Thursday 1 April 2010

चिड़ीमारों के देश में

बड़े सवेरे निकलता हूँ और देर से घर पहुंचता हूँ सो गौरय्या को लेकर जो हाय-तौबा , उट्ठा-पटक मची हुई थी उस पर यकीं न होते हुए भी चुप था । आज मौक़ा मिल गया और सवेरे सात बजे ये तस्वीरें मैंने अपने आँगन में खुद खेंची हैं । ध्यान से देखें गौरय्या ही है न .......है ना ? सो , इतनी भी चिंता की बात नहीं है और ख़ास कर उन्हें चिंतित होने का तो कोई हक ही नहीं है जो मौक़ा मिलते ही मुर्ग़े और दीगर परिंदों के पर नोच कर खाने से नहीं चूकते । गौरय्या संकट में हो सकती है मग़र अभी उसे कुक्कुट-भक्षी मित्र टसुवे बहाते हुए लुप्त घोषित न करें । शेर ख़तम होने को हैं , गिद्ध भी नदारद से हैं और मासूम गौरय्या की जान पे भी बन आई है मग़र मुर्ग़-खोरों के घडियाली टसुवों से मूड ज़्यादा ख़राब होता है मेरे भाई । वैज्ञानिक कह चुके हैं कि मांस रान्धने से सबसे ज़्यादा ग्रीन-हाउस गैसें पैदा होती हैं जो ग्लोबल-वार्मिंग के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं सो मांस-भक्षण की गलीज़ आदत छोड़ें या फिर जो हो रहा है उसका मज़ा लें ,रोने की ज़रुरत नहीं । हम तो जार्ज बर्नार्ड शा के मुरीद हैं , जो कहता था , " मेरा पेट कोई कब्रिस्तान नहीं जहाँ मैं मुर्दों को दफनाता जाऊं । ".....बोलो ता रारा रा... !

9 comments:

  1. वाह!! एकदम मेरे मन की बात कह दी आपने. बहुत सुन्दर तस्वीरें. मेरे आंगन में भी गौरैया का चहचहाना और घोंसले बनाना बन्द नहीं हुआ है. महानगरों से गायब हो गई होगी गौरैया. वैसे महानगरों से तो लगभग सभी पक्षी गायब हो गये हैं...

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  2. हमारे यहाँ तो गोरैय्या की ऐसी भीडअ है कि क्या कहें. अभी गर्मी पूरी आ जाये तो तस्वीर दिखायेंगे आपको!!

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  3. तस्वीरों ने तो मन मोह लिया ....बहुत ही प्यारी तस्वीरें हैं...गोरैय्या तो हमारी बालकनी से भी खूब दिखती हैं...हाँ, हो सकता है मुंबई के और हिस्सों में ना हों....नॉन-वेज खाने वालों का प्रतिशत तो बढ़ता ही जा रहा है...और फिर रोना रोया जा रहा है,ग्लोबल वार्मिंग का.

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  4. बहुत सुंदर लगी फोटोग्राफी और गौरेया तो हमारे यहाँ झुंड में रोज़ सांध्य वेला के ठीक पहले आती हैं।

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  5. इन चित्रों ने तो मन मोह लिया। एकदम लाजवाब चित्र हैं।

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  6. और हां, कैमरा कौन सा है। थोडा कॉन्फिग बता सकते हैं क्या ?

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  7. बहुत खूब ! मेरा निजी विचार भी यही है कि गौरया के ख़त्म होने जैसी कोई बात शायद अभी नहीं है, घर के आसपास का वातावरण और मां की गौरया से लड़ाई तो यही कहती है। लेकिन फिर भी विशेषज्ञ चिंतित हैं तो अवश्य ही कोई आसन्न संकट जरूर है।

    हाँ मैं उन कुक्कट भक्षियों को जनता हूँ जो दिनभर की प्रगतिशीलता और प्रकृति प्रेम के बाद शाम को चार बजे हर उसके सामेने पूँछ हिलाने और पेट दिखाने लगते हैं जो आज रात को दो पैग, और मुर्गे का आस्वादन करायेगा।

    इस पोस्ट के लिये शुक्रिया।

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  8. Meri nainital aur Gaav ke ghar mai to Gauriya ki Ghonsle hai...

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  9. गौरैय्या तो अभी भी काफी दिखती हैं लेकिन तीतर व बटेर अब शायद ही दिखते हों, फिर भी खाने के शौक़ीन उन्हें ढूँढा करते हैं ! जानवरों के विलुप्त होने के पीछे मासाहारियों से ज्यादा पैसे के लालची ज़िम्मेदार हैं !

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