मज़दा हुए भटके हुए मुसाफिर को देख कि रस्ता बताने से पहले पीने का न्यौता भी दे डाला.मज़ा ये कि इनमें से कोई भी अंगरेज़ी का एक लफ्ज़ नहीं जानता था ..........और शायद इसीलिए इंसानियत भूला नहीं था .बहरहाल कुछ ये है सूरत मेरे आस-पास गली मोहल्ले, छत्तों-चौबारों की.जगह का नाम कावासाकी है जो तोक्यो से बज़रिये एक्सप्रेस १२ मिनट की दूरी पे है । भीड़ और महंगाई से कुछ निजात मिले तो क्या बुरी है और फिर यहाँ बराए नाम कुछ खेती-बाड़ी भी है ,हवा-पानी मस्त है। आजकल संतरे लदे हैं शाखों पे! तोक्यो में धंधा पानी निपटा के यहीं लौट आता हूँ ....मालिक मेरा ऊपर वाला है .
हुज़ूर-ऐ-आला ऐसे ही आपको भले लोग मिलते रहें संतरा"मय" तारा"मय" तारतम्य में :-) -[.. वैसे जूता लिया कि नहीं - आने के बाद गाने के लिए :-), :-) :-) ]
ReplyDeleteI think i was right about Japan...
ReplyDeleteI love Japan...
waiting for more from u...
@ Joshim--Manish bhai pls come to my place if u ever happen to visit Tokyo.
ReplyDelete@Vini- Yes itz a lovely place vini and i'll keep u informed.
ऊपर से पांचवे फोटो में ये पेड कैसे हवा में झूल रहा है?
ReplyDeleteये पेड़ की कटिंग का कमाल है नीरज भाई . कटिंग या कहो छंटाई के कारण ऐसा दिख रहा है .
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट और चित्र! जापानियों की इस सहृदयता के बारे में जानकर खुशी हुई।
ReplyDeleteमनीष भाई अभी तक का तो अनुभव यही है......
ReplyDeleteघरों की छतों पर लगे एंटीने देखकर हैरत हुई.
ReplyDeleteशहरी भारत से तो ये लगभग गायब हो चुके हैं.
ये ब्बात ...चलो किसी ने तो पकड़ा. इसीलिए मैंने इन्हें छापा था भाई. ....भारत में खत्म हो नहीं गए बल्कि किए गए वरना प्राइवेट ऑपरेटर्स के महल कैसे बनते और रियासतें कैसे खड़ी होतीं.....और कोई ये न समझ बैठना किसी गाँव, देहात या सब-अर्ब की तस्वीर चेप दी मैंने, .... यहाँ लोक प्रसारण निगम एन. एच. के. तमाम प्राइवेट चैनलों पर भारी है और बिना डिश के भी बढिया आता है.
ReplyDeleteBadiya Munish Bhai.. Lage haath hum bhi last week China ho aaye bus thoda sa door rah gaye Japan se.
ReplyDeleteBeautiful post!!
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