Sunday 30 May 2010

मयखाने में '' ज़िन्दगी है क्या लट्टू या लड़की ....?"

फिल्म ' सत्यकाम ' के बिना अधूरा है हिंदी सिनेमा का इतिहासऋषिकेश मुख़र्जी के निर्देशन में बनी ये संवेदनशील फिल्म बात-बात में कुत्तों का खून पीने वाले धरम जी के होम -प्रोडक्शन की पेशकश थीअगर आपने नहीं देखी तो हिंदी फ़िल्में देखते ही क्यों हैं साहिब बहादुर ? फ़िलहाल बस ये गाना --

6 comments:

  1. sahi kaha baat baat me kutton ka khoon pee jaane wale dharam ji ka anootha abhinay aur beimaani aur bhrashtachaar se ladte ek engineer ki marmsparshi kahani...naayab film hai...

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  2. अब संशय हो रहा है कि हिन्दी फिल्म देखता ही क्यूँ हूँ...सच में, यह फिल्म नहीं देखी है. :)

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  3. मेरी फेवरेट फिल्मो से एक है.....आखिरी सीन जितना संवेदनशील है ..उतना ही कठोर भी....ये फिल्म वाकई ये साबित करती है के दुनिया में जीने के कुछ मूलभूत नियम वही है

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  4. इस फिल्म में आदर्शवाद और यथार्थवाद का टकराव दिखाया गया है। फिल्म में धर्मेन्द्र की मौत के बाद भी एक जीत और आशा का सूरज दिखाई देता है जब धर्मेन्द्र के पिता अपनी बहू की अवैध संतान (accidently)को अपना लेते हैं, अपने बेटे की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए। यह बहुत प्यारी फिल्म है। धर्मेन्द्र, धर्मेन्द्र क्यूँ है, इसका अंदाज़ा सत्यकाम को देखकर ही लगाया जा सकता है। विशेषकर बच्चों को यह फिल्म जरूर देखनी या दिखानी चाहिए।

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  5. HI, How r u? i wanna send u smthing, donno where to post, now m sending here only:

    उम्र भर यही भूल करते रहे, धूल थी चेहरे पे , और आइना साफ़ करते रहे !!

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