Thursday 20 August 2009

जेम्स बौंड के भारत में पैदा न होने का कारण

' बौंड....जेम्स बौंड ' -- हौलनाक हादसों का खिलाड़ी , दुनिया को कई बार तबाह होने से बचा चुका जेम्स बौंड ! आज तक २२ फीचर फिल्मों में नमूदार हुआ ये पात्र विश्व साहित्य का सबसे कमाऊ पूत साबित हो चुका है । लेखक इयान फ्लेमिंग १२ नोवेल्स लिख कर १९६३ में चल बसा ,मगर इस कालजयी पात्र का ये सफर आज भी जारी है । अगर डौलर की मौजूदा कीमत से देखें तो ११ अरब डौलर की कमाई तो प्रोड्यूसर को महज़ थेयटर -प्रदर्शनों से हुई है । आख़िर ऐसा क्या है इस पात्र में । वही आदतें ...वही अदाएं .....वही क्लाईमक्स .....वही 'मार्टिनी '......तेज़ गति से दौड़ती कारें ...सेक्सी बालाएं , वही ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एम आई सिक्स ...मगर ये सब कुछ और बहुत सी फिल्मों में होता है सो ऐसा क्या है इसमें की हमारे यहाँ कोई ऐसा पैदा न हो सका ??? उत्तर है ' पेड-लीव 'यानी वेतन सहित अवकाश की मानवीय सुविधा का अभाव ! दरअसल...... इआन फ्लेमिंग पेशे से पत्रकार था और लन्दन के "डेली एक्सप्रेस "अखबार की मालिक कम्पनी "केम्सले न्यूज़ पेपर्स" का विदेशी काम-काज देखता था । उसके सर्विस कांट्रेक्ट में हर साल दो महीने की पेड-छुट्टी का इन्तज़ाम था । अपनी इन्हीं सालाना छुट्टियों के दौरान १९५२ से ६३ तक उसने १२ नोवेल लिखे । जब नोवेल मकबूल हुए तभी फिल्में बननी शुरू हुईं और ये सिलसिला आज तक जारी है । ये नाम-- जेम्स बौंड-- दरअसल एक पक्षी -विज्ञानी का नाम है जिसकी मशहूर किताब 'बर्ड्स ऑफ़ वेस्ट इंडीज़ ' फ्लेमिंग छुट्टियों में पढने को ले गया था । अब चूंकि हमारे यहाँ के पत्रकारों को इतनी छुट्टी कभी नहीं मिलेगी की वो चिड़ीमार किताबें पढ़ सकें सो उनसे बौंड जैसा कुछ लिखवाने की उम्मीद बेमानी होगी । ऐसे में क्यूं न इसी बौंड से काम चलाया जाए । क्लिकियायें ----

10 comments:

  1. रोचक जानकारी। उम्मीद करता हूँ कि भारतीय लेखक भी इसी तरह के कैरेक्टर को रचेंगे। लेकिन यहां तो केवल बा बहू और साजिश ही लिखने का पैटर्न रहा है। एक चंद्रकांता लिखी गई थी फैंटेसी के नाम पर लेकिन पता चला कि उस पर सीरियल बना कर ऐसा कबाडा कर दिया गया उस उम्दा लेखन का कि अंत में चंद्रकांता स्टाईल में कहना पडा -

    यक्कू..... :)

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  2. पत्रकारों को तो पेड छुट्टी कभी नहीं मिलेगी... जिन्हें मिलती है वो प्रेम का रोना रोते है... इससे बचे को घुटनों पर सर रखकर नायिका क्या सोचती है... और मन के अंतर्द्यांदों को लिखते है... हमारे यहाँ पेट का ही रोना है... उससे ऊबे तो कुछ सोचे... वहां रोटी समस्या नहीं है, दिमाग आजाद है, २३० साल की आज़ादी है, और भी बहुत कुछ है, लेकिन ऐसा नहीं है हमारे यहाँ कुछ नहीं है जो है उसकी कदर नहीं है... समझने वाली पब्लिक नहीं है, एक उदहारण ब्लॉग पर बहुत लोग हैं... पर प्रेम सबका टेस्ट है... जो अलग है उनके फोल्लोवेर्स कम हैं... बातें ऊँची हैं, समझ कम है,

    अच्छी बात उठाई है आपने... शुक्रिया... हाँ चंद्रकांता टी.वि. पर नहीं आता तो गुलेरी जी की कितने लोग पढ़ते वोह भी आज कल की जेनेरेशन... ? वो भी एक टेस्ट है... तब भी रोटी की समस्या नहीं थी... तो २ रोटी के चक्कर में दुर्गत भेल हमार...

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  3. जेम्स बॉन्ड दरअसल एक स्टाइल, एक आइकान है, और दुनिया के दस सबसे लोकप्रिय पात्रों में से एक है. ये इंसान की आश्चर्यजनक खूबी यानी कल्पनाशीलता और सृजनात्मकता का बेहतरीन नमूना है. इयान फ्लेमिंग ने कल्पना को एक हक़ीकत बना दिया. हालाँकि जेम्स बॉन्ड एक बेहद मशहूर जासूस है, लेकिन वो मेरे पसंदीदा जासूस शरलोक होम्ज़ की अक्ल के सामने बच्चा है. खूबसूरत पोस्ट के लिए धन्यवाद. क्लिप जेम्स बॉन्ड की खूबियों को पूरी तरह चित्रित नहीं कर रही है, कोई कॉंप्रेहेन्सिव क्लिप लगाएँ

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  4. James Bond mere pasndida adakar rahe hai...

    lakin apne 'बर्ड्स ऑफ़ वेस्ट इंडीज़ ' फ्लेमिंग book ke baare mai likha hai...plz is book ki thori aur detail mujhe bata dijiyega...

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  5. Birds of West Indies is a book by an orinthologist--James Bond. Ian Fleming named his detective character after this orinthologist !

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  6. Thnx Munish is jakari ki liye...kya aap is book ki publication ka naam bhi bata sakte hai...

    James Bond mere pasandida CHARACTER rahi hai...uper maine unhe adakaar likh diya tha...

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  7. बात तो सही कह रहे हैं आप

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  8. @Satish, Sagar, Anil & Nanak -- Dear friends i salute ur spirit ! thanx a lot !
    @ Vineeta --just type the book title in google search. i have seen that all the information is given there .

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  9. वीडियो तो नहीं दिखा लेकिन लेख बांचकर अच्छा लगा।

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    1. शुक्रिया अनूप जी , पुराना चिन्तन है जो अजित जी के बहाने फिर से हरा हो गया । चार साल पुराने लेख पर कमेंट मिले तो लगता है पुरातात्विक नज़रिए से ब्लौग का उत्खनन हुआ जिसमें कुछ काम का भी मिला ।

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