Wednesday, 19 August 2009
मयखाने में ज़ीनत अमान
हिंदी सिनेमा भी अधिकाँश भारतीय समाज की तरह पुरुष प्रधान रहा है , जहाँ नायिकाओं का सबसे अहम काम यही माना गया गया है की वो सुन्दर दिखें ! इस काम को उन्होंने बखूबी अंजाम भी दिया है । चाहे वो गए ज़माने की देविका रानी और मधु बाला हों या आज की प्रियंका चोपड़ा ; उनकी कुछेक अपवाद सरीखी फिल्में छोड़ दी जाएँ तो नाच-गाकर हीरो को रिझाए रखना ही उनका प्रधान कर्त्तव्य है । इस श्रम साध्य क्रिया व्यापार में वे नाना भांति के केश विन्यास , भ्रू- संचालन , अंग प्रदर्शन एवम खड़िया-पौडर आदि उपादानों के यथा योग्य प्रयोग में सदा ही कुशल रही हैं ,अस्तु इन सबों में अपने स्वाभाविक सौंदर्य से ,बिना खड़िया- लेपन के जनता जनार्दन में अपनी जगह बनाने वाली अभिनेत्री कोई हैं तो वे सुश्री ज़ीनत अमान हैं . देवानंद की छोटी बहिन के रूप में आप सर्वप्रथम फिल्म 'हरे रामा हरे कृष्णा ' में दिखीं और तत्पश्चात 'धुंध ', 'डॉन' ,'कुर्बानी', रोटी,कपडा और मकान ' , 'सत्यम, शिवम्, सुन्दरम', एवम 'अब्दुल्लाह ' आदि कई फिल्मों में
आपने दर्शक समुदाय का दिल जीता. ८० के दशक के आरम्भ में आप ड्रीम -गर्ल कहाने वाली हेमा जी के साथ भारत और रूस के संयुक्त -उपक्रम के तहत बनी 'अली बाबा चालीस चोर' में आयीं .मैंने बालपन में ये फिल्म देखकर ज़ीनत जी की तस्वीरें अख़बारों से काट कर सहेजनी आरंभ कर दी थीं और आज भी मैं उन्हें पूरी श्रध्दा से याद कर रहा हूँ. इस फिल्म में आपने ये साबित कर दिया कि वास्तविक सौंदर्य तंग कपडे पहने बिना और कपड़े उतारे बिना भी दीखता है .इस प्रकार उन्होंने अपने आलोचकों को मुंह तोड़ जवाब दिया . काश आज की नायिकाएँ उनसे कुछ सीख लें और अहर्निश मचा रखी निर्लज्ज नंगई से बाज़ आयें । इस अप्रतिम सौंदर्य की स्वामिनी अभिनेत्री को मयखाने की ओर से सादर नमन । विडियो क्लिकियायें----
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हमारा नमन भी हाजिर है!
ReplyDeleteआपके नमन से मैखाने का चमन गुलज़ार हुआ , खुशामदीद !
ReplyDeleteहम भी नमन करते हैं।
ReplyDeleteधन्य हुई मैखाने की धरा, धन्य हुआ ये गगन ..अनिल भाई आपको भी नमन !
ReplyDeleteज़ीनत अमान पश्चिमी जगत को भारत जवाब था. उनके नयन-नक्श बदलती हिन्दी फिल्मों की तस्वीर थे. उनसे पहले हीरोइनें खुद को पश्चिमी लुक देने के लिए या तो विग पहनती थीं या अतिश्य मेकप का हास्यास्पद स्तर तक सहारा लिया करती थीं (यथा पूरब और पश्चिम की सायरा बानो). अपनी नैसर्गिक खूबसूरती, जादुई कशिश और कमनीय काया से उन्होंने हिन्दी फिल्मों की नायिकाओं की छवि की नयी परिभाषा गढ़ी और नायकों, जो पहले ही अपना लुक बदल चुके थे, को पूरी टक्कर दी. इस काम में परवीन बॉबी ने भी उनका हाथ बँटाया . ज़ीनत अमान सही मायने में एक इकोनोक्लास्ट और फ्रेम भंजक अभिनेत्री हैं.
ReplyDeleteImportant analysis !Nanak ji thnx alot !
