Wednesday, 12 August 2009
ब्लॉग जगत के चीनी -पिट्ठू तो मस्त होंगे ये पढ़कर, क्यों ?
नई दिल्ली ।।( नवभारत टाईम्स )
एक चीनी रणनीतिकार ने अपने लेख में कहा है कि पाकिस्तान , बांग्लादेश , नेपाल और भूटान जैसे अपने मित्र देशों की सहायता से चीन को भारत को 20-30 स्वतंत्र राष्ट्रों में तोड़ देना चाहिए।
इस लेख का प्रकाशन भारत - चीन सीमा विवाद पर दोनों देशों के बीच 13 वें दौर की वार्ता की समाप्ति के समय हुआ है। शनिवार को समाप्त हुई वार्ता में चीन ने आपसी रणनीतिक विश्वास और साझेदारी को नए स्तर तक बढ़ाने पर जोर दिया है।
चीनी इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ ( सीआईआईएसएस ) की वेबसाइट पर प्रकाशित लेख में कहा गया है कि यदि चीन थोड़े से कदम उठाए तो तथाकथित महान भारतीय संघ बिखर सकता है।
चेन्नई स्थित सेंटर फॉर चाइना स्टडीज के निदेशक डी . एस . राजन के अनुसार --"लेख के लेखक झान लुई का तर्क है कि तथाकथित भारत राष्ट्र इतिहास में था , इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एकता केवल हिंदू धर्म पर निर्भर है। "लेख में कहा गया है कि भारत को केवल '' हिंदू धार्मिक राष्ट्र '' की संज्ञा दी जा सकती है। यह जाति आधारित शोषण पर आधारित है और आधुनिकीकरण की राह में बाधा है। लेखक के अनुसार भारत के जातीय विभाजन को ध्यान में रखकर चीन को स्वयं के हित में और पूरे एशिया की प्रगति के लिए असमी , तमिल और कश्मीरी जैसी विभिन्न राष्ट्रीयताओं के साथ एकजुट होना चाहिए और उनके स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना में सहयोग देना चाहिए। लेख में विशेष रूप से भारत से असम की स्वतंत्रता हासिल करने के लिए चीन को यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम ( उल्फा ) का सहयोग करने को कहा गया है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अजीब विचारक लोग हैं चीन में भी. भारत को तोड़ने को लेकर जिस तरह के तर्क दिए गए हैं, उन्हें पढ़कर हँसी आती है. एशिया की आर्थिक प्रगति के लिए भारत को तोड़ देना कहाँ तक तार्किक है? हाँ, एक बात ज़रूर कहना चाहूँगा. बहुत सारे लोग ऐसा कहने की हिम्मत इसलिए जुटा लेते हैं क्योंकि देश में शासन करने वाले लोग लप्पू हैं. मज़बूत विदेश नीति तो तब बनेगी न जब हमारी सरकार का ध्यान इस बात पर न रहे कि वे शासन में पॉँच साल कैसे बचे रहे बल्कि इसपर रहे कि विदेश नीति को सही ढंग से चलाना है.
ReplyDeleteअपनी नीतियों की वजह से हम चीन से घिर चुके हैं. बांग्लादेश, श्रीलंका, बर्मा, पकिस्तान, और नेपाल में चीन का प्रजेंस धीरे-धीरे बढ़ता गया है और हम न्यूक्लीयर डील पास करने में लगे रहे. साथ ही अफगानिस्तान को हवाई जहाज भेंट कर रहे हैं क्योंकि अमेरिका के साथ दिखना ज़रूरी है. हमारे इलाके में एक कहावत है. ऋण काढि व्यवहर चलवावे, गली-गली महतो कहवावे....हमारे देश का कुछ वैसा ही हाल है.
रही बात ब्लॉग जगत में चीन के पिट्ठूवों की तो पता नहीं वे कौन हैं? और चीन की इस नीति पर खुश हो रहे हैं या नहीं?
"रही बात ब्लॉग जगत में चीन के पिट्ठूवों की तो पता नहीं वे कौन हैं? और चीन की इस नीति पर खुश हो रहे हैं या नहीं?"
