दिल्लीमेंबैसाखीतोअबबसकैलेण्डरमेंदिखतीहै । गाँव, देहातख़ासकरपंजाब-हरयाणाकेअबभीइसपर्वपरझूमतेदिखतेहैंआख़िरगेहूंकीफसलजोकटीहैभाई ! कईसालपहलेफिल्मआईथी 'ईमानधरम' , इसकेजैसाबैसाखीगीतआजतकफिरनहींबना हालांकि इसमें किसानों की जगह कुछ जवान हैं जिनका कहा आज और ज़्यादा मायने रखता है ,सुनकेदेखें....
एक बार और सुना था यही गीत...
ReplyDeleteआजकल किसानों ने बैशाखी छोड़ दी है और घायल जवानों ने पकड़ ली है और इसके जिम्मेदार हैं, बिचती जमीनें, स्कॉर्पियो की ललक और जनसेवकों की बेरहमी।
ReplyDeletepadhkar aur geet dekhkar bahut kuch dil me kheench gaya ji
ReplyDeleteaabhar
vijay
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