ReplyDeleteमैं सोच रहा हूँ बात को वहाँ से शुरु करूं जहाँ से कबाड़खाना पर छोड़ा था इसलिये अशोक जी की टिप्पणी का इंतजार कर रहा हूँ। वह टिप्पणी विलम्ब से पढ़ने के कारण कुछ जिज्ञासायें बची रह गईं हैं।
ReplyDeleteमुनीश जी आपकी पसंद हमें पसंद हैं।
"स्वागत है यहाँ सभी का किंतु किसी की नहीं प्रतीक्षा ''
ReplyDelete-बच्चन
आप अपनी कहें ,मेरी सुनें ! ज़ीनत जी के रचनाकर्म का ईमानदार मूल्यांकन अभी शेष है चूंकि इलीट संस्कृतिकर्मी सदा से उन्हें उपेक्षित करते आए हैं जिन्हें जनता ने चाहा है !
ReplyDeleteपूरी तरह सहमत हूं।
ReplyDeleteमैं कुछ प्रतीक्षा कर ही लेता हूँ। आप स्वागत करते रहें। जीनत जी के रचनाकर्म के विषय में तो अधिक जानकारी नहीं है। लेकिन मेरी टिप्पणी एक प्रवृत्ति, हिन्दी और पाश्चात्य साहित्य, भारत की संस्कृति और परिस्थिति के विषय पर होगी।
ReplyDeleteभागी नमाज़े ज़ुम्म जाती तो नहीं कहीं....
ye lo ji hamari taraf se bhi naman.
ReplyDeleteI am happy to see that someone also shares the same opinion like my brother. From many years he argued in favor of Jeenat Aman and I suggested that he should be more critical about artists.
ReplyDeleteI will therefore, limit my opinion of her being an actress, and I do not remember any remarkable performance in her part in terms of acting or dialogue delivery. I specially disliked her voice.
But, she entered in films at a time when they were transformed into pure commercial venture, had place for angry young men, and relatively "doll-type" roles for women, the heroines were performing partly the acts of villainess. The way Amitabh Bachchan has changed the definition of beauty for man, similarly Jeenat and Booby were in frontier of changing the looks/dress sense for women in hindi cinema.
@ Neeraj -- thanx Neeraj !
ReplyDelete@Swapndarshi-- Being a woman u can't be true judge of another woman's beauty , but yes ur comments will hold grain when i write on Shashi Kapur & Manoj Kumar . So far as ur views on her acting are concerned, yes no one can deny you. Her sexy aura , i must admit, made up for her other faults !
@Ravindra Vyas- Ur gracious presence lends credibility to my views sir !
ReplyDeleteZeenat ji bina make-up use kiye hue kaam karti thi ye baat mujhe aaj hi pata chali...
ReplyDeleteapki ye post par ke to zeenat ji mujhe bhi achhi lagne lagi hai...
आपसे मेरी कोई असहमति नहीं है। न ही मैं जीनत अमान की फिल्में देखते हुए बड़ा हुआ हूँ। मेरी कुछ जिज्ञासायें, जिन्हें असमतियां भी कहा जा सकता है, अशोक जी की टिप्पणी पर है जो उचित समय पर कबाड़खाना पर उन्हीं के समक्ष जाहिर करूँगा।
ReplyDelete--
पच्चीस साल की उम्र शकीरा जैसी मेहनत करने के लिये बहुत सुविधायुक्त है। चुनाव के समय हमारे ८० साल के बूढे भी उससे ज्यादा मेहनत कर लेते हैं।
भारत की प्रत्येक प्रतिभा अपने जलवे अपनी मातृभाषा से पृथक किसी दूसरी भाषा में ही दिखाती है।
शक़ीरा के कम्पोजिंग, लिरिक की रचनात्मक उँचाईयों से परिचित होना चाहूँगा।
भारतीय साहित्य के मुरब्बे में से तुलसी, सूर, कबीर, मीर, गालिब, रहीम (संस्कृत को छोड़कर) को भूल जाने के विदेशी साहित्य में किसी के चुनाव के लिये मार्गदर्शन चाहूँगा।
@Vineeta-- pls. c Nanak's comment above and u will know what i mean .
ReplyDelete@Priteesh--Thnx for ur vote ,but i think we can't change anyone through blogging , nor can we ever win an argument here so it is better to share good things alone.