Sunday, 25 July 2010
आज विजय दिवस पर....
हाँ ये सच है कि हज़ारों टन गेंहू देश के अन्नागारों में साल-दर-साल सड़ रहा है बजाय भूखों तक पहुँचने के , ये भी सच है कि बाहर की बजाय ख़तरा अन्दर के दुश्मनों से कहीं ज़्यादा है , हाँ ये भी सच है कि मध्य -भारत के जंगलों में फैले चीनी-साम्राज्यवाद के भेड़िये कभी भी देश का रेल-संपर्क दरहम-बरहम कर सकते हैं जबकि चीन पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को चारों तरफ अपने सैनिक अड्डों से घेर रहा है , ये भी सच है कि इस देश में मधुमेह और सड़क -दुर्घटनाएँ आतंकवाद से ज़्यादा जानें हर महीने ले रहे हैं और ये भी कि बिजली , पीने लायक पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं से हम आज तक महरूम हैं और ये भी कि हिन्दी बोलने भर से निरीह मज़दूर केरल, असम और महाराष्ट्र में हिंसक लकड़- बग्घों के निशाने पे आ जाते हैं मगर साथ ही ये भी उतना ही सच है कि अपने फ़र्ज़ के तईं सच्चे कुछ मुट्ठी भर लोग इस वक़्त हिमालय की जान-लेवा बर्फानी चोटियों पे अपनी हड्डियाँ गला रहे हैं ताकि हम जी सकें .....ये उनकी हड्डियों से गला के बना वज्र है जिसके भरोसे हम अपने घरों में चादर ताने सोते हैं , देखते हैं २०-२० कप की चीयर लीडर्स की हिलती कमरिया और सुनते हैं हरम्जद्दगी से भरपूर खोखली बहसें अपने पालतू कुत्ते के फर सहलाते हुए ! करते हैं वाह-वाही कुछ निहायत चूतिया कविताओं के अशारों पे और तकते हैं आसमान सुकरात के असल वारिस के अंदाज़ में!. हो सकता है कुछ लोग भूल भी जाएँ मगर कैसे भुला दूं मैं उन्हें जिन्हें संग्राम -रत ,खून नहाए देखा मैंने अपनी इन आँखों से --वहां जहाँ हवा उखाड़ती थी इंसानी कदम और ऊंचाई उसके सांस , मोर्टार से निकली गर्म ज़हरीले लोहे की छीलन उडती थी जहाँ अहर्निश .....और फाड़ती थी कान दुश्मन की तोपें हर घड़ी ,हर काल ....मैंने देखा उनको अपनी इन आँखों से बनते महाकाल ...हैं नमन उन्हें कि जो झुके नहीं और ऊंचा रखा देश का भाल , विजय दिवस यूं ही आये हर साल ! जय हिंद !
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विचारणीय लेख के लिए बधाई
ReplyDeletekripya upar mantri padhen... sorry.
ReplyDeleteसलाम !
ReplyDeleteएक शब्द अखरता है, केवल एक !
सचमुच बहुत दयनीय स्थिति है ।
ReplyDeleteआपकी सारी बातें सही हैं । बस एक को छोड़कर ।
असभ्य भाषा का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए ।
आपकी भावनाओं को सलाम! शत शत नमन इन वीर सपूतों के लिए..
ReplyDeleteThanks for this post.
ReplyDeleteLet's salute our Jawans.
Long live the martyrs.
JAI HIND.
भुला दूं मैं उन्हें जिन्हें संग्राम -रत ,खून नहाए देखा मैंने अपनी इन आँखों से --वहां जहाँ हवा उखाड़ती थी इंसानी कदम और ऊंचाई उसके सांस...
ReplyDeleteजिसने देखा हो वाह नजारा इतने करीब से कैसे भूला पायेगा ...जिसने नहीं देखा , महसूस तो कर सकता है ...अपने सुरक्षित घरों में खाना खाते टीवी पर समाचारों में ...बस महसूस ही कर सकता है ..!
उन अमर शहीदों को नमन ...!
मैंने देखा उनको अपनी इन आँखों से बनते महाकाल ...हैं नमन उन्हें कि जो झुके नहीं और ऊंचा रखा देश का भाल , विजय दिवस यूं ही आये हर साल ! जय हिंद !
ReplyDeleteदेश की रक्षा में लगे जवानों को और देश पर मर मिटे शहीदों को नमन ....जय हिंद
जय हो!
ReplyDelete@ "असभ्य भाषा... .." तो क्या वो बड़े सभ्य हैं जो सरे-आम चीन के पिट्ठू बने इंटलेक्चुअल टाइप ,परदे के डिज़ाइन वाले कुरते पहने मंडरा रहे हैं और पकिस्तान की हरामखोरी पर एक बोल उनकी ज़बान से नहीं फूटता !
ReplyDeletethanks for the post
ReplyDeleteआप किसी की तुलना में न खड़ें हों यही इच्छा है।
ReplyDeleteआप अतुलनीय बनें यही कामना है।
Munish Bhai, kaafi masroof lagte hain kai dino se koi nayee post nahi ?
ReplyDeletePratiksha hai.
TWISTER-SE PEHLE KI KHAMOSHI HAI KYA??
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