Thursday, 2 July 2009

मयखाने में एक घुड़-सवार फिरंगन (reprint)

मशहूर पेंटर कोल्लिएर का ये मास्टर- पीस दुनिया के कई शराबखानों की दीवारों की ज़ीनत बना रहता है । वजह, कद्रदान फरमाते हैं की इस घुड़सवार फिरंगन की बेदाग -ओ- शफ्फाफ जाँघों और उसकी मखमली ज़ुल्फ़ों की तारीफ करते हुए सिंगल- माल्ट का हर क़तरा एक अलग ही सुरूर देता है । मैंने ख़ुद कभी इस पेंटिंग को एक आम न्यूड पेंटिंग , गो कि क्लासिक, से ज़ियादा तवज्जो नहीं दी। फ़िर भी इसके सुरूर से इनकार करना तो मुठ्मर्दी होगी । उस रोज़ जब अपने अज़ीज़ मेजर किशन्पाल के ड्राइंग-रूम में मैंने ये तस्वीर देखी तो ऐतराज़ दर्ज करने से ख़ुद को रोक न सका। इस पर उसका ज़बरदस्त फौजी ठहाका देर तक दरो-दीवार को गुन्जाता रहा और उसने साक्षी को आवाज़ देकर वहीं बुला लिया । मेजर की हमशीरा साक्षी स्कोलरशिप लेकर वेस्टर्न क्लास्सिक्स पर रीसर्च कर रही हैं। इस तस्वीर कि बाबत उन्होंने जो कुछ बताया उसने मुझे शर्मसार कर दिया। दरअसल ये औरत है लेडी गोडिवा जो १४वीं सदी में इंग्लैंड के कोवेंट्री क़स्बे में रहा करती थी और क़स्बे के मालिक ड्यूक की शरीके हयात थी। कहते हैं की ड्यूक बहुत जल्लाद किस्म का आदमी था जिसने अपनी रिआया पे बेशुमार टैक्स आयद कर रखे थे । गोडिवा ने कई मर्तबा अपने खाविन्द से इल्तिजा की के वो इतना ज़ियादा टैक्स न लगाए मगर उसकी एक न सुनी गई । गोडिवा बहुत नर्म दिल औरत थी सो उसने कहना जारी रखा और एक रोज़ उसके शौहर ने तैश में आके कह दिया के "ठीक है रिआया का लगान माफ़ कर दिया जायेगा ब-शर्ते तू अपने तमाम कपड़े उतार कर घोडे पे सवार हो और इस कसबे का एक चक्कर लगाये ।" कहते हैं उस नेक औरत ने अपनी रिआया की खातिर ऐसा भी मंज़ूर किया। जब रिआया ने उसका ये फ़ैसला सुना तो सब लोगों ने अपने दरवाज़े खिड़कियाँ बंद कर लिए ताकि भूले से भी उनकी नज़र अपनी मालकिन के जिस्म पे न जाए । सिर्फ़ टॉम नाम के एक बदमाश दरज़ी ने दरवाज़े के सुराख़ से उसे देखने की कोशिश की मगर इस पाप से उसकी जान चली गई । आज भी तांक-झाँक करने वाले को पीपिंग-टॉम इसीलिए कहते हैं ।बहरहाल उसके शौहर की काफ़ी थू- थू हुई और उसे रिआया के साथ नरम होना पड़ा। कोवेंट्री शहर में आज भी उस याद में हर साल एक जुलूस निकलता है जिसमें उसी तरह कोई लडकी ,मगर झीने लिबास में, घोडे पे सवार होती है। उस रहमदिल औरत की याद में उसका एक बुत भी उस शहर में लगाया गया है । ये जानकारी लेकर मैंने महसूस किया कि वाकई भाव तो देखने वाले कि आंखों में होते हैं । इस अलफ नंगी, घोडे पे सवार औरत को आप भी जब देखें तो उसी इज्ज़त से देखें जिसकी वो वाकई हक़दार है ।मेजर का वादा है के वो जैसे भी हो उस जुलूस कि तस्वीरें हमें फराहम करायंगे जो कोवेंट्री में निकलता है। इंशा अल्लाह आमीन!

11 comments:

  1. वाकई भाव तो देखने वाले कि आंखों में होते हैं । इस अलफ नंगी, घोडे पे सवार औरत को आप भी जब देखें तो उसी इज्ज़त से देखें जिसकी वो वाकई हक़दार है ।

    बहुत सही बात है. बहुत सुंदर बात बताई आपने इस पेंटिंग के बारे मे.

    रामराम.

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  2. यह तो बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है मुनीश जी।
    आभार मित्र। यदि सम्भव हो तो इस बाबत और जानकारी इक्कट्ठा करके दर्ज की जाए। इतिहास के ऎसे कोने में झांकने के लिए यह एक ज़रूरी पहल हो सकती है।

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  3. अर्थ सन्दर्भ विशेष में ही पूरे नुमांया होते है. दिलचस्प,महतवपूर्ण.

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  4. ताऊ की बात कुछ वजन दार लगी,

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  5. इस अलफ नंगी, घोडे पे सवार औरत को आप भी जब देखें तो उसी इज्ज़त से देखें जिसकी वो वाकई हक़दार है
    bilkul sahi baat kahi hai...

    kai baar aisa hota hai ki adhi baat ko sun ya dekh kar hi us pe react kar diya jata hai jo vakai galat hai...

    bahut achhi jankari wali post

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  6. sir ,

    apne bahut hi umda baat batayi hai .. badhai ho ..dekhne ka nzaria hi sabkuch hota hai ...

    vijay

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  7. interesting !!
    surely fact changes the perception...
    bt is it possible to tag history with a portrait always ?

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  8. Dear friends,
    Thank u all for appreciating my point of view. Rang bhai ,no itz not alvez possible .

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  9. ye ligiye aankhon ki gandgi zhadkar hum to apke anukarankarta hi ban gaye.

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