Saturday 17 April 2010

हिंदी सिनेमा के शराबी गीत-1

मदिरा को किसी चमत्कारी ,शक्तिदायी ,सर्व-सुखकारी पेय की गलत और मनघडंत इमेज के साथ पेश करते हुए नौजवानों को बिगाड़ने में हिंदी सिनेमा का ख़ास योगदान रहा हैआज भी बेवक़ूफ़ लौंडे-लपाड़े ग़मज़दा धर्मेन्द्र की तरह 'नीट' पीने पे अड़ते दिखाई दे जायेंगे फिर भले ही चार दिन अस्पताल में कटें ! अब जबकि देश की राजधानी में बीयर डिपार्ट मेंटल स्टोर और पान की दूकान पे लाइसेंस लेकर बेचने की इजाज़त मिल गयी है तो जीवन और शराब के मसले पे चर्चा का नया दौर शुरू होना लाज़मी है और पोपुलर -एस्पिरेशंस को आवाज़ देने वाले सिनेमा की चर्चा भी इस से अछूती नहीं रह सकती । शराब को लेकर भारतीय समाज बहुत सी गलत फहमियों का शिकार हमेशा से रहा है और कौन सा अल्कोहलिक पेय कौन सी शराब है और उसके क्या असरात हैं इस बारे में बात करने से बचा जाता रहा है जबकि देश के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव काफी गहरे हैं । बहरहाल, उर्दू-शायरी की ही तरह सिनेमा के बहुत से ऐसे गीत हैं जहाँ शराब के सहारे बहुत ऊंची बात कही गयी है और ऐसे गीतों का रस स्वयं मदिरा से बढ़ कर है ऐसा मेरा मानना है , मसलन फिल्म 'जागते रहो' का ये गीत जिसमें मोतीलाल झूमते नज़र आते हैं--

2 comments:

  1. This is one of my favourite songs sung by Mukesh. As far as the increasing consumption of alcohol is concerned, it is, at least in part, a consequence of globalization. In any case, excess of anything is harmful, except, of course, love.

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