ReplyDeleteBlogosphere is not limited to Hindi bloggers . Similarly, thank to translation tools our readership is not confined to Indian readers alone.
Among Indians there are no supporters of China ,but it is a big bad world sir-- so see it in INTERNATIONAL sense.
Mai to Shiv Kumar Mishra ji ki baato se sahmat hu...
ReplyDeleteapki is post pe ek sarthk bahas to honi hi chahiye...
@ विनीता : ये ख़बर आज की नहीं बल्कि ३ दिन पुरानी है और इसे अखबार की साईट से जस का तस उठा के चेपा गया है ! अखबारों में पहले पन्ने पे छाप चुकी है और इसका कोई नोटिस लेने की बजाय लोग वाहियात बहसों में मुब्दिला हैं । अरे भाई जब देश बचेगा तभी तो हम बचेंगे !
ReplyDeleteचीनी विश्लेषकों की इस तरह की नापाक कोशिश एक खामो-ख़याली से ज़्यादा कुछ नहीं है. वहाँ के फंतासीकारों ने भारत के इतिहास के एक कालखंड पर अपनी मिचमिची और अधखुली नज़रें डाली हैं. उन्हें सम्राट अशोक और चंद्रगुप्त मौर्य का वह अखंड भारत नहीं दिखाई दिया जब भारतवर्ष की प्रतिष्ठा और विजय की पताका सीमाओं के पार फहराया करती थी. आज भारत का पुन: उत्थान हो रहा है जिससे चीन की छाती पर साँप लोट रहे हैं. कौओं के कांव-कांव करने से शेर नहीं मरा करते और कुकुरों के भौंकने पर हाथी नहीं रुका करते, आई समझ में.
ReplyDelete"Among Indians there are no supporters of China ,but it is a big bad world sir-- so see it in INTERNATIONAL sense."
ReplyDeleteप्रकाश करात जी, कहाँ है आप? राजा साहब (डी राजा की बात कर रहा हूँ मैं, दिग्गी राजा की नहीं) , येचुरी जी, पांधे जी....अरे कहाँ है आपलोग?
देखिये, आपका कमेन्ट पढ़कर ज्योति बाबू उठकर बैठ गए.
जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई.
ReplyDelete( Treasurer-S. T. )
बहुत ख़ूब, लेकिन एक शंका रह गयी. आपका लेख लाल टोपीधारियों पर तो अच्छा तमाचा है, किन्तु इससे हरी टोपी और गेरुआ टोपी वाले कहीं उछलने न लगें. इस ख़बर पर 'Socialist Republic' वाली बकवास करने वाले भी बगलें झाँक रहे होंगे. लेख सार्थक है.
ReplyDeleteShiv kumar ji aap jin logo ko awaaz laga rahe hai...wo to apni rajniti ki rotiya sakne mai buzy honge...unhe bhala kaha sunai dene wali hai apki awaz
ReplyDeleteअरे ये साम्राज्यवादी चीनी तानाशाह इंसानियत के नाम पर कलंक हैं.
ReplyDeleteशराब की मुमानियत इस्लाम, ईसाएयत और हिन्दू धर्म में है....
ReplyDeleteमयखाना तो शराब का संग्रहालय होता है...
@"मयखाना तो शराब का संग्रहालय होता है..."
ReplyDeleteMy dear 'संग्रहालय' means MUSEUM/ AJAYABGHAR whereas Maykhaana means where people consume Daru ! It is a bad place and good boys should stay away !
Why are so many countries,their people, jealous of our nation, our people, our bright minds, our students?
ReplyDeleteयूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशां हमारा !
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़मां हमारा !
Oft quoted couplets, but very true.
Of course, our government should take up the matter(it is not dependent on our communist friends anymore).
Why are so many countries,their people, jealous of our nation, our people, our bright minds, our students?
ReplyDeleteयूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशां हमारा !
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़मां हमारा !
Oft quoted couplets, but very true.
Of course, our government should take up the matter(it is not dependent on our communist friends anymore).
@"our government should take up the matter(it is not dependent on our communist friends anymore)"
ReplyDeleteWe can hope so and thanx to blogging ,can create a congenial atmosphere for the same !