Monday, 12 April 2010

ओ जट्टा आई बैसाखी........

दिल्ली में बैसाखी तो अब बस कैलेण्डर में दिखती हैगाँव, देहात ख़ास कर पंजाब-हरयाणा के अब भी इस पर्व पर झूमते दिखते हैं आख़िर गेहूं की फसल जो कटी है भाई ! कई साल पहले फिल्म आई थी 'ईमान धरम' , इसके जैसा बैसाखी गीत आज तक फिर नहीं बना हालांकि इसमें किसानों की जगह कुछ जवान हैं जिनका कहा आज और ज़्यादा मायने रखता है ,सुन के देखें....

3 comments:

  1. एक बार और सुना था यही गीत...

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  2. आजकल किसानों ने बैशाखी छोड़ दी है और घायल जवानों ने पकड़ ली है और इसके जिम्मेदार हैं, बिचती जमीनें, स्कॉर्पियो की ललक और जनसेवकों की बेरहमी।

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  3. padhkar aur geet dekhkar bahut kuch dil me kheench gaya ji

    aabhar

    vijay
    - pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com